जी—20 सम्मलेन में नेट-जीरो प्रतिबद्धता के लिये भारत हरित विकास समझौते पर जोर दे: अजित
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जौनपुर। सामाजिक कार्यकर्ता एवं नेट जीरो फेलो अजित यादव ने कहा कि जी20 एक ऐसा क्षण है जहां भारत अपनी मजबूत अध्यक्षता के साथ वैश्विक हरित विकास समझौते पर जोर दे सकता है जिसमें पर्यावरण के लिए जीवन शैली, सर्कुलर इकोनॉमी, सतत विकास लक्ष्य की तरफ प्रगति में तेजी लाना, ऊर्जा परिवर्तन और ऊर्जा सुरक्षा के अलावा पर्यावरण के लिए वित्त पोषण भी शामिल होगा। भारत को अभी भी अलग तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि विकसित अर्थव्यवस्थाओं से प्रतिबद्ध वित्तीय सहायता के साथ भारत अपनी नेट-जीरो प्रतिबद्धताओं को तेजी से पूरा कर सकता है। सकारात्मक घटनाक्रम से संकेत मिलता है कि भारत उन कुछ देशों में से है जो अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान या एनडीसी लक्ष्य को पूरा करने की राह पर है। हालाँकि 2050 तक नेट-जीरो उत्सर्जन तक पहुँचने के लिए इसे 12.7 लाख करोड़ डॉलर का निवेश करने की आवश्यकता होगी।श्री यादव ने कहा कि ऐतिहासिक उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार देश जो G-20 के भी सदस्य है, भारत के शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य की समयावधि में कमी चाहते हैं। इन विरोधाभासों के बावजूद भारत को पेरिस समझौते के अनुरूप अपने नेट शून्य उत्सर्जन हासिल करने की दिशा में किये गए प्रयासों और नवीनीकरणीय ऊर्जा क्षमता में तेज वृद्धि को तर्कसंगत रूप से अपनी सफलता के रूप में प्रस्तुत करना चाहिए। भारत के ग्रीन हाइड्रोजन और जैव इंधन के विकास के दूरगामी प्रयासों को गोवा में हुए G20 के उर्जा सम्बन्धी बैठक में सराहा जा चुका है। यह प्रयास G20 सदस्य देशों जिसमें अधिकांश ऐतिहासिक रूप से कार्बन उत्सर्जन और जलवायु संकट के जिम्मेदार है, के ऊपर एक नैतिक और कूटनीतिक बढ़त होगी। हालांकि ये आसान नहीं होगा परंतु अगर भारत ऐसा कर पाया तो भारत को प्रौद्योगिकी साझा करने, क्षमता निर्माण और नवीनीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश के लिए बाकी देशो के साथ तालमेल बैठाना आसान हो जायेगा।
उन्होंने कहा कि इस लिहाज से जलवायु से जुड़े मुद्दों पर विकासशील और पिछड़े देशों का रुख भारत के नेतृत्व में होने वाले G20 शिखर सम्मलेन और वहाँ लिए जाने वाले सामूहिक निर्णयों को हद तक प्रभावित करेगा। अगले कुछ दिनों में होने वाले शिखर सम्मेलन भारत के लिए एक ऐतिहासिक मौका है, ताकि लीक से हट के वैश्विक स्तर पर जलवायु संकट के लिए महत्पूर्ण न्यायपूर्ण ऊर्जा परिवर्तन के लिए प्रभावशाली देशों के बीच आम सहमति बनायी जा सके।