ज्ञानवापी: सबूतों का खजाना, फिर भी आक्रांता औरंगजेब महान?
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सुरेश गांधीवेद-पुराणों से लेकर इतिहास में दर्ज है कि काशी दुनिया के सबसे प्राचीनतम से प्राचीन शहरों में से एक है। 2500 साल से भी अधिक पुराना इसका इतिहास है। सारनाथ में अशोक की सिंह राजधानी को 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व में बुद्ध के पहले उपदेश की स्मृति के रूप में व्याख्या किया गया है जबकि इस्लाम का इतिहास 14 सौ साल पुराना है। ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है कि कथित ज्ञानवापी मस्जिद हजारों साल पुरानी कैसे हो सकती है? दस्तावेजों के मुताबिक इस्लाम की पहली मस्जिद कुवत-उल-इस्लाम मस्जिद 12वीं सदी के अंत की है तो कथित ज्ञानवापी का निर्माण कैसे हो गया? जबकि स्कंद पुराण में कहा गया कि देवस्य दक्षिणी भागे वापी तिष्ठति शोभना। तस्यात वोदकं पीत्वा पुनर्जन्म ना विद्यते। अर्थात प्राचीन विश्ववेश्वर मंदिर के दक्षिण भाग में जो वापी है, उसका पानी पीने से जन्म मरण से मुक्ति मिलती है।
दरअसल वाराणसी के ज्ञानवापी केस में सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई हो रही है। हिंदू पक्ष ने मुस्लिम पक्ष की याचिका पर अपना जवाब दाखिल करते हुए सर्वे में मिले शिवलिंग को फव्वारा बताना 125 करोड़ हिन्दुओं के अपमान का आरोप लगाया है। इसमें हिंदू पक्ष की तरफ से वादी महिलाओं ने अपनी दलील में औरंगजेब को क्रूर शासक बताते हुए आदि विश्ववेश्वर मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाने की बात कहीं है जबकि मुस्लिम पक्ष का कहना है कि हिंदू पक्ष का दावा बिल्कुल बेबुनियाद है। ज्ञानवापी मामला सुनवाई योग्य नहीं है। मस्जिद हजारों साल पुराना है। जिसे शिवलिंग कहा जा रहा है, वह फव्वारा है। ज्ञानवापी के दीवार पर त्रिशूल, डमरू, ओम जैसी कलाकृतियां का अंकित कहना गलत है। औरंगजेब निर्दयी नहीं था और उसने किसी मंदिर पर आक्रमण नहीं किया था। हालांकि मुस्लिम पक्ष की इस दलील के जवाब में सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष को अपना जवाब दाखिल करने को कहा है। बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ज्ञानवापी में मिले कथित शिवलिंग का साइंटिफिक सर्वे कराने का आदेश दिया था। इस फैसले के खिलाफ मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी थी। पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर अंतरिम रोक लगा दी थी। ऐसे में कोर्ट का फैसला क्या होगा, यह आने वाला वक्त बतायेगा लेकिन औरंगजेब निर्दया नहीं था, वह मुस्लिमों का आदर्श रहा। यह 125 करोड़ हिन्दुओं का अपमान नहीं तो और क्या है? वह औरंगजेब जिसके क्रूरता के किस्से मथुरा, वृंदावन, काशी, अयोध्या से लेकर दिल्ली तक में टूटे सैकड़ों मंदिरों के अवशेष चीख-चीख कर गवाही दे रहे हैं।
वह औरंगजेब जिसने सिखों के नौवें गुरु गुरु तेग बहादुर सिंह का सर तन से जुदा करने की धमकी के बाबत न सिर्फ उन्हें बंदी बना लिया था, बल्कि जिस स्थान पर सिर धड़ से अलग किया था, वहां आज गुरुद्वारा साहिब बनाया गया है। उसके क्रूरता की किस्से का आलम यह रहा कि उसने अपने ही पिता शाहजहां को जेल में डाल दिया था। सत्ता के लिए अपने ही भाई दारा शिकोह का धोखे से सिर धड़ से अलग कर दिया था। जहां तक ज्ञानवापी का सवाल है कि अगर मुगलों ने काशी विश्वनाथ मंदिर पर आक्रमण के दौरान तोड़ा नहीं था तो 1585 में राजा टोडरमल ने किस काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया। दस्तावेजों के मुताबिक 1669 में औरंगजेब के आदेश पर मंदिर तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण किया गया। उसके बाद 1780 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने मौजूदा मंदिर का निर्माण कराया। आलम गिरी पुस्तक में भी दर्ज है कि 1669 में काशी विश्वनाथ मंदिर तोड़कर औरंगजेब ने मस्जिद बनाई। वाराणसी न्यायालय में 18 अप्रैल 1869 का एक दस्तावेज पेश किया गया है जिसमें कहा गया है कि औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनवाया है।
इन सबके बावजूद 2018 में हिंदू पक्ष ने हाईकोर्ट में जब एएसआई सर्वे की मांग की तो जवाब में मुस्लिम पक्ष द्वारा औरंगजेब को को महान शासक बताया गया है लेकिन बड़ा सवाल तो यही है जब इस्लाम 14 सौ साल पुराना है तो ज्ञानवापी मस्जिद हजारों साल पुरानी कैसे हो सकती है? इस्लाम की सबसे पुरानी और पहली मस्जिदों में से एक कुवत-उल-इस्लाम मस्जिद 12 वीं सदी के अंत में निर्माण होना बताया गया है जबकि वर्ष 1669 से भी पहले काशी विश्वनाथ मंदिर होने के सबूत है। बता दें कि औरंगजेब का शासनकाल वर्ष 1658 से 1777 तक यानी 49 साल शासन रहा। 1697 में औरंगजेब के आदेश पर मथुरा वृदावन का मंदिर तोड़ा गया। औरंगजेब के ही कहने पर 1659 में गुजरात का सोमनाथ मंदिर को भी तोड़ा गया। चित्तौड़गढ़ में औरंगजेब ने 63 मंदिरों को तोड़वाया था। ऐसे एक दो नहीं हजारों साक्ष्य है जो चीख-चीख कर कह रहे है कि काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनायी गयी है।
प्राचीन से भी प्राचीन है काशी
हिन्दू धर्म ग्रंथों में अनेक प्राचीन नगरों के बारे में जानकारी मिलती है। इन सभी में सप्तपुरियों का विशेष महत्व बताया गया है। सप्त पुरी यानी प्राचीन 7 शहर। इन ग्रंथों में भी ज्ञानवापी को भगवान शिव का स्वरूप बताया गया है। पुराणों में भी अंकित है अविमुक्त और भगवान शिव को अविमुक्तेश्वर कहा जाता है। अयोध्या, मथुरा, माया, काशी, कांची, अवंतिका। पुरी, द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिकाः।। अर्थात अयोध्या, मथुरा, माया यानी हरिद्वार, काशी, कांचीपुरम, अवंतिका यानी उज्जैन, द्वारिकापुरी, ये सातों मोक्षदायीनी पवित्र नगरियां हैं। ये सात शहर अलग-अलग देवी-देवताओं से संबंधित हैं। अयोध्या श्रीराम से संबंधित है। मथुरा और द्वारिका का संबंध श्रीकृष्ण से है। वाराणसी और उज्जैन शिवजी के तीर्थ हैं। हरिद्वार विष्णुजी और कांचीपुरम माता पार्वती से संबंधित है।
देवस्य दक्षिणी भागे वापी तिष्ठति शोभना। तस्यात वोदकं पीत्वा पुनर्जन्म ना विद्यते। अर्थात प्राचीन विश्ववेश्वर मंदिर के दक्षिण भाग में जो वापी है, उसका पानी पीने से जन्म मरण से मुक्ति मिलती है।
उपास्य संध्यां ज्ञानोदे यत्पापं काल लोपजं। क्षणेन तद्पाकृत्य ज्ञानवान जायते नरः।। अर्थात इसके जल से संध्यावंदन करने का भी बड़ा फल है, इससे भी ज्ञान उत्पन्न होता है, पाप से मुक्ति मिलती है।
योष्टमूर्तिर्महादेवः पुराणे परिपठ्यते। तस्यैषांबुमयी मूर्तिर्ज्ञानदा ज्ञानवापिका।। अर्थात ज्ञानवापी का जल भगवान शिव का ही स्वरूप है।
बता दें कि ज्ञानवापी परिक्षेत्र में सर्वेक्षण के दौरान 16 मई 2022 को ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के वजूखाने में मिले शिवलिंग जैसी आकृति मिलने के बाद कोर्ट के आदेश पर सील कर दिया गया है। यह मामला 1991 से चला आ रहा है। वाराणसी जिला जज ए.के. विश्वेश की कोर्ट के आदेश के मुताबिक यह मामला वर्शिप एक्ट 1991 के तहत नहीं आता है और सुनवाई योग्य है। यहां भगवान विश्वेश्वर के स्वयंभू ज्योतिर्लिंग होने का दावा है। 1991 में सोमनाथ व्यास, रामरंग शर्मा, हरिहर पांडेय ने याचिका दायर की थी। कहा गया कि मस्जिद में मंदिर के अवशेषों का इस्तेमाल हुआ. हिंदू पक्ष का दावा है कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई और ज्ञानवापी परिसर हिंदुओं को सौंपा जाय। मांग है कि ज्ञानवापी में मुसलमानों की एंट्री बंद हो और मस्जिद के गुंबद को ध्वस्त करने का आदेश हो।
एक नजर इस केस की सुनवाई पर
काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद का मामला 1936 में कोर्ट भी पहुंचा था। तब मुस्लिम पक्ष ने पूरे परिसर को मस्जिद करार करने की अपील भी की थी। 1937 मे वाराणसी ज़िला अदालत ने मुस्लिम पक्ष की अपील को खारिज करते हुए कहा था कि ज्ञानकूप के उत्तर में ही भगवान विश्वनाथ का मंदिर है, क्योंकि कोई दूसरा ज्ञानवापी कूप बनारस मे नहीं है। जज ने ये भी लिखा की एक ही विश्वनाथ मंदिर है जो ज्ञानवापी परिसर के अंदर है।
1991- पहली बार मुकदमा दायर कर पूजा की इजाजत मांगी गई।
1993- इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यथास्थिति रखने का आदेश दिया।
2018- सुप्रीम कोर्ट ने स्टे ऑर्डर की वैधता 6 महीने की बताई।
2019- वाराणसी कोर्ट में मामले पर फिर सुनवाई शुरू हुई।
2021- फास्ट ट्रैक कोर्ट ने ज्ञानवापी के पुरातात्विक सर्वेक्षण की मंजूरी दी।
अप्रैल 2022- ज्ञानवापी के सर्वे और वीडियोग्राफी का आदेश।
मई 2022- ज्ञानवापी में सर्वे के दौरान शिवलिंग मिलने का दावा।
जुलाई 2022- सुप्रीम कोर्ट ने कहा- जिला अदालत के फैसले का इंतजार करें।
कोर्ट कमिश्नर की रिपोर्ट
कोर्ट कमिश्नर की रिपोर्ट में तो ज्ञानवापी में शिवलिंग का जिक्र है। साथ ही कहा गया है कि कुएं में जो गोल पत्थर है, उसकी ऊंचाई ढाई फीट है. मस्जिद के अंदर घंटी है, दीवार पर त्रिशूल है। वहीं हाथी के सूंड खुदे मिले हैं, पश्चिमी दीवार पर स्वास्तिक के चिन्ह और खंभों पर घंटियां हैं।
पौराणिक मान्यताएं
पुराणों के अनुसार ज्ञानवापी की उत्पत्ति तब हुई थी जब धरती पर गंगा नहीं थी और इंसान पानी के लिए बूंद-बूंद तरसता था तब भगवान शिव ने स्वयं अपने अभिषेक के लिए त्रिशूल चलाकर जल निकाला। यही पर भगवान शिव ने माता पार्वती को ज्ञान दिया, इसीलिए इसका नाम ज्ञानवापी पड़ा और जहां से जल निकला उसे ज्ञानवापी कुंड कहा गया। काशी मे अविमुक्तेश्वर के स्वयं प्रकट हुए शिवलिंग की पूजा होती थी जिसे आदिलिंग कहा जाता था।
कब कब मुगल शासकों ने मंदिर तोड़ा
मुस्लिम आक्रांताओं के आक्रमणों ने काशी के मंदिरों को कई बार नष्ट किया। मुहम्मद गोरी ने कुतुबुद्दीन ऐबक को बनारस विजय के लिए भेजा। कुतुबुद्दीन ऐबक के हमले में बनारस के 1000 से भी अधिक मंदिर तोड़े गए और मंदिर की संपत्ति 1400 ऊंटों पर लादकर मोहम्मद गोरी को भेज दी गई। बाद में कुतुबुद्दीन को सुल्तान बनाकर गोरी अपने देश वापिस लौट गया। कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनारस मे शासन के लिए 1197 मे एक अधिकारी नियुक्त किया था। बनारस में ऐबक के शासन ने बड़ी कड़ाई के साथ मूर्तिपूजा हटाने की पूरी कोशिश की। इसका नतीजा ये हुआ कि क्षतिग्रस्त मंदिर वर्षों तक ऐसी ही पड़े रहे, क्योंकि इन्होंने ऐसा तोड़ा और ऐसा इनका राज चलता था की किसी की हिम्मत ही नहीं हुई की इन मंदिरों को फिर से बनाये लेकिन 1296 आते -आते बनारस के मंदिर फिर से बन गए और फिर से काशी की शोभा बढ़ाने लगे। बाद में अलाउद्दीन खिलजी के समय बनारस के मंदिर फिर से तोड़े गए। फिर 14वीं सदी मे तुगलक शासकों के दौर मे जौनपुर और बनारस में कई मस्जिदो का निर्माण हुआ। कहा जाता है, ये सभी मस्जिदे, मंदिरो के अवशेषों पर बनाई गई थी। 14वीं सदी में जौनपुर में शर्की सुल्तानो ने पहली बार, काशी विश्वनाथ मंदिर को तुड़वाया। 15वीं सदी में सिकंदर लोदी के समय भी बनारस के सभी मंदिरों को फिर से तोड़ा गया। वर्षों तक मंदिर खंडहर ही बने रहे। 16वीं सदी मे अकबर के शासन में उनके वित्त मंत्री टोडरमल ने अपने गुरु नारायण भट्ट के आग्रह पर 1585 में विश्वेश्वर का मंदिर बनवाया जिसके बारे में कहा जाता है कि यही काशी विश्वनाथ का मंदिर है। टोडरमल ने विधिपूर्वक विश्वनाथ मंदिर की स्थापना ज्ञानवापी क्षेत्र मे की। इसी ज़माने मे जयपुर के राजा मानसिंह ने बिंदु माधव का मंदिर बनवाया लेकिन दोनों भव्य मंदिरों को औरंगजेब के शासनकाल मे फिर से तोड़ दिया गया। 1669 में औरंगजेब ने बनारस के सभी मंदिरों को तोड़ने का फरमान दे दिया था जिसके बाद बनारस में 4 मस्जिदों का निर्माण हुआ जिसमें से 3 उस वक्त के प्रसिद्ध मंदिरों को तोड़कर बनी थी। इसमें विश्वेश्वर मंदिर की जगह जो मस्जिद बनी, उसे ज्ञानवापी मस्जिद कहा जाता है।
नक्शे में भी कहीं नहीं है मस्जिद का ज़िक्र
काशी विश्वनाथ मंदिर का 16वीं सदी का पुराना नक्शे में कही भी मस्जिद का कोई भी ज़िक्र नहीं है लेकिन ज्योतिर्लिंग दर्ज है। इस नक्शे को 1820-1830 के बीच ब्रिटिश अधिकारी ने तैयार किया था। नक्शे के मुताबिक मंदिर प्रांगण के चारों कोनों पर तारकेश्वर, मनकेश्वर, गणेश और भैरव मंदिर दिख रहे है। बीच का हिस्सा गृभगृह है जहां शिवलिंग स्थापित है और उसके दोनों तरफ शिव मंदिर भी दिखते हैं। खास यह है कि अब भी विराजमान नंदी जी मस्जिद की तरफ देख रहे हैं जबकि काशी विश्वनाथ मंदिर तो उनके पीछे स्थित है। नंदी जी तो सदैव शिवलिंग की तरफ ही देखते है। आरोप है कि मंदिर के गृभगृह को ही तोड़कर मस्जिद बनायी गयी है। पश्चिम के दोनों छोटे मंदिर और श्रृंगार मंडप तोड़ दिए गए और गृभगृह का मुख्य द्वार जो पश्चिम की तरफ था, उसे चुन दिया गया। ऐश्वर्य मंडप और मुक्ति मंडप के मुख्य द्वार बंद कर दिए गये और मंदिर का यही भाग, मस्जिद की पश्चिमी दीवार बन गया। मंदिर की पश्चिमी दीवार को ऐसे ही टूटी स्थिति में इसलिए रख दिया गया, क्योंकि औरंगजेब चाहता था की हिन्दू समाज को नीचा महसूस हो। जब मंदिर तोड़ा गया उसके मलबे को भी वहीं पड़े रहने दिया गया। दीवारें आज भी वैसी ही हैं। ज्ञानवापी कुंड का जिक्र, पंचकोसी परिक्रमा में भी है और मध्यकाल की पुरानी कलाकृतियों मे भी ज्ञानवापी कुंड को मंदिर का हिस्सा दिखाया गया है जहां जाकर भक्त संकल्प लेते है और संकल्प पूरा होने के बाद फिर से ज्ञानवापी आते हैं।
महाभारत में ज्ञानवापी कुएं का उल्लेख
महाभारत के वन पर्व के अध्याय 84 में वाराणसी तीर्थ में वर्तमान काशी विश्वनाथ कॉरिडोर इलाके में स्थित ज्ञानवापी कुएं का जिक्र किसी अन्य नाम से किया गया है। प्रसंग है कि जब युधिष्ठिर और अन्य पांडव वनवास काट रहे थे, तब अर्जुन अस्त्र शस्त्रों की शिक्षा लेने के लिए स्वर्ग में वास कर रहे थे, के लौटने का इंतज़ार कर रहे थे। तब युधिष्ठिर ने अर्जुन के लौटने से पहले तीर्थयात्रा करने का संकल्प लिया।
ततो वाराणसीं गत्वा अर्चयित्वा वृषध्वजम्। कपिलाह््रदे नरः स्नात्वा राजसूयमवाप्नुयात्।। अर्थात तदन्तर वाराणसी तीर्थ में जाकर भगवान शंकर की पूजा करे और कपिलार्ह्द में गोता लगाये। इससे मनुष्य को राजसूय यज्ञ का फल प्राप्त होता है। अविमुक्त समासाद्य तीर्थसेवी कुरुद्वह। दर्शनाद् देवदेवस्य मुच्यते ब्रह्म्हत्यया।। प्राणानुत्सृज्य तत्रैव मोक्षं प्राप्तोति मानवः। अर्थात कुरुश्रेष्ठ! अविमुक्त तीर्थ में जाकर तीर्थसेवी मनुष्य देवों के देव महादेव जी का दर्शनमात्र करके ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त हो जाता है। वहीं प्राण त्याग कर मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। यहां स्थित अविमुक्तेश्वर ज्योतिर्लिंग को आदिलिंग भी कहा जाता है। इसे अनंत काल से स्थापित माना जाता रहा है। मान्यता है कि काशी विश्वनाथ कॉरिडोर इलाके में भगवान शिव और माता पार्वती अनादि काल से वास करते हैं लेकिन औरंगजेब की सेना ने इस स्वयंभू ज्योतिर्लिंग को नष्ट कर दिया और इस शिवलिंग को ज्ञानवापी कुएं के अंदर डाल दिया। जाबाल उपनिषद में याज्ञवलक्य और अत्रि संवाद है। इस संवाद में अत्रि को याज्ञवलक्य अविमुक्तेश्वर क्षेत्र या वर्तमान काशी विश्वनाथ धाम जहां ज्ञानवापी मस्जिद स्थित है, उसका महत्व बताते हैं।
अत्रि अपने गुरु याज्ञवलक्य से पूछते हैं कि अव्यक्त और अनंत परमात्मा को कैसे प्राप्त किया जा सकता है। तब याज्ञवलक्य उन्हें अविमुक्तेश्वर क्षेत्र जाने की सलाह देते हैं। कहते हैं कि अव्यक्त और अनंत परमात्मा का स्वरुप वहीं प्रतिष्ठित है। यह वाराणसी में हैं और वहीं अविमुक्तेश्वर क्षेत्र में जाकर उस अनंत और अव्यक्त परमात्मा की उपासना की जा सकती है। इसी अविमुक्तेश्वर क्षेत्र (जहां आज काशी विश्वनाथ कॉरिडोर और ज्ञानवापी मस्जिद है) में मनुष्यों के प्राण त्यागने के वक्त शिव उन मनुष्यों के कानों में तारक मंत्र देते हैं और मनुष्य इस मंत्र को सुन कर मोक्ष प्राप्त कर लेता है। इन ग्रंथों के अलावा ब्रह्मवैवर्त पुराण, अग्निपुराण, मत्स्यपुराण आदि में ज्ञानवापी कुएं और अविमुक्तेश्वर क्षेत्र की चर्चा आई है। मंदिर का निर्माण सबसे पहले सतयुग में राजा हरिश्चंद्र ने करवाया था। राजा हरिश्चंद्र के बाद चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य ने इस मंदिर का पुनः जीर्णोद्धार करवाया। यह मंदिर इसके बाद सैंकड़ो सालों तक बना रहा। इस मंदिर को ही बाद में अविमुक्तेश्वर महादेव मंदिर, विश्वेश्वर मंदिर के अलावा काशी विश्वनाथ मंदिर के नाम से भी पुकारा जाने लगा।
तहखाने में आज भी मौजूद है गर्भगृह
दावा है कि मस्जिद के भीतर आज भी विश्वनाथ जी का पूरा गर्भगृह मौजूद है जिसे तहखाना बोला जाता है। मंदिर के सेवायत पुजारी सोमनाथ व्यास के परिवार ने मस्जिद की बेरीकेटिंग से पूर्व सब देख रखा है। आज श्रंगार गौरी को बेरीकेटिंग से बाहर कर दिया है। जिसकी बसंत नवरात्रि में पूजन की अनुमति मिलती है। विश्वनाथ मंदिर में नंदी की प्रतिमा के सामने दीवार को देखकर अंधा भी कह देगा कि यह मस्जिद नहीं मंदिर है। आज भी मस्जिद की बुनियाद पर प्राचीन मंदिर के अवशेषों को देखा जा सकता है और मस्जिद बनाने वालों ने यह अवशेष केवल हिन्दुओं को अपमानित करने के लिए छोड़ दिए थे।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं