बननी थी उम्मीदों की 'ज्योति' बन गई 'ज्वाला'
प्रमोद जायसवाल
सोचा था ज्योति पढ़-लिखकर उम्मीदों की 'ज्योति' बनेगी मगर आज 'ज्वाला' बनकर आरोपों के तीर से भावनाओं को भस्म कर रही है। एसडीएम ज्योति मौर्या प्रकरण उम्मीदों और अरमानों पर कुठाराघात का ऐसा वाकया बन गया है, जिसने समाज में एक नई बहस के मुद्दे को जन्म दे दिया है। मुद्दा यह है कि शादी के बाद अब पुरूष अपनी पत्नियों को पढ़ाये या नहीं ? अगर पढ़ायें तो डर है कि कहीं वह ज्योति मौर्या न बन जाए। पद और प्रतिष्ठा पाने के बाद बदल न जाए। मुद्दा तर्कपूर्ण भले ही है मगर इसे न्यायसंगत नहीं कहा जा सकता। अगर तर्क हॉवी हुआ तो बहुत सी मेधावी पत्नियां अपने सपने साकार करने से वंचित रह जायेंगी। उनकी उम्मीदें परवान नहीं चढ़ पायेगी। तर्क यह भी है कि ज्योति मौर्या के पति आलोक ने अपनी पत्नी को पढ़ाने के लिए बहुत संघर्ष किया होगा। जिन बच्चों को अपने बाप से जुदा कर ज्योति मौर्या अपने साथ लेकर चली गई, कभी उन बच्चों को संभालते हुए आलोक ने ज्योति मौर्या को पढ़ने के लिए पूरा समय मुहैया कराया होगा। अपने जरुरतों को समेटकर पढ़ाई का पूरा खर्च वहन किया होगा। तर्क यह भी है कि शादी के समय सात जन्मों तक साथ रहने का वचन देने के बाद रिश्ते को दरकिनार कर दिया गया।
हम तो डूबेंगे सनम, तुम्हें भी ले डूबेंगे
पराये पुरूष के साथ प्यार के जुनून ने दो परिवारों को बर्बाद कर दिया। ज्योति मौर्या ने अपनी हंसती-खेलती दुनिया उजाड़ी ही, मनीष दूबे की जिंदगी में भी आग लगा दिया। मनीष दूबे पर विभागीय कार्रवाई की तलवार अलग से लटक रही। प्रशासनिक कदाचार के दोषी होने का शिकंजा कसता जा रहा है। जहां पहले खुशियां थी, चैन और सुकून था। आज उलझन, परेशानी के साथ बदनामी का बदनुमा दाग लग चुका है।
कई महिलाओं के सपनों पर फेरा पानी
पीसीएस में चयनित होने वाली ज्योति महिलाओं के लिए रोल मॉडल बनती। पुरूष अपनी महत्वाकांक्षी पत्नियों को शादी के बाद भी पढ़ाई के लिए प्रेरित करते। मायके में हसरत न पूरा कर पाने वाली महिलाओं को ससुराल में पढ़-लिखकर सपना साकार करने का मौका मिलता मगर ज्योति मौर्या ने पुरूष समाज को ऐसा सबक दिया, जिसने महिलाओं के सपनों पर पानी फेर दिया है। प्रकरण उजागर होने के बाद अब तक सैकड़ों लोग अपनी पत्नियों की पढ़ाई छुड़वाकर घर बिठा चुके हैं।
सामाजिक मर्यादा को किया तार-तार
एसडीएम ज्योति मौर्या और होमगार्ड जिला कमाण्डेन्ट मनीष दूबे भले ही पढ़-लिखकर अपनी मेहनत के बल पर बड़े प्रशासनिक अधिकारी बन गये मगर उन्होंने अपनी पारिवारिक प्रतिष्ठा का ख्याल नहीं रखा बल्कि सामाजिक मर्यादा को भी दरकिनार कर दिया। इसकी वजह से आज दोनों के परिवारों को जलालत झेलनी पड़ रही है और उपहास का पात्र बनना पड़ रहा है। अपने-अपने विभाग में भी किरकिरी हो रही है।
थोड़ी समझदारी से बन सकती है बात
यह सही है कि मामला अब बहुत आगे बढ़ गया है मगर समझौते की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है। ज्योति मौर्या को समझदारी दिखाते हुए परिवार को बिखरने से बचाने की कोशिश करनी चाहिए। ऐसा करके वह अपने साथ मनीष दूबे के परिवार के साथ भी न्याय करेगी। देश के बहुत सी महिलाओं के सपने को चूर-चूर होने से बचा लेगी। अपना खोया मान-सम्मान पुन: हासिल कर लेंगी।