'जीवन जीना है तो पेड़ को जिलाओ' ....
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जौनपुर। साहित्यिक और सांस्कृतिक संस्था कोशिश की मासिक काव्य-गोष्ठी बाबू रामेश्वर प्रसाद हाल,रास मंडल में प्रख्यात साहित्यकार गिरीश कुमार "गिरीश" की अध्यक्षता में संपन्न हुई। पथिक जी की वाणी वंदना के पश्चात नंद लाल समीर की रचना--'जीवन जीना है तो पेड़ को जिलाओ' पर्यावरण संरक्षण का महत्व बता गई। अमृत प्रकाश का शेर--क्या भरोसा मदद वे करें,भीड़ की ओर दौड़ने वाले। 'समाज को आईना दिखा गया। आर. पी. सोनकर की रचना--'तल्ख बगावत की आंधी को रोकोगे,कब तक आखिर कब तक। ' परिवर्तन की आश जगा गई। ओ.पी.खरे की रचना--संस्कृति निज देश का आधार है। 'राष्ट्रीय गौरव का बोध करा गई। आशिक जौनपुरी का शेर--बिती रात आंसू बहाते-बहाते/कलेजे में गम को दबाते-दबाते। प्रेम की पीर का चित्र खींच गया। अशोक मिश्र का दोहा __फटी नहीं क्यों छातियां,झुके नहीं क्यों शीश।
सभा मध्य चिल्ला रहे,कुछ उन्निस कुछ बीस। समाज के पाखंड पर धारदार प्रहार कर गया। जनार्दन अष्ठाना का गीत -- शहर जौनपुर क मर्तबा निराला बा,रंग ढंग आला बा। जौनपुर के आन-बान-शान का चित्र उकेर गया। प्रख्यात शायर अहमद निसार का शेर--____मैने इंसाफ के जंजीर पर सर मारा था/शाह से पहले ही दरबान निकल आया है।
गिरीश जी का शेर--मौत के साये में पलती है सुहानी ज़िन्दगी। दर्द ग़म आंसू मुहब्बत की कहानी ज़िन्दगी।।
,चैन से जीने नहीं देती गिरीश मजबूर हूं/कर रही है रोज मुझसे छेड़खानी जिंदगी। खूब पसंद किया गया।
प्रो. आर. एन.सिंह ने छीजते मानवीय मूल्यों पर औैर रामजीत मिश्र ने सामाजिक समरसता पर काव्य-पाठ किया।
डॉक्टर विमला सिंह की रचना नारी अस्मिता को समर्पित रही।
गोष्ठी में अनिल उपाध्याय ,रुपेश साथी ,सुरेंद्र यादव ,अशोक भाटिया ने प्रतिभाग किया।
आभार ज्ञापन प्रो. आर एन सिंह ने और संचालन अशोक मिश्र ने किया।