सेवा-टहल मजबूरी क्यों?

 कभी गौर किया है मित्रों...?

सूखे दरख़्त को भी पसंद नहीं है
मिट्टी में मिलना और सड़ना...!
तभी तो... तन कर खड़ा रहता है..
और आश्रय बन जाता है....
कोटरों में... तोता-मैना-गौरैया का,
सृजन की चाह में...!
अपना शरीर खोखला करा लेता है कीट-पतंगों-चीटियों से...
कठफोड़वा से विधवा लेता है...
अपना सूखा हुआ शरीर भी,
उनकी भूख मिटाने को....
आरी से कटकर धड़ाम हुआ,
सूखा दरख़्त... कराहते हुए भी...
कभी अवसाद ग्रस्त नहीं होता...
अब भी मिट्टी में मिलकर,
वह सड़ना नहीं चाहता है...!
अंग-प्रत्यंग में उर्जा का संचार कर रेती-रंदा-बाँसुल से,
खुद का श्रृंगार कराकर..!
वह बनना चाहता है,
शाह-चौखठा-दरवाजा... या फिर..
टेबल-कुर्सी-मेज-सोफा... और..
करीब आना चाहता है... मनुष्य के
सूखी टहनियाँ भी... खुद को...
आग के हवाले कर देती हैं,
किसी की भूख मिटाने को...
धन्य है... सूखे दरख़्त की ख्वाहिशें
मित्रों.... मानो या मत मानो...!
घर-परिवार के सूखते दरख़्त भी
ठीक इसी तरह... चाहते हैं...!
करीब से करीब आना... और...
प्रेम की भाषा सिखाना,
पीढियों को छाया देना,
थपकी देकर उनको आकार देना..
शिथिल अंगों से भी...!
देते रहते हैं ढेरों आशीष,
बने रहते हैं... छतरी...
कालिख और कलंक की...
धूप-वर्षा से बचाने को...!
उत्सर्ग करते हैं...खुद का...
कुल की मर्यादा बचाने को...
फिर... ऐसे दरख़्तों से दूरी क्यों...
इनकी सेवा-टहल मजबूरी क्यों..?
इनकी सेवा-टहल मजबूरी क्यों..?
रचनाकार—— जितेन्द्र दुबे
अपर पुलिस अधीक्षक
जनपद-कासगंज

Related

जौनपुर 3705235336294702197

एक टिप्पणी भेजें

emo-but-icon

AD

जौनपुर का पहला ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल

आज की खबरे

साप्ताहिक

सुझाव

संचालक,राजेश श्रीवास्तव ,रिपोर्टर एनडी टीवी जौनपुर,9415255371

जौनपुर के ऐतिहासिक स्थल

item