पढ़िए दिलचस्प कहानी *बदलाव* डॉ मधु पाठक की कलम से
दीपा और आलोक दोनों कॉलेज में प्रवक्ता के पद पर कार्यरत थे। दीपा भूगोल विषय में और आलोक भौतिक विज्ञान में, दोनों को ईश्वर ने फुर्सत से गढ़ा बनाया था।उन दोनों का वाह्य व्यक्तित्व जितना सुंदर था उतना ही उनका अंतर्मन भी निर्मल एवं पवित्र था। दोनों पति-पत्नी इतने भाग्यशाली थे कि दोनों की नियुक्ति एक ही महाविद्यालय में हुई। दोनों में अगाध प्रेम था। दोनों की उम्र यही कोई तीस-बत्तीस के आसपास रही होगी। विवाह के तीन बरस बीत चुके थे। दोनों बेहद खुश मिजाज इंसान थे।जितने ही शिष्ट उतने ही विनम्र। कॉलेज में दोनों की छवि एक अच्छे अध्यापक के साथ ही साथ एक अच्छे इंसान की छवि भी थी। दोनों जीवन पथ पर मन में उमंग और उत्साह लिए आगे बढ़ रहे थे। आलोक के माता-पिता भी बहुत सुलझे हुए सज्जन लोग थे। दोनों ही अध्यापक के पद से अवकाश मुक्त हो चुके थे।वे दोनों ही प्राणी बेटे बहू से बेहद प्यार करते थे। दीपा और आलोक भी माता पिता की उम्मीदों पर सदैव खरा उतरने का प्रयास करते। विचारों में कभी मतभेद भी होता तो सब साथ बैठकर आपस में कोई सकारात्मक हल निकालने का प्रयास करते। इतने सभ्य और सौम्य परिवार पर सबकी ही दृष्टि जाती किसी की सकारात्मक तो किसी की नकारात्मक पर दीपा और आलोक का परिवार ऐसा था कि सकारात्मकता को मोती की तरह चुन लेता और विचारों की सुंदर माला पिरोकर मानस में धारण करता तथा नकारात्मक विचारों को परे झटक देता। वक्त तेज़ी से बीत रहा था। दीपा और आलोक ने अपने वैवाहिक जीवन के पांच वर्ष सहर्ष पूरे किए।
शारदीय नवरात्र चल रहा था। घर में प्रतिदिन पूजा पाठ होता । सायंकाल भजन कीर्तन होता। आसपास के कुछ लोग भी इकट्ठा होते। कभी कभी कुछ रिश्तेदार भी जुट जाते। कुल मिलाकर माहौल बड़ा पवित्र बन गया था। ऐसे ही एक दिन भजन कीर्तन के बाद कुछ चर्चा छिड़ी ,दीपा और आलोक के विवाह को लेकर कि इनके विवाह को पांच वर्ष हो गए पर घर आंगन में अभी तक बच्चों की किलकारियां नहीं गूंजी।
दीपा लोगों को उस समय प्रसाद दे रही थी,
जैसे ही उसने यह सब सुना उसको बहुत अफसोस हुआ लोगों की सोच पर,वह अपने कमरे में चली आई और सोचने लगी कि इतनी शिक्षा -दीक्षा लेकर भी हम जिस समाज में रहते हैं वहां बड़ी वैचारिक सड़ांध है। लोगों के सोचने और समझने का ढंग वही सदियों पुराना ही है। उसको लोगों द्वारा
कसी गई कुछ फब्तियां भी कुरेदती रहीं।वह देर तक सोचती रही कि क्या विवाह की सफलता बस संतान उत्पत्ति तक ही है।उसे अपनी सासू मां का उतरा हुआ चेहरा याद आया। दीपा ने निश्चय किया कि अब हमें इस विषय में गंभीरता से सोचना ही होगा। उसने आलोक से अपनी उलझन साझा की वह मुस्कुराया बोला दीपा यह कोई बहुत बड़ी समस्या नहीं है। कुछ लोगों को आदत होती है यूं ही बिना सोचे समझे बोलने की।वह कहता गया आज हमारे देश को एक बड़े बदलाव की ज़रूरत है पर लोग हैं कि देशहित में कुछ सोचते ही नहीं।आज हमारे देश की सबसे बड़ी समस्या है जनसंख्या वृद्धि। उसको कैसे नियंत्रित किया जाए इस पर लोगों का ज़रा भी ध्यान नहीं जाता। लाखों संख्या में बच्चे आज भी अशिक्षित हैं उनको शिक्षित करने की जिम्मेदारी केवल सरकारों की ही नहीं है हम सभी देशवासियों की भी हैं । करोड़ों की संख्या में इस देश में बच्चे अनाथाश्रमों में पल बढ़ रहे हैं।आज आवश्यकता इस बात की है कि इन विकट समस्याओं पर भी लोग खुलकर सोंचें और उन्हें दूर करने में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें। आलोक कहता जा रहा था और दीपा सुनती गुनती जा रही थी।वह मन ही मन आश्वस्त भी होती जा रही थी कि आलोक उसका हमसफ़र ही नहीं हमख़याल भी है। दीपा ने भी कहना शुरू किया, उसने कहा आलोक! भारत युवाओं का देश है यदि हर युवा जागरूकता अभियान छेड़ दे तो सुधार संभव है। अशिक्षा, जनसंख्या वृद्धि सबको नियंत्रित किया जा सकता है। क्यों न हम एक मुहिम चलाएं कि
भारत का हर समृद्ध व्यक्ति अनाथालय से कम से कम एक बच्चे को गोद ले ।उसका उचित पालन पोषण उसकी शिक्षा दीक्षा की जिम्मेदारी उठाए। हर नवदम्पत्ति इस विषय पर विचार करे और उचित क़दम उठाए। तभी इन समस्याओं का हल निकल सकता है अन्यथा नहीं। दोनों ने अपने विचार अगले दिन माता-पिता के समक्ष खुलकर रखा और आपसी सहमति से दोनों ने पीहू और वैभव दो बच्चों को गोद लिया काश कि ऐसे फैसले हम सभी कर पाते। इस देश को इस बड़े बदलाव की ज़रूरत है।आइए मिलकर सोचें और कुछ सार्थक कदम उठाएं।“
स्वरचित, मौलिक
डॉ मधु पाठक, हिन्दी विभाग
राजा श्रीकृष्ण दत्त स्नातकोत्तर महाविद्यालय जौनपुर उत्तर प्रदेश, भारत।