बारिश में बढ़ी है भुने अनाज की मांग,देर शाम तक चलती है खरीददारी

 वैसे तो भुने हुए चने,मक्का,मटर आदि का स्वाद अलग ही अलग होता है। गांवों में पहले  शाम को भुने दाने का खूब प्रचलन हुआ करता था। परिवारों का आकार बड़ा होने के कारण हर घर में भूज के यहां जाकर किलो आधा किलो दाना भुनाया जाता था जो अचार,चटनी और काला नमक के साथ खाया जाता था लेकिन परिवारों के होते छोटे आकार, नीलगाय और छुट्टा पशुओं के कारण चना,मटर और मक्के की बुआई किसान कम करने लगे जिस कारण भुने दाने खाने का प्रचलन कम होता गया।

इन सबके बावजूद आज भी बारिश के मौसम में लोग भुने को खाना पसंद करते हैं।यह विकास खंड मछलीशहर के बंधवा बाजार का दृश्य है जहां देर शाम को भी लोग भुने दाने के लिए भट्ठी के पास खड़े हैं।दाना भुनने वाले हरिश्चन्द्र गौड़ कहते हैं कि वैसे तो पूरे साल वे बाजार में दाना भुनकर बेचते हैं लेकिन बारिश के मौसम में बिक्री बढ़ जाती है ।अगर बारिश जमकर होती तो मांग और बढ़ जाती। भुने हुए दाने की बढ़ी मांग के पीछे वह दूसरा कारण सावन के महीने को भी मानते हैं क्योंकि इस समय लोग मीट,मछली खाने से परहेज़ करते हैं ऐसे में तो सबकी चल जाती है लेकिन दारू पीने वाले मीट मछली की जगह चखने के लिए भुने दाने का ही प्रयोग करते हैं। गांवों में भी लोग भुने दाने का पार्सल ले जाते हैं।
इस सम्बन्ध में गांव बामी के ग्रामीण अभिमन्यु प्रताप सिंह कहते हैं कि बहुत सारी कम्पनियों ने पैक बन्द भुने दाने का प्रचलन शुरू किया है लेकिन आज भी ताजे भुने दाने के स्वाद से पैकेट बंद भुने दाने की कोई बराबरी नहीं है।

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