13 साल से सठियां रहे हैं गदेला
देश की आजादी में अगर खुली हवा में सांस लेने का किसी को मौका मिला तो वह है गदेलाजी का बचपन। आखिर क्यूं ना हो। इनके पिताश्री ग्राम अहमदपुर पोस्ट जाफराबाद जनपद जौनपुर के स्वर्गीय जयदेव शुक्ल जो कि सामान्य कृषक परिवार से थे। इसके बावजूद देशभक्ति का जुनून उनके पास था। इसी के चलते स्वतंत्रता आंदोलन में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आजादी का बिगुल उन्होंने पत्रकारिता के माध्यम से फूंका था। उन्होंने रणभेरी नामक समाचार पत्र निकालकर अंग्रेजों को भारत छोड़ो के लिए चेताया तो उन्हें जेल की सलाखों में डाल दिया गया। इसके बाद इनकी माताजी श्रीमती चमेली शुक्ला को 6 माह ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ बगावत करने के आरोप में जेल की सजा मिली।
गदेला जी अब 73 के हो गए। मतलब गदेला जी को सठियायें 13 साल हो गए। कहा जाता है कि 60 की उम्र के बाद आदमी सठियाने लगता है। मतलब उसकी सोच और तजुर्बे में अंतर आने लगता है, मगर गदेला जी आज भी बाल रंगकर अच्छे कपड़ों के साथ कहीं मिलते हैं तो आज के नवजवानों को भी चक्कर आने लगता हैं। वैसे तो हर जन्मदिन तो उम्र का एक साल कम करता जाता है मगर लोगों की दुआएं उसे बढ़ाती ही रहती हैं। गदेला के जीवन और व्यवहार में जौनपुर की इमरती, अवध की तहजीब और बनारस का रस भी दिखता है। अपने से छोटे व्यक्ति को भी कभी छोटे होने का अहसास नहीं कराना उनकी आत्मीयता है। यहीं उनकी खासियत है। काम कोई भी लेकर उनके पास आया हो उनके शब्दकोश में ना शब्द तो है हीं नहीं। 1974 में स्नातकोत्तर की शिक्षा लखनऊ विश्वविद्यालय में हिंदी से उत्तीर्ण करने के बाद काशी हिंदू विश्वविद्यालय से हिंदी विषय से पीएच.डी. उपाधि वर्ष 1986 में प्राप्त की। डॉ शुक्ला को इतनी आसानी से नहीं समझा जा सकता है। जिस तरह से राणा प्रताप का शौर्य समझाने के लिए आपको अकबर का इतिहास बताना जरूरी है। उसी तरह गदेला को समझने के लिए इनकी पत्रकारिता के पन्ने को दर-परत पलटना जरूरी है। आपने पत्रकारिता जगत में 1977 में दैनिक जय देश समाचार पत्र वाराणसी से अपनी यात्रा शुरू की। 8 अक्टूबर 1978 को जनपद जौनपुर से प्रकाशित हिंदी दैनिक तरुण मित्र के प्रथम अंक से जिला संवाददाता वर्तमान समय तक उत्तर प्रदेश सरकार से मान्यता प्राप्त पत्रकार के रूप में सेवारत हैं। 26 वर्ष तक लगातार दैनिक कवि के रूप में दैनिक तरुण मित्र के व्यंग्य कालम कहो मियां में व्यंग्य लेखन का कार्य किया जो बहुत सराहा गया लोग अखबार बाद में पढ़ते थे कहो मियां पहले पढ़ते थे। वर्तमान समय में पत्रकारिता की साथ-साथ रोटी और आजादी नमक काव्य पुस्तक लेखन का कार्य लगभग पूर्ण है जो जल्द ही प्रकाशित होगा। गदेला जी को मैंने पत्रकारिता के संत रामदेव के रूप में देखा। अखबार की दुनिया का एक मलंग साधु, जो धूनी रमाए किसी भी समाचार पत्र को जौनपुर जिले में खड़ा करने की ताकत अपने बल पर रखता हो। उनके साधुत्व में एक शिशु सी सरलता भी है जो उन्हें लोगों से हटकर रखती है। उनकी आँखों में आत्मविश्वास के साथ करुणा-स्नेह की गंगा थी। उम्र के सत्तर के दशक पार करने के कारण जिले में उनकी अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों और सामाजिक हस्तियों के बीच गंभीर और ठोस पकड़ है। उनके अद्भुत स्पर्श से आज के पत्रकारों को लुकाठी हाथ में लेकर सच कहने और सच के लिए किसी से लड़ने की हिम्मत तथा ताकत मिलती है। वह जिले में वरिष्ठ पत्रकार की वजह से नहीं बल्कि अपनी सरलता, सहजता, अक्खड़ता और फक्कड़ता के कारण पहचान बनाए हैं। गदेला जी न्यूरो की बीमारी से त्रस्त होने के बाद भी महत्वपूर्ण कार्यक्रम और लोगों से संबंध बनाने में आज भी जिले के हर गांव, कस्बे को नापने की ललक रखतो हैं । बीमारी के बावजूद प्रतिबद्धता की कलम और संकल्पों की अटैची लिये हमेशा यात्रा के लिए तैयार रहते हैं पंडित रामश्रृंगार शुक्ल।
लेखक
डॉ. सुनील कुमार
वरिष्ठ पत्रकार, असिस्टेंट प्रोफसर जनसंचार विभाग
मीडिया प्रभारी, वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर।
बहुत सुंदर..☺️
जवाब देंहटाएंप्रिय गदेयला
जवाब देंहटाएंप्रिय gadeyla जी,बहुत दिन बाद आपके बारे में लिखा लेख पड़कर कर मन प्रसन्न हो
जवाब देंहटाएंगया।
Dr sunil kumar ने जो लिखा वो याद कर अच्छा लगा।
Dr madan mohan varma
9235665790
गदेला जी के व्यक्तित्व का सुंदर वर्णन
जवाब देंहटाएंआप सभी की शुभकामनाएं मेरे लिए इस उम्र में प्रेरणा और मेरे अंदर नई ऊर्जा का संचार कर रही है
जवाब देंहटाएंव्यक्तित्व के धनी गदेला जी
जवाब देंहटाएंजहा दो लोग बाईक पर तीसरा गदेला है