भारतवर्ष एक परम्परा, एक मान्यता, एक संस्कृति वाला देश...
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अजय पाण्डेयअन्तर्राष्ट्रीय हिन्दू परिषद/राष्ट्रीय बजरंग दल की मशाल सम्पूर्ण देश में सनातन धर्म एवं संस्कृति के उत्थान के लिए प्रज्ज्वलित है जिसका श्रेय ख्यातिलब्ध कैंसर सर्जन, महान चिंतक, सनातनी पुरोधा डा. प्रवीण भई तोगड़िया संस्थापक/अध्यक्ष को जाता है जिनके नेतृत्व में समृद्ध, सुरक्षित, सम्मान युक्त हिन्दू हेतु जनजागरण कर रहे हैं। डा. तोगड़िया के निर्देशन में अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दू परिषद मानव जीवन के विविध क्षेत्रों में कार्यरत हिन्दू व समाज के उत्थान हेतु अनेक आयाम का गठन कर उनके बैनर तले लाखों/करोड़ों देशवासियों की समस्या का समाधान करने को तत्पर रहते हैं। बेरोजगार युवा की बात हो, कृषि की खस्ताहाल व्यवस्था से परेशान अन्नदाता या फिर मजदूरों की हित में संघर्ष हो, सभी क्षेत्रों में आज डा. तोगड़िया सहित उनके करोड़ों समर्थक संघर्ष के साथी हैं। आज भारत एक सबसे बड़े आबादी वाला लोकतांत्रिक देश है। भारतवर्ष एक विशाल क्षेत्रफल वाला देश था जिसको आर्यावर्त के नाम से भी जाना जाता था जिसमें वर्तमान का भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, अफगानिस्तान आदि हिस्से शामिल थे।
पौराणिक कथाओं के अनुसार यह वेदों की भूमि प्राचीन शास्त्रों और विभिन्न देवी देवताओं की जन्मस्थली रही है। भारत अपने भारतीय राजनीति और सांस्कृतिक पहचान सदैव से महत्वपूर्ण भूमिका में रहा है। भारतवर्ष एक समृद्ध, इतिहास संस्कृति और धार्मिक महत्व के साथ प्राचीन भारतीय उपमहाद्वीप का प्रतिनिधित्व करता है। भारत के प्राचीन ग्रंथ, पुराण, वेद, रामायण, महाभारत ही भारतवर्ष की भूमिका सहित भारत दर्शन का वर्णन करते हैं। उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में हिन्द महासागर तक और पश्चिम में हिन्दूकुशा पर्वत से ब्रह्मपुत्र नदी तक फैला हुआ है। पूर्व में हिमालय पर्वत श्रृंखला, गंगा और सिंधु नदी, घाटियों के उपजाऊ मैदान, घने जंगल, तटीय मैदान, पर्वतों सहित भौतिक विशेषताओं से परिपूर्ण रहा, यही भारत की विशेषता है। भारत को महासागर की उपाधि दी जाए तो अतिश्योक्ति नहीं, क्योंकि यह सभी जाति, धर्म, परम्पराओं और संस्कृति को अपने में समाहित कर लेती है। आज विश्व पटल पर कहा जाता है कि यह भारतवर्ष तपोभूमि रहा है और आज भी है। भारत अखंड था और रहेगा।
संस्कृति के मान—सम्मान की धरा, मैं सिर्फ एक देश नहीं, एक सोच हूं, सभ्यताओं में श्रेष्ठ सभ्यता की खोज हूं, मैं जोड़ने की सोच के ही संग चलूंगा, अखंड था, अखंड हूं, अखंड रहूंगा।। हर कदम अलग जुबां, अलग ही रीत है और तरह तरह के यहां पे गीत है, मैं प्रीत का ही गीत वह अभंग रहूंगा, अखंड था, अखंड हूं, अखंड रहूंगा।। माना कई धर्म कई पंथ हैं यहां और अलग—अलग सभी के ग्रंथ हैं यहां, फिर भी एकता का स्त्रोत मैं प्रचंड रहूंगा अखंड था, अखंड हूं, अखंड रहूंगा।। कई हैं लोग, साथ में कई विचार है, अलग-अलग गुलों की जैसे एक बहार है, मैं द्वंद्व में भी योग का सुगंध रहूंगा, अखंड था, अखंड हूं, अखंड रहूंगा।।
बताते चलें कि भारत भूमि को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। जैसे— जम्मूदीप, भारतखंड, हिमवर्षा, अजनाभवर्ष, भारतवर्ष, आर्यावर्त, हिंदुस्तान और इंडिया के नाम से जाना जाता है। भारत में सामाजिक वर्गीकरण का आधार कर्म रहा है और कर्म के अनुसार ही वर्णों का विभाजन किया गया। आज हम नहीं, बल्कि विश्व पटल पर कहा जाता है कि यह भारतवर्ष आस्था की भूमि रहा है और आज भी है। भारत जब-जब स्वाधीनता की ओर अग्रसर हुआ, स्वाधीन हुआ, स्वतंत्र हुआ, तब—तब सोमनाथ मंदिर के गगनचुंबी अट्टालिकाओं के पताका ने आकाश को छुआ है। यह बात लौहपुरूष सरदार बल्लभ भाई पटेल ने 1948 में कहा। इतिहास गवाह है कि जब-जब मेरा भारत वर्ष स्वाधीन हुआ है तो सोमनाथ मंदिर अट्टालिकाओं ने आकाश गगन को छुआ है। आज विदेश के कई पत्रिकाओं और अखबारों तथा लेखकों ने अपने विचारों में लिखा है कि 1947 में मिलनेवाली आजादी के बाद से भी देश आजादी के पश्चात ब्रिटिश क्लोलिनियन लिगेसी विचार की धाराओं में कार्य करता रहा है। उसे विदेशी संडे ट्रीजन इंग्लैंड ने लिखा है कि ब्रिटिश प्रतिनिधित्व 1947 से सरकारों ने किया है परंतु अब लगता है कि अब भारतवर्ष अपने धर्म संस्कृति के लिए पुनः से स्वाधीन हुआ। पूर्ण रूप से स्वतंत्र हुआ जो ब्रिटिश क्लोलिनियन लिगेसी से हटकर भारतीय संस्कृति के अनुसार कार्य कर रहा है। उन्होंने लिखा कि मैं गर्व से लिखता हूं कि ब्रिटिश सरकार अब वास्तव में भारत से लेफ्ट हो गई, अर्थात चली गई। उसके पश्चात ही काशी में बाबा विश्वनाथ के कॉरिडोर का निर्माण, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम जन्मभूमि का निर्माण हुआ। शबरी माता मंदिर के विचारधाराओं से हटकर दर्शनों के लिए स्त्री/पुरुष जाकर सबरीमाला मंदिर में दर्शन पूजन कर सकते हैं। अब हिंदुस्तान ऐसी विचारधारा के हाथ है जिसके ऊपर ब्रिटिश क्लोलिनियन लिगेसी का असर बिल्कुल नहीं है।
यह कहने में कत्तई गुरेज नहीं है कि भूत भावन भगवान शंकर सोमनाथ मंदिर में श्रद्धा भाव से जब हम सनातनी का मस्तक झुकता है तो वहां से उसके हृदय, मन मस्तिष्क का भाव स्व का भाव काशी विश्वनाथ से जाकर जुड़ जाता है, फिर काशी विश्वनाथ से अमरनाथ, अमरनाथ से पशुपतिनाथ, पशुपतिनाथ से मल्लिकार्जुन, मल्लिकार्जुन से पाकिस्तान के कटास राज, कटासराज से मानसरोवर, मानसरोवर से अमरनाथ, अमरनाथ से महाकालेश्वर इसी प्रकार से भीमाशंकर, ओंकारेश्वर, त्राम्ंबेकेश्वर तक हमारी स्व की भावना, आस्था को जोड़ती एवं पहुंचती है। हमारी भावना, धार्मिक, श्रद्धा सोमनाथ मंदिर में मस्तक झुकते ही जिस प्रकार से काशी विश्वनाथ, पशुपतिनाथ मल्लिकार्जुन कटास राज अमरनाथ, मानसरोवर आदि तक हम जुड़ते हैं तो हृदय से स्व की भावना उत्पन्न होती है। यह सिद्ध करता है कि हम हमारा राष्ट्र अखंड है। यही हमारा वास्तविक स्वराज है, स्वतंत्रता है, स्वाधीनता है।
यह वीरों की धारा रही है। वीर भोग्या वसुंधरा। की कहावत चरितार्थ होती है कि— मृत्यु जिसकी है सखी मित्र हर कठिनाई है। रण का हाहाकार जिसके, कानों की शहनाई है। माथे पर जो त्रिशूल रखें, सूर्य पलको के तले।। आंग है जो उसको छुए, हाथ उसका ही जले। घाव है आभूषण जिसके, रक्त ही श्रृंगार है। संसार में उस वीर को ही, जीने का अधिकार है।।
गुप्त वंश के खत्म होने के बाद ईरान, थाइलैंड, कंबोडिया, इंडोनेशिया मलेशिया और तिब्बत भारत से अलग हो गये। इन देशों के अलग होने के बाद केवल श्रीलंका, नेपाल, भूटान, म्यांमार, अफगानिस्तान और पाकिस्तान ही अखंड भारत का हिस्सा थे। भारत की स्थापना वैदिक काल में हुई थी, तब यह हिमालय से लेकर दक्षिणी सागर तक फैला हुआ था। उस दौरान अफगानिस्तान, पाकिस्तान, ईरान, नेपाल, भूटान, तिब्बत, म्यांमार बांग्लादेश, कंबोडिया, मलेशिया, थाइलैंड और इंडोनेशिया अखंड भारत का ही हिस्सा हुआ करता था। 1947 के पूर्व लगभग 2500 वर्षों में भारत को 23 बार बांटा जा चुका है। 14 अगस्त 1947 की अर्धरात्रि में किया गया बंटवारा जो अन्य बंटबारे में सबसे भीभत्स बंटवारा था और उसी बंटवारे पर हिंदुस्तान का नामकरण भी किया गया। सन् 1857 से 1947 तक भारत से 9 देश बनकर भारत से अलग हुआ है। इस भारत के अखंडता हेतु यह एक क्रांति है जिसमें हिंदुस्तान पर निवास करने वाले सभी हिंदुस्तानी का दायित्व है कि हिंदुत्व पर चर्चा नहीं, बल्कि विचार और समर्पण होना चाहिए। मातृभूमि के लिए समर्पण ही महत्वपूर्ण है जिससे हम अखंड भारत की परिकल्पना को साकार कर सकें।
हिन्द में हिंदुत्व की गौरव गाथा शान है। मां भारती की ओर उठती, आंख शर होगी आर—पार है। वीर है बलवान हैं हमसब मां भारती के लाल हैं। हिन्दू शेरों की श्रृंखला अब, इस पर से उसे पर है।।
(लेखक अन्तरराष्ट्रीय हिन्दू परिषद जौनपुर काशी प्रान्त के जिलाध्यक्ष हैं)