हिन्दी को जन-जन तक पहुंचाने के लिये देवनागरी लिपि का प्रयोग जरूरी: डा. यदुवंशी
https://www.shirazehind.com/2023/09/blog-post_458.html
जौनपुर। भाषा हृदय की अभिव्यक्ति के साथ ही संस्कृति और सभ्यता की वाहक भी है। हिन्दी अपनी आंतरिक चुनौतियों से जूझते हुए आज राजभाषा ही नहीं, बल्कि विश्वभाषा बनने के निकट है। इसमें अन्य भाषाओं को आत्मसात करने की क्षमता है। यह हिन्दी की सबसे बड़ी पहचान है। उक्त विचार हिन्दी दिवस पर सिविल लाइन स्थित एक होटल में आयोजित संगोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि अन्तरराष्ट्रीय साहित्यकार डॉ ब्रजेश यदुवंशी ने व्यक्त किया।उन्होंने आगे कहा कि विदेशी साहित्य का हिन्दी में अनुवाद और हिन्दी साहित्य का विदेशी भाषाओं में अनुवाद आवश्यक है। हिन्दी आज सिर्फ साहित्य की भाषा नहीं, बल्कि बाजार की भी भाषा है। उपभोक्तावादी संस्कृति ने विज्ञापनों को जन्म दिया जिससे न केवल हिन्दी का उपयोग बढ़ा, बल्कि युवाओं को रोजगार के नये अवसर भी मिले। बाजार की भाषा के रूप में हिन्दी को स्वीकृति भले मिल रही है लेकिन यह बात ध्यान देने योग्य है कि बाजार हमेशा लाभ पर केंद्रित होता है और लाभ केंद्रित व्यवस्था दीर्घजीवी नहीं होती।
डा. यदुवंशी ने कहा कि एक समय के बाद उसका पतन निश्चित है, इसलिए हमें हिन्दी को ज्ञान और संचार की भाषा के रूप में विकसित करना होगा। किसी देश के विकास के लिए आवश्यक है कि वहां ज्ञान-विज्ञान की भाषा जनमानस द्वारा ग्राह्य हो और वह उसे आसानी से समझ सके, इसलिए हिन्दी के उपभोक्तावादी रूप के विकास की चुनौतियों को समझना होगा और इसे ज्ञान की भाषा के रूप में विकसित करना होगा, तभी इसका भविष्य सुरक्षित हो सकता है। अन्त में डॉ यदुवंशी ने कहा कि हिन्दी को जन-जन तक पहुंचाने के लिए देवनागरी लिपि का प्रयोग करना बहुत जरूरी है।
संगोष्ठी को शैलेन्द्र सिंह, रोहित यादव, सचिन यादव, संदीप प्रजापति, विनोद दुबे, अमर सिंह, अनिल केशरी ने भी सम्बोधित किया। इस अवसर पर कृष्ण मुरारी मिश्र, विकास सिंह रागी, मेजर जमालुद्दीन, नीरज सिंह, जालंधर गौतम सहित तमाम लोग उपस्थित रहे। संगोष्ठी का संचालन प्रधानाध्यापक श्रीकांत यादव ने किया। अन्त में सहायक अध्यापक समरजीत यादव ने सभी के प्रति आभार प्रकट किया।
डा. यदुवंशी ने कहा कि एक समय के बाद उसका पतन निश्चित है, इसलिए हमें हिन्दी को ज्ञान और संचार की भाषा के रूप में विकसित करना होगा। किसी देश के विकास के लिए आवश्यक है कि वहां ज्ञान-विज्ञान की भाषा जनमानस द्वारा ग्राह्य हो और वह उसे आसानी से समझ सके, इसलिए हिन्दी के उपभोक्तावादी रूप के विकास की चुनौतियों को समझना होगा और इसे ज्ञान की भाषा के रूप में विकसित करना होगा, तभी इसका भविष्य सुरक्षित हो सकता है। अन्त में डॉ यदुवंशी ने कहा कि हिन्दी को जन-जन तक पहुंचाने के लिए देवनागरी लिपि का प्रयोग करना बहुत जरूरी है।
संगोष्ठी को शैलेन्द्र सिंह, रोहित यादव, सचिन यादव, संदीप प्रजापति, विनोद दुबे, अमर सिंह, अनिल केशरी ने भी सम्बोधित किया। इस अवसर पर कृष्ण मुरारी मिश्र, विकास सिंह रागी, मेजर जमालुद्दीन, नीरज सिंह, जालंधर गौतम सहित तमाम लोग उपस्थित रहे। संगोष्ठी का संचालन प्रधानाध्यापक श्रीकांत यादव ने किया। अन्त में सहायक अध्यापक समरजीत यादव ने सभी के प्रति आभार प्रकट किया।
बहुत ही प़भावशाली औरसुंदर वक्तव्य।राजलक्ष्मी कृष्णन,प़भारी नागरी लिपि परिषद, तमिलनाडु।
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