यदा यदाहि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:

 

रामायण में श्री राम का जीवन हमें,

बतलाता है जीवन में क्या करना है,
कुरुक्षेत्र का महाभारत बतलाता है,
हमको जीवन में क्या नहीं करना है।

जीवन को कैसे जीना है? श्री कृष्ण,
बताते अपने श्रीमुख से भगवद्गीता में,
तीनों ग्रंथ अध्ययन कर भी जो नहीं,
जान पाते, हैं होते संलिप्त स्वार्थ में।

संलिप्त स्वार्थ में व्यक्ति जान—बूझकर,
वे सदा ढिठाई करते जाते हैं,
क्या करना है, क्या नहीं करना है,
कैसे करना है नहीं समझ पाते हैं।

कुछ करना चाहे भी व्यक्ति अकेला,
तो कहाँ समाज में कुछ कर पाता है,
व्यष्टि से समष्टि, समष्टि से संसृष्टि,
संसृति से ही विश्वबंधुत्व पनपता है।

विश्व बंधुत्व का यही भाव सद्ज्ञान,
और सद्भाव, संसृति को दे पाता है,
मानवता से धर्म, धर्म से संस्कृति का,
सारी संसृति में निर्माण हो पाता है।

जब धर्म, संस्कृति की ग्लानि हुई,
लोभ, पाप व अहंकार की बाढ़ हुई,
श्री राम, कृष्ण ले कर अवतार सदा,
मही का भार उतार हरें सारी विपदा।

काम, क्रोध, मद, लोभ धरा पर जैसे,
जैसे बढ़ते हैं वैसे ही बढ़ता अहंकार,
अहंकार का सत्ता शासन समाज में,
फैलाता अत्याचार तथा भ्रष्टाचार।

जनता में क्रंदन होता है, पर होते हैं,
सरकारी शासन के कर्ण छिद्र बंद,
धर्म ध्वजा फहराकर होता है अधर्म,
सत्ता मद में चूर गाये जाते क्रूर छंद।

मदहोश नशे में हों राजा मंत्रीगण,  
अधिकारी न करें कर्तव्य का पालन,
अराजक अपराधियों के बढ़े हौंसले,
संस्थागत हो कर तब बढ़े कुशासन।

मीठी मीठी बात बोलकर राजन को,
राज़दार निर्भय हो राय नहीं दे पाते हैं,
आदित्य चापलूसी में राजपाट ऐसे,
शीघ्र ही चौपट और नष्ट हो जाते हैं।

कर्नल आदिशंकर मिश्र
जनपद लखनऊ।

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