बीत गए वे दिन, जब खबरों में होती जान थी...
https://www.shirazehind.com/2023/09/blog-post_945.html
मत कोई भरम भरो....क़दरदान अब रहे कहाँ,
कागज के अखबारों के....
कदर करें भी क्यों उनकी...?
जब दुनिया खबरें चाहे,
मिर्च-मसाला संग...चटखारों के...
*** *** ***
बीत गए वे दिन,
जब खबरों में होती जान थी...
विश्वास करो अब मित्रों...!
नई पौध तो....पीत पत्रकारिता..
शब्द ही नहीं जानती...
*** *** ***
पहले खबरें आँखे खोलती थीं,
अब तो लगता है..
खबरें कुछ टटोलती हैं...और...
पढ़ने से पहले ही,
कुछ ज्यादा ही बोलती हैं...
*** *** ***
नई पीढ़ियाँ...
कुछ खबरों को खास बनाकर,
आस किसी की बना जाते हैं...
कुछ को पीड़ा में रखकर...अक्सर
कुछ की नैया पार लगा जाते है....
*** *** ***
खबरों की कर तुरुपाई,
कुछ नया-नया सा करते हैं...
इन बचकानी हरकत से....!
अपना उल्लू भी सीधा करते हैं...
जो बात उठे कुछ उल्टी-सीधी,
झट दोष दूसरों पर मढ़ते हैं...
और कहूँ क्या मेरे मित्रों...!
नित नवीन परिभाषा गढ़ते हैं....
** *** ***
कुछ खबरें गढ़कर आती,
कुछ वह खुद आप गढ़ें....
तनिक देर में भेजें इत-उत,
कुछ पढ़कर कुछ बिना पढ़े...
उनको क्या मतलब इससे,
कोई चाहे रोज लड़े-भिड़े....
*** *** ***
सो सुनो गौर से मेरे मित्रों,
पढ़ अखबारों की खबरों को...!
मत खुद को गरम करो,
आँखों देखी पर विश्वास करो,
लोगों में मत कोई भरम भरो....
रचनाकार—— जितेन्द्र दुबे
अपर पुलिस अधीक्षक
जनपद-कासगंज
कागज के अखबारों के....
कदर करें भी क्यों उनकी...?
जब दुनिया खबरें चाहे,
मिर्च-मसाला संग...चटखारों के...
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बीत गए वे दिन,
जब खबरों में होती जान थी...
विश्वास करो अब मित्रों...!
नई पौध तो....पीत पत्रकारिता..
शब्द ही नहीं जानती...
*** *** ***
पहले खबरें आँखे खोलती थीं,
अब तो लगता है..
खबरें कुछ टटोलती हैं...और...
पढ़ने से पहले ही,
कुछ ज्यादा ही बोलती हैं...
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नई पीढ़ियाँ...
कुछ खबरों को खास बनाकर,
आस किसी की बना जाते हैं...
कुछ को पीड़ा में रखकर...अक्सर
कुछ की नैया पार लगा जाते है....
*** *** ***
खबरों की कर तुरुपाई,
कुछ नया-नया सा करते हैं...
इन बचकानी हरकत से....!
अपना उल्लू भी सीधा करते हैं...
जो बात उठे कुछ उल्टी-सीधी,
झट दोष दूसरों पर मढ़ते हैं...
और कहूँ क्या मेरे मित्रों...!
नित नवीन परिभाषा गढ़ते हैं....
** *** ***
कुछ खबरें गढ़कर आती,
कुछ वह खुद आप गढ़ें....
तनिक देर में भेजें इत-उत,
कुछ पढ़कर कुछ बिना पढ़े...
उनको क्या मतलब इससे,
कोई चाहे रोज लड़े-भिड़े....
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सो सुनो गौर से मेरे मित्रों,
पढ़ अखबारों की खबरों को...!
मत खुद को गरम करो,
आँखों देखी पर विश्वास करो,
लोगों में मत कोई भरम भरो....
रचनाकार—— जितेन्द्र दुबे
अपर पुलिस अधीक्षक
जनपद-कासगंज
ये पक्तियां बहुत कुछ कह दे रही है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर पंक्तियां
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