सामाजिक ताना—बाना और लोकतान्त्रिक मूल्यों पर चोट है 'हेट स्पीच'
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जौनपुर। अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस पर उत्तर प्रदेश डेमोक्रेटिक यूथ फ्रंट की ओर से ऑनलाइन अंतरराज्यीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ जिसमें उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, दिल्ली, बिहार और मध्य प्रदेश से 40 प्रतिभागियों और वक्ताओं ने भागीदारी की। मुख्य वक्ता भारत अपडेट जयपुर राजस्थान के सम्पादक बाबू लाल नागा ने कहा कि लोकतंत्र और राष्ट्र के वजूद के लिए हेट स्पीच पर नकेल कसना ही होगा। घृणास्पद भाषण की निरंतर और गहरी खुराक देकर सार्वजनिक चर्चा को बिगाड़ना भारत में चिंताजनक स्थिति तक पहुंच गया है। काजी फरीद आलम ने कहा कि नफरत फैलाने वाला भाषण एक विवादित क्षेत्र है, इसलिए इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि इसका गठन क्या है। इस पर कोई आम सहमति नहीं है। हालांकि विश्व स्तर पर एक सामान्य समझ है कि जो भाषण नस्लीय, धार्मिक या जातीय समूहों के खिलाफ हिंसा या भेदभाव को उकसाता है, वह नफरत फैलाने वाला भाषण है। अजित यादव ने कहा कि “घृणास्पद भाषण हमेशा दोहराए जाने वाला भाषण होता है जो रूढ़िवादिता और बयानबाजी से अपनी शक्ति प्राप्त करता है। अलग-अलग घटनाओं को एक समान पैटर्न का पालन करने के लिए पेश किया जाता है। इस हिंसा के अल्पकालिक और दीर्घकालिक दोनों परिणाम होते हैं। घृणास्पद भाषण के शिकार व्यक्ति को तात्कालिक शारीरिक क्षति के अलावा यह सामाजिक स्तर पर अंतर-सामुदायिक संबंधों को भी हमेशा के लिए बदल देता है। समय के साथ नफ़रत के शिकार लोगों के खिलाफ भेदभाव, उनकी गरिमा को छीनकर, जड़ें जमा लेता है। सिकंदर बहादुर मौर्य ने कहा कि भारत में नफरत भरी भाषा के खतरे पर रोक लगाने के लिए संविधान के मूल्यों पर आधारित एक नई राजनीति की कल्पना करने के अलावा देश के पास कोई विकल्प नहीं है। संवैधानिक एवं नागरिक अधिकारों के लिए कार्य करने वाले मनोज तिवारी ने कहा कि "सामाजिक सद्भाव, राजनीतिक व्यवस्था की वैधता में जनता का विश्वास, उपचार की समानता और उत्पीड़न और धमकी के बिना किसी के जीवन जीने का अधिकार भी एक महत्वपूर्ण मूल्य है। वरिष्ठ पत्रकार एवं सौहार्द फेलो आनंद देव ने कहा कि नफरत फ़ैलाने भाषण लोगों में जुनून जगा कर लोकतंत्र को कमजोर करता है।