गाजर घास को आमतौर पर काग्रेंस घास भी कहा जाता है : विवेक कुमार

 जौनपुर। जिला कृषि रक्षा अधिकारी विवेक कुमार ने किसान भाइयों को सलाह दी है कि वे खरीफ फसलों में लगने वाले खरपतवार व रोगों से बचाव हेतु अपने खेत की सतत् निगरानी करते हुये फसल में निम्न लक्षण दिखाई देने पर दिये गये विवरण के अनुसार बचाव कार्य करें। गाजर घास जिसे आमतौर पर काग्रेंस घास, सफेद टोपी, चटक चॉंदनी आदि नामों से जाना जाता है। यह एक वर्षीय शाकीय पौधा है जिसकी लम्बाई 1.5 से 2 मीटर होती है।इसमें बीज का प्रकीर्णन हवा द्वारा होता है।

धान का खैरा रोग के लक्षण में जानकारी देते हुए कहा कि यह रोग जस्ते की कमी के कारण होता है। इसमें पत्तियॉ पीली पड़ जाती हैं जिस पर बाद में कत्थई रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। इसके उपचार हेतु जिंक सल्फेट 5 कि0ग्रा0 को 20 कि0ग्रा0 यूरिया अथवा 2.50 कि0ग्रा0 बुझे हुये चूने को प्रति हेक्टेयर की दर से लगभग 1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिये। गाजर घास के लक्षण के सम्बन्ध मे जानकारी दते हुए बताया कि गाजर घास  मुख्यतः खाद्यान्न फसलों, सड़को के किनारे बंजर भूमि, सब्जियॉं एवम उद्यान क्षेत्रों को प्रभावित करता है। इसी के साथ यह मनुष्य में त्वचा सम्बन्धित बीमारियॉं, एग्जिमा एलर्जी, बुखार तथा दमा जैसी बीमारियॉं का मुख्य कारण है। गाजर घास वर्ष भर फल फूल सकता है लेकिन वर्षा ऋतु में अधिक अनुकरण होने की वजह से यह एक भीषण खरपतवार का रूप ले लेता है। 
गाजर घास जिसे आमतौर पर काग्रेंस घास, सफेद टोपी, चटक चॉंदनी आदि नामों से जाना जाता है। यह एक वर्षीय शाकीय पौधा है जिसकी लम्बाई 1.5 से 2 मीटर होती है।इसमें बीज का प्रकीर्णन हवा द्वारा होता है। इसके नियंत्रण के लिये ग्लाइफोसेट 1 से 1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर अथवा मैट्रीब्यूजीन 0.3-0.5 प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहियें। उपरोक्त के सम्बन्ध मे अधिक जानकारी हेतु किसान भाई विकास खण्ड पर कृषि रक्षा इकाई के प्रभारी अथवा जनपद मुख्यालय पर जिला कृषि रक्षा अधिकारी से सम्पर्क करें।

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