योगी आदित्यनाथ : धर्मयोगी, कर्मयोगी, मर्मयोगी
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प्रमोद जायसवाल
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने देश ही नहीं अपितु विदेशों में कामयाब राजनेता के रूप में अपनी छवि स्थापित कर ली है। अब वह सिर्फ गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर के महंत ही नहीं, प्रखर राष्ट्रवादी नेता बन चुके हैं। वह एक दमदार और ईमानदार नेता के रूप में जाने जाते हैं। कोरोना प्रबंधन व माफिया और अपराधियों के खिलाफ उनके द्वारा की गई कार्रवाई की सर्वत्र चर्चा है। धर्मयोगी, कर्मयोगी के साथ मर्मयोगी भी हैं। जनता व उनकी समस्याओं के मर्म को समझने की अद्भुत शक्ति है। विरोधियों के भी मर्म को भली-भांति समझते हैं। उसी अनुरूप रणनीति तैयार करते हैं। चुनौतियों के मर्म को समझते हुए उसका सामना करते हैं। सुख-दु:ख, लाभ-हानि, यश-अपयश, जीवन-मरण, भूत-भविष्य की चिंता न करते हुए अपने कर्म में लीन रहते हैं। धर्मनिष्ठ के साथ कर्तव्यनिष्ठ हैं। धर्म परायण के साथ कर्तव्य परायण हैं। कोरोना महामारी के दौरान जनता के प्रति कर्तव्य बोध के चलते अपने पिता का अंतिम दर्शन करने तक नहीं गए। गाहे बगाहे भाजपा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के उत्तराधिकारी की चर्चा होती है। ऐसी स्थिति में योगी आदित्यनाथ भविष्य में राष्ट्र का राजनीतिक चेहरा बन सकते हैं।
मात्र 26 साल की उम्र बने सांसद
योगी आदित्यनाथ वर्ष 1998 में महज 26 साल की उम्र में गोरखपुर के भारतीय जनता पार्टी के सांसद बने। वर्ष 1999 में दूसरी बार, 2004 में तीसरी बार, 2009 में चौथी बार और 2014 में पांचवीं बार रिकार्ड मतों से जीतकर लोकसभा पहुंचे। वर्ष 2017 में उत्तर प्रदेश के बीजेपी विधायक दल की बैठक में नेता चयनित होकर मुख्यमंत्री पद पर काबिज हुए। विरोधियों के तमाम मंसूबों को ध्वस्त करते हुए दोबारा प्रदेश की बागडोर संभाली।
जो कहा उसे करके दिखाया
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हर चुनौतियों का डटकर सामना किया। जो कहा उसे करके दिखाया। पार्टी के साथ जनता की उम्मीदों पर भी खरे उतरे। हर वादा को पूरा किया। आम जनता के हमदर्द बने रहे वहीं विरोधियों को उबरने नहीं दिया। विपक्ष के हर हमले का करारा जवाब दिया। सदन में चर्चा के दौरान उनके द्वारा दिये गये वक्तव्य 'माफिया को मिट्टी में मिला दूंगा ' लोग वर्षों तक याद रखेंगे।
बुलडोजर एक्शन ने बनाया देश-विदेश में लोकप्रिय
योगी आदित्यनाथ राज में माफियाओं व अपराधियों की कमर टूट गई है। संगठित अपराध पर पूरी तरह नकेल लग चुका है। माफियाओं और कानून-व्यवस्था के साथ खिलवाड़ करने वालों पर बुलडोजर एक्शन ने योगी जी को देश के साथ विदेशों में लोकप्रिय बना दिया है। माफियाओं को बुलडोजर का खौफ सताता है वहीं दंगा-फसाद करने वाले कानून को हाथ में लेने से पहले सौ बार सोचते हैं।
भविष्य में बनेंगे राष्ट्र का राजनीतिक चेहरा !
योगी आदित्यनाथ अपनी प्रशासनिक कार्य कुशलता, प्रखर वक्ता, नेतृत्व क्षमता, ईमानदार छवि की बदौलत भारतीय जनता पार्टी में गहरी पैठ बनाये हैं। पार्टी की हर कसौटी पर खरे उतरते रहे हैं। योगी जी की प्रखर राष्ट्रवादी छवि का पार्टी को खासा लाभ मिला है। हर प्रान्त के चुनावी कैम्पेन में योगी जी की पहली डिमांड रहती है। जानकारों के मुताबिक योगी जी के रूप में भाजपा की राजनीतिक खोज पूरी हुई है। वह भविष्य में राष्ट्र का राजनीतिक चेहरा बन सकते हैं।
सत्ता संभालते ही दिखाये थे तेवर
योगी आदित्यनाथ ने वर्ष 2017 में पहली बार प्रदेश की सत्ता संभालते ही ताबड़तोड़ फैसले लिए। भ्रष्टाचार, अराजकता, धर्मान्तरण, नक्सली व माओवादी हिंसा पर नकेल कसनी शुरू कर दी। अवैध स्लाटर हाउस को बंद करवाया। एंटी रोमियो अभियान चलाया जिससे महिलाओं में सुरक्षा की भावना बढ़ी। माफियाओं का सफाया कराकर उनकी सम्पत्ति कुर्क कराया। पर्यटन और धार्मिक स्थलों का सौंदर्यीकरण व नवनिर्माण कराया। श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण में अहम भूमिका निभाई। लव जिहाद के खिलाफ कड़ा कानून बनाया।
दक्षिण राज्यवासियों में भी योगी जी के प्रति श्रद्घाभाव
दक्षिण के सुपर स्टार रजनीकांत अभी अपने एक फिल्म के प्रमोशन में लखनऊ आये तो वे सीएम योगी आदित्यनाथ से मिलने उनके आवास पर गये। पांव छूकर उनका आशीर्वाद लिया तो इसके राजनीतिक मायने तलाशे जाने लगे। सोशल मीडिया पर यह तस्वीर वायरल होने लगा। ट्वीटर पर भी मामला ट्रेंड करने लगा। दरअसल, योगी जी संत परम्परा से आते हैं। दक्षिण राज्य के वासियों में भी उनके प्रति असीम श्रद्घा भाव है।
2024 चुनाव में प्रदेश में ज्यादा से ज्यादा सीटें जिताने की चुनौती
प्रदेश में लोकसभा की कुल 80 सीट है। वर्ष 2019 के चुनाव में सपा, बसपा मिलकर चुनाव लड़ी थी जिसमें बीजेपी को 62 तथा सहयोगी अपना दल को 2 सीटें मिली थीं। बसपा को 10 सपा को 5 एवं कांग्रेस को एक सीट हासिल हुई थी। बाद में हुए उपचुनाव में बीजेपी ने आजमगढ़ व रामपुर सीट सपा से झटक ली थी। इस बार सपा और कांग्रेस 'इंडिया' गठबंधन का हिस्सा है। बसपा अलग हो गई है। बदले समीकरण में मुख्यमंत्री के ऊपर प्रदेश में ज्यादा से ज्यादा सीटें जिताने की कड़ी चुनौती है।