बगावती तेवर से बेबस सपा सुप्रीमो का सरेन्डर
जौनपुर। जिला कार्यकारिणी में अपेक्षित स्थान न मिलने से नाराज अल्पसंख्यक वर्ग के नेताओं के बगावती तेवर के आगे सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने आखिरकार सरेन्डर कर दिया। उनकी संस्तुति पर प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल ने जिलाध्यक्ष समेत पूरी कार्यकारिणी को रविवार को तत्काल प्रभाव से भंग कर दिया। दो दिन पूर्व जिलाध्यक्ष डॉ0 अवधनाथ पाल की संस्तुति पर प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल ने जनपद की जिला कार्यकारिणी घोषित किया था। 51 लोगों की सूची में सिर्फ तीन अल्पसंख्यक वर्ग के नेताओं को जगह मिली थी। जिला महासचिव हिसामुद्दीन शाह को हटाकर अखंड प्रताप यादव को जिम्मेदारी दे दी गई। सूची जारी होते ही पार्टी के अल्पसंख्यक वर्ग के नेताओं में उबाल आ गया। बगावत का बिगुल फूंकने की तैयारी शुरू हो गई। लोकसभा चुनाव में इसका खामियाजा भुगतने की चेतावनी दी जाने लगी। अल्पसंख्यक वर्ग के नेताओं ने इसका ठीकरा जिलाध्यक्ष पर फोड़ा तो उन्होंने प्रदेश नेतृत्व के निर्णय का हवाला देते हुए पल्ला झाड़ लिया। जौनपुर में अल्पसंख्यक वर्ग के नेताओं द्वारा बगावत की बात पार्टी सुप्रीमो तक पहुंची तो उन्होंने पूरी जिला कमेटी को तत्काल प्रभाव से भंग करने का फरमान जारी कर दिया। करीब चार माह पूर्व डॉ0 अवधनाथ पाल के जिलाध्यक्ष बनाये जाने के बाद से ही पार्टी में गुटबाजी शुरू हो गई थी। गुटबाजी को साधने के चक्कर में उन्होंने अल्पसंख्यक वर्ग के नेताओं को दरकिनार कर दिया। इक्यावन लोगों की कमेटी में सिर्फ तीन मुस्लिम चेहरे को जगह दिया। वह भी किसी महत्वपूर्ण पद पर नहीं। दरअसल जनपद में मुस्लिम मतदाताओं की अच्छी खासी तादात है जो प्रमुख रूप से सपा के वोट बैंक माने जाते हैं। इनको साधने की पूरी जिम्मेदारी पार्टी से जुड़े अल्पसंख्यक वर्ग के नेताओं पर है। इसी वजह से जिला कार्यकारिणी में मुस्लिम चेहरों को भी तवज्जो दिया जाता रहा है। जिलाध्यक्ष के बाद सबसे महत्वपूर्ण पद महासचिव का होता है। इससे पूर्व हिसामुद्दीन शाह को महासचिव बनाया गया था। नई कमेटी में उन्हें पद से हटा दिया। पिछले दो दिन से समाजवादी पार्टी में चल रही अनर्कलह की कवायद का हश्र पूरी कार्यकारिणी के भंग होने के आदेश के रूप में सामने आया। जिला कमेटी भंग होने के फरमान के बाद एक वर्ग अवश्य इसे अपनी जीत बता रहा है मगर दूसरा वर्ग नाराज हो गया है। अगर दोनों वर्ग को नहीं संतुष्ट किया गया तो पार्टी को इसका खामियाजा चुनाव में भुगतना पड़ सकता है।