जय देव-जय देव, जय मंगलमूर्ति. दर्शन मात्रे मन कामना पूर्ति..
https://www.shirazehind.com/2023/09/blog-post_569.html
सुरेश गांधीइस साल 19 सितंबर को गणेश चतुर्थी है। पुराणों के मुताबिक गणेश जी का जन्म भादौ की चतुर्थी को दिन के दूसरे प्रहर में हुआ था। उस दिन स्वाति नक्षत्र और अभिजीत मुहूर्त था। ऐसा ही संयोग 19 सितंबर को है। इस दिन ब्रह्म योग और शुक्ल योग जैसे शुभ योग बन रहे हैं। अद्भुत संयोग लगभग 300 साल बाद बना है। कहते है इन्हीं तिथि, वार और नक्षत्र के संयोग में मध्याह्न यानी दोपहर में जब सूर्य ठीक सिर के ऊपर होता है, तब देवी पार्वती ने गणपति की मूर्ति बनाई और उसमें शिवजी ने प्राण डाले थे। खास यह है कि इस बार गणेश स्थापना पर मंगलवार का संयोग है। इस योग में गणपति के विघ्नेश्वर रूप की पूजा करने से इच्छित फल मिलता है। गणेश स्थापना पर शश, गजकेसरी, अमला और पराक्रम नाम के राजयोग मिलकर चतुर्महायोग बना रहे हैं। इस दिन स्थापना के साथ ही पूजा के लिए दिन भर में सिर्फ दो मुहूर्त रहेंगे। वैसे तो दोपहर में ही गणेश जी की स्थापना और पूजा करनी चाहिए। समय नहीं मिल पाए तो किसी भी शुभ लग्न या चौघड़िया मुहूर्त में भी गणपति स्थापना की जा सकती है।
पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल की चतुर्थी से देशभर में गणेश चतुर्थी पर्व का शुभारंभ हो जाता है। यह पर्व मुख्य रूप से 10 दिनों तक चलता है। इस दौरान भक्त बप्पा को अपने घर लाते हैं और अनंत चतुर्दशी के दिन बप्पा को विदा कर देते हैं। माना जाता है कि गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा को नहीं देखना चाहिए, इससे श्राप लगता है। वहीं गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की मूर्ति स्थापना शुभ मुहूर्त में ही करनी चाहिए। इस वर्ष भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि की शुरुआत 18 सितंबर को दोपहर 2ः09 मिनट पर होगी। वहीं 19 सितंबर को दोपहर 3ः13 मिनट पर चतुर्थी तिथि समाप्त हो जाएगी। ऐसे में उदय तिथि के आधार पर गणेश चतुर्थी और 10 दिनों तक चलने वाले गणेशोत्सव की शुरुआत 19 सितंबर को रहेगी। मान्यताओं के अनुसार गणेश चतुर्थी तिथि पर शुभ मुहूर्त में भगवान गणेश की प्रतिमा को स्थापित करने पर जीवन में सुख-समृद्धि सहित सभी तरह के शुभ फलों की प्राप्ति होती है। 19 सितंबर को प्रातः काल सूर्योदय से लेकर के दोपहर 12ः53 बजे तक कन्या, तुला, वृश्चिक लग्न में भगवान गणेश की स्थापना करने का योग है। इस बीच मध्याह्न 11ः36 से 12ः24 बजे तक अभिजीत मुहूर्त में मूर्ति की स्थापना बहुत ही शुभ है। इसके बाद दोपहर 13ः45 बजे से 15ः00 बजे तक भी शुभ मुहूर्त रहेगा। शास्त्रों के अनुसार गणेश चतुर्थी पर्व का समापन अनंत चतुर्दशी के दिन किया जाता है। साथ ही इसी दिन बप्पा को श्रद्धापूर्वक विदा किया जाता है। पंचांग के अनुसार गणेश विसर्जन गुरुवार 28 सितंबर को किया जाएगा।
वक्र तुंड महाकाय, सूर्य कोटि समप्रभः। निर्विघ्नं कुरु मे देव शुभ कार्येषु सर्वदा।। अर्थात हे हाथी के जैसे विशालकाय जिसका तेज सूर्य की सहस्त्र किरणों के समान हैं। बिना विघ्न के मेरा कार्य पूर्ण हो और सदा ही मेरे लिए शुभ हो ऐसी कामना करते है। यही वजह है कि गणेश जी का पूजन हर कार्य में पहले किया जाता है ताकि सारे विघ्न दूर हो जाएं। ग्रंथों के अनुसार गणेश जी का जन्म गणेश चतुर्थी को मध्याह्न काल में हुआ था। इसलिए इसी समय गणेशजी की स्थापना और पूजा करनी चाहिए। गणेश चतुर्थी पर गणेश जी की स्थापना और पूजा करने से मनोकामना पूरी होती है। समृद्धि और सफलता भी मिलती है। मान्यता है कि इस दिन भगवान गणेश धरती पर आकर अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक गणेश चतुर्थी की पूजा की अवधि, जिसमें गणेश जी धरती पर निवास करते हैं, अनंत चतुर्दशी तक चलती है।
ग्रंथों के अनुसार इस दिन किए गए दान, व्रत और शुभ कार्य का कई गुना फल मिलता है और भगवान श्रीगणेश की कृपा प्राप्त होती है। गणेश चतुर्थी के दिन पूजन करने से विद्या, बुद्धि की तथा ऋद्धि-सिद्धि की प्राप्ति तो होती ही है, विघ्न-बाधाओं का भी समूल नाश होता है। वैसे तो प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी, गणेश जी के पूजन और उनके नाम का व्रत रखने का विशिष्ट दिन है। श्री गणेश जी विघ्न विनायक हैं। श्री गणेश जी को देवों में सर्वोपरि स्थान हैं। भगवान गणेश बुद्धि के देवता हैं। गणेशजी का वाहन चूहा है। ऋद्धि व सिद्धि गणेशजी की दो पत्नियां हैं। इनका सर्वप्रिय भोग लड्डू हैं। प्राचीन काल में बालकों का विद्या-अध्ययन आज के दिन से ही प्रारम्भ होता था। आज बालक छोटे-छोटे डण्डों को बजाकर खेलते हैं। यही कारण है कि लोकभाषा में इसे डण्डा चौथ भी कहा जाता है। गणेश चतुर्थी को विनायक चतुर्थी और गणेश चौथ के नाम से भी जाना जाता है। गणेश पुराण में वर्णित कथाओं के अनुसार इसी दिन समस्त विघ्न बाधाओं को दूर करने वाले, कृपा के सागर तथा भगवान शंकर और माता पार्वती के पुत्र श्री गणेश जी का आविर्भाव हुआ था।
हर शुभ कार्य में श्री गणेश की पूजा
अक्सर लोग किसी शुभ कार्य को शुरू करने से पहले संकल्प करते हैं और उस संकल्प को कार्य रूप देते समय कहते हैं कि हमने अमुक कार्य का श्रीगणेश किया। कुछ लोग कार्य का शुभारंभ करते समय सर्वप्रथम श्रीगणेशाय नमः लिखते हैं। यहां तक कि पत्रादि लिखते समय भी ऊँ या श्रीगणेश का नाम अंकित करते हैं। लोगों का विश्वास है कि गणेश के नाम स्मरण मात्र से उनके कार्य निर्विघ्न संपन्न होते हैं, इसलिए विनायक के पूजन में विनायको विघ्नराजा-द्वैमातुर गणाधिप स्त्रोत पाठ करने की परिपाटी चल पड़ी है, इसीलिए जगत में शुभ कार्य के लिए शिव-शिवा सुत श्री गणेश की पूजा की जाती है। महादेव तथा पार्वती के परम भक्त भगवान गणेश की आराधना होती आ रही है। देवताओं में श्रेष्ठ, बुद्धिमान व सर्वप्रिय गणेश बबुआ है। भगवान गणेश जगत के आधार देव पौराणिक आख्यानों में माना गया है। वैसे तो जगत में हर कार्य आरंभ के लिए किसी न किसी देव की स्तुति का प्रावधान है। भारतवर्ष में भगवान गणेश, चीन में विनायक, यूनान में ओरेनस, इरान में अहुरमजदा और मिश्र में एकटोन की अर्चना काम आरंभ करने से पहले किया जाता है। इस प्रकार की परंपरा हरेक सभ्यता व संस्कृति में प्रवाहमान है। हमारे देश के प्राचीन ग्रंथों में देवाधिदेव सुत गणेश को कई विशेषताओं से अभिभूषित किया गया है। पौराणिक ग्रंथों में गणेश की पूजा और उनकी महिमा का उल्लेख है। इनकी महिमा को कई मनीषियों ने अलग-अलग रूप में दर्शाया है। कहा गया है कि शुभ कार्य में पहली स्तुति गणेश की ही की जाती है।
ऊं गणानां त्वा गणपतिं हवामहे, कविं कवीनामुपमश्रवस्तमम। ज्येष्ठराजं ब्रह्मणां ब्रह्मणस्पत्ति आ, नः श्रृझवन्नूतिभिरू सीद सादनम।।- ऋग्वेद
कहने का तात्पर्य है कि हे गणपति तुम देवताओं और कवियों में श्रेष्ठ हो, तुम्हारा अन्न सर्वोतम है, तुम स्तोत्रों के स्वामी हो, आश्रम देने के लिए तुम यज्ञ स्थान में विराजो, स्तुति से हम तुम्हारा आवाहन करते है। इस प्रकार की व्याख्या ऋग्वेद में की गयी है। वाकई में गणेश बहुत ही प्राचीन देव हैं, क्योंकि माना जाता है कि सबसे अधिक पुरानी ग्रंथ ऋग्वेद है। अब यजुर्वेद के मत्रों को देखें तो वह इस प्रकार है- ओउम् गणानां त्वा गणपतिं हवामहे, प्रियाणां त्वा प्रियपतिं हवामहे। निधीनां त्वा निधिपतिं हवामहे वसो मम। आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम।
गणेश का नाम एकदंत व गजानन कहा गया है। हाथी के कान की आकृति अधिक सहनशीलता का प्रतीक है। लोगों के दुख को सहन करें व समाविष्ट करें का संदेश, इनका लंबोदर नाम होने का प्रतीक है। पिता जी शिव व माताजी पार्वती का सबसे प्यारा रहे गणेश की पूजा लोग जगत में इसीलिए करते हैं कि शिव व पार्वती शीघ्र प्रसन्न होते है। कहा गया है कि गणपति से अधिक लोक में कोई बुद्धिमान नहीं है। इनके प्रादुर्भाव की कथाएं पुराणों में है। आखिर हम इनकी पूजा क्यों और कैसे करते हैं यह जानने योग्य बातें है। गणेश की पूजा के लिए जल को बायें हाथ से शरीर पर छिड़कने की क्रिया को मार्जन, दायें हाथ से वदन पर छिड़कने की क्रिया को आचमन कहा जाता है। पूजा पंचोपचार व षोडषोपचार के माध्यम से की जाती है। पूजा के समय धूप देने देने का मंत्र उच्चरित होता है- ओउम् सूरसि धूर्वं धूर्वंतम् योस्मान्धूर्वति, तं धूर्व यं वयं धूर्वामरू। देवानाममसि वहनितमंसस्नितमम, पप्रितमं जुष्टतमं देव हूतमम।।
कहा गया है कि पूजा के बाद अगर धूप दीप नहीं देव को दर्शित करते हैं तो पूजा अधूरी मानी जाती है। गणेश की पूजा करने से शिव शीघ्र प्रसन्न होते है। तीनों लोकों में इष्टदेव गणेश की पूजा करने से किसी भी कार्य में कभी भी व्यवधान नहीं आता है। कथाओं के अनुसार तीनों लोकों की परिक्रमा करने को जब कहा गया था तो कार्तिकेय ने मोर पर आरूढ होकर चले और गणेश चूहा पर सवार होकर माता-पिता की ही परिक्रमा कर डाले। अपनी तीक्ष्णता के चलते सभी लोक माता-पिता को ही सिद्ध कर देवाधिदेव महादेव व जगन्माता पार्वती को प्रसीद कर दिये। देवताओं की क्रियाओं को आह्वान के माध्यम से लोग भाव प्रदर्शित करते हैं। पूजा करने से मन व आत्मा को परमशांति मिलती है।
जीवन के हर क्षेत्र में गणपति विराजमान
पुराण-पुरुष गणेश की महिमा का गुणगान सर्वत्र क्यों किया जाता है? जीवन के हर क्षेत्र में गणपति विराजमान हैं। पूजा-पाठ, विधि-विधान, हर मांगलिक-वैदिक कार्यों को प्रारंभ करते समय सर्वप्रथम गणपति का सुमिरन करते हैं। श्री गणेश जी की पूजा प्रत्येक शुभकार्यकरने के पूर्वृ श्री गणेशायनमः का उच्चारण किया जाता है। क्योंकि गणेश जी की आराधना हर प्रकार के विघ्नों के निवारण करने के लिए किया जाता है। क्योंकि गणेश जी विघ्नेश्वर हैं-विवाह की एवं गृह प्रवेश जैसी समस्त विधियों के प्रारंभ में गणेश पूजन किया जाता है। पुत्र अथवा अन्य कुछ लिखते समय सर्वप्रथम श्री गणेशाय नमः, श्री सरस्वत्यै नमः, श्री गुरुभ्यो नमः, ऐसा लिखने की प्राचीन पद्धति थी। ऐसा ही क्रम क्यों बना? किसी भी विषय का ज्ञान प्रथम बुद्धि द्वारा ही होता है व गणपति बुद्धि दाता हैं, इसलिए प्रथम श्री गणेशाय नमः लिखना चाहिए। वक्रतुंड महाकाय कोटिसूर्यसमप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।। भगवान श्री गणेश का अद्वितीय महत्व है। यह बुद्धि के अधिदेवता विघ्ननाशक है। ‘गणेश’ का अर्थ है- गणों का स्वामी। हमारे शरीर में पांच ज्ञानेन्द्रियां, पांच कर्मेन्द्रियां तथा चार अंतःकरण हैं तथा इनके पीछे जो शक्तियां हैं, उन्हीं को चौदह देवता कहते हैं।
गणपति महोत्सव
वैसे तो प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी का दिन भी भगवान श्रीगणेश को प्रसंन करने के लिए बेहतर है लेकिन भाद्रपद के शुक्लपक्ष की गणेश चतुर्थी विशेष फलदायी है। यह दिन गणेश जी के पूजन और उनके नाम का व्रत रखने का विशिष्ट दिन है। गणेश चतुर्थी को विनायक चतुर्थी और गणेश चौथ के नाम से भी जाना जाता है। गणेश पुराण में वर्णित कथाओं के अनुसार इसी दिन समस्त विघ्न बाधाओं को दूर करने वाले, कृपा के सागर तथा भगवान शंकर और माता पार्वती के पुत्र श्री गणेश जी का आविर्भाव हुआ था। गणेशोत्सव अर्थात गणेश चतुर्थी का उत्सव, 10 दिन के बाद, अनन्त चतुर्दशी के दिन समाप्त होता है। इस दिन गणेश विसर्जन के नाम से भी जाना जाता है। अनन्त चतुर्दशी के दिन श्रद्धालुजन बड़े ही धूम-धाम के साथ सड़क पर जुलूस निकालते हुए भगवान गणेश की प्रतिमा का सरोवर, झील, नदी इत्यादि में विसर्जन करते हैं। शिवपुराणमें भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को मंगलमूर्तिगणेश की अवतरण-तिथि बताया गया है। जबकि गणेशपुराण के मुताबिक गणेशावतार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को हुआ था। गणपति यानी ‘गण’ अर्थात पवित्रक। ‘पति’ अर्थात स्वामी, ‘गणपति’ अर्थात पवित्रकोंके स्वामी। भाद्रपद मास की शुक्ल चतु्र्थी को अत्यंत शुभ माना जाता है। भविष्यपुराण अनुसार इस दिन अत्यंत फलकारी शिवा व्रत करना चाहिए। इस दिन से दस दिनों का गणेश महोत्सव शुरु होता है। पौराणिक मान्यता है कि दस दिवसीय इस उत्सव के दौरान भगवान शिव और पार्वती के पुत्र गणेश पृथ्वी पर रहते हैं। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता कहा जाता है। उन्हें बुद्धि, समृद्धि और वैभव का देवता मान कर उनकी पूजा की जाती है। रोशनी, तरह-तरह की झांकियों, फूल मालाओं से सजे मंडप में गणेश चतुर्थी के दिन पूजा अर्चना, मंत्रोच्चार के बाद गणपति स्थापना होती है। यह रस्म षोडशोपचार कहलाती है। भगवान को फूल और दूब चढाए जाते हैं तथा नारियल, खांड, 21 मोदक का भोग लगाया जाता है। दस दिन तक गणपति विराजमान रहते हैं और हर दिन सुबह शाम षोडशोपचार की रस्म होती है। 11वें दिन पूजा के बाद प्रतिमा को विसर्जन के लिए ले जाया जाता है। कई जगहों पर तीसरे, पांचवेया सातवें दिन गणेश विसर्जन किया जाता है।