विधिक साक्षरता, जागरूकता शिविर में दी गयी जानकारी
https://www.shirazehind.com/2023/07/blog-post_234.html
जौनपुर। अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश/एफ.टी.सी./सचिव पूर्णकालिक जिला विधिक सेवा प्राधिकरण प्रशान्त कुमार ने बताया कि उ0प्र0 राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण लखनऊ के निर्देशानुसार एवं जनपद न्यायाधीश/अध्यक्ष जिला प्राधिकरण वाणी रंजन अग्रवाल के निर्देशन में अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश/एफ.टी.सी./सचिव पूर्णकालिक जिला प्राधिकरण प्रशान्त कुमार की देख-रेख में ‘तहसील सभागार केराकत’ में महिलाओं को जागरूक किये जाने हेतु विधिक साक्षरता/जागरूकता शिविर का आयोजन हुआ।शिविर को सम्बोधित करते हुए अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश/एफ.टी.सी./सचिव पूर्णकालिक जिला प्राधिकरण ने बताया कि यौन उत्पीड़न को अनुचित यौन व्यवहार के रूप में परिभाषित किया गया है जो अपमानजनक, शर्मनाक या धमकी भरा है। कार्यस्थल में यौन उत्पीड़न दुनिया भर में एक व्यापक समस्या है। चाहे एक विकसित, विकासशील या अविकसित देश में महिलाओं के खिलाफ अपराध दुनिया भर में स्थानिक है। यह एक वैश्विक मुद्दा है जो पुरूषों और महिलाओं दोनों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। खासकर महिलाओं में यह आम होता जा रहा है।
यही कारण है कि उन्हें कन्या भू्रण हत्या, मानव तस्करी, पीछा करना, यौन शोषण, यौन उत्पीड़न और उनमें से सबसे भयानक अपराध, बलात्कार जैसे अत्याचारों का शिकार होना पड़ता है। इन प्रकरणों से सम्बन्धित महिलाओं को प्राप्त अधिकार व प्राप्त संरक्षण के संबंध में उनको अवगत कराया गया। तहसीलदार केराकत महेन्द्र बहादुर सिंह ने बताया कि कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम 2013 भारत में एक विधायी कार्य है जो महिलाओं को उनके कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से बचाने का प्रयास करता है। साथ ही केन्द्र/राज्य सरकार द्वारा चलायी गयी योजनाओं के बारे में विस्तारपूर्वक बताया गया।
श्रम प्रर्वतन अधिकारी नेहा यादव ने बताया कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 के तहत एक महिला के मौलिक अधिकारों का हनन और उसके जीवन के अधिकार और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गरिमा के साथ जीने और किसी भी पेशे को निभाने का अधिकार है। किसी भी व्यवसाय, व्यापार पर जिसमें यौन उत्पीड़न से मुक्त सुरक्षित वातावरण का अधिकार शामिल है। इसी प्रकार श्रम प्रर्वतन अधिकारी ने कारखाना एक्ट सहित अन्य श्रम कानूनों के तहत प्राप्त संरक्षण और अधिकतम कार्यावधि की अवधि, मातृत्व अवकाश उपलब्ध होने की व्यवस्था व कार्य स्थल पर शिशुओं को संरक्षित रखने की व्यवस्था व बच्चों को फिडींग करने का अधिकार आदि से अवगत कराया। साथ में कार्यस्थल पर यदि उनके साथ किसी प्रकार का यौन उत्पीड़न या अन्य किसी प्रकार का उत्पीड़न किया जाता है तो उनके संबंध में उच्चतम न्यायालय ने प्रदत्त विधि व्यवस्थाओं के द्वारा उनको क्या संरक्षण व अधिकार प्रदान किये गये है, उनसे अवगत कराकर श्रम से संबंधित विधियों से अवगत कराया।
रिटेनर लॉयर देवेन्द्र यादव ने बताया कि कारखाना अधिनियम 1948 के अंतर्गत 14 वर्ष से कम के किसी भी बालक को काम पर नहीं लगाया जा सकता। 14 वर्ष से अधिक आयु के बालक अर्थात 15 से 18 तक के किसी भी किशोर को तब तक काम पर नहीं लगाया जा सकता, जब तक डॉक्टर द्वारा प्रमाणित स्वास्थ्य प्रमाण पत्र नहीं मिल जाता। कुछ खतरनाक व्यवसायों में बालकों और महिलाओं को लगाना मना है। कारखाना अधिनियम में मजदूरी सहित वार्षिक अवकाश की सुविधा का भी वर्णन किया गया है। इस अवसर पर 60 महिला, पीएलवीगण रविन्द्र कुमार, शिवशंकर सिंह, सुनील कुमार, सुबाष यादव सहित अन्य ग्रामीण नागरिक उपस्थित रहे।
यही कारण है कि उन्हें कन्या भू्रण हत्या, मानव तस्करी, पीछा करना, यौन शोषण, यौन उत्पीड़न और उनमें से सबसे भयानक अपराध, बलात्कार जैसे अत्याचारों का शिकार होना पड़ता है। इन प्रकरणों से सम्बन्धित महिलाओं को प्राप्त अधिकार व प्राप्त संरक्षण के संबंध में उनको अवगत कराया गया। तहसीलदार केराकत महेन्द्र बहादुर सिंह ने बताया कि कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम 2013 भारत में एक विधायी कार्य है जो महिलाओं को उनके कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से बचाने का प्रयास करता है। साथ ही केन्द्र/राज्य सरकार द्वारा चलायी गयी योजनाओं के बारे में विस्तारपूर्वक बताया गया।
श्रम प्रर्वतन अधिकारी नेहा यादव ने बताया कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 के तहत एक महिला के मौलिक अधिकारों का हनन और उसके जीवन के अधिकार और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गरिमा के साथ जीने और किसी भी पेशे को निभाने का अधिकार है। किसी भी व्यवसाय, व्यापार पर जिसमें यौन उत्पीड़न से मुक्त सुरक्षित वातावरण का अधिकार शामिल है। इसी प्रकार श्रम प्रर्वतन अधिकारी ने कारखाना एक्ट सहित अन्य श्रम कानूनों के तहत प्राप्त संरक्षण और अधिकतम कार्यावधि की अवधि, मातृत्व अवकाश उपलब्ध होने की व्यवस्था व कार्य स्थल पर शिशुओं को संरक्षित रखने की व्यवस्था व बच्चों को फिडींग करने का अधिकार आदि से अवगत कराया। साथ में कार्यस्थल पर यदि उनके साथ किसी प्रकार का यौन उत्पीड़न या अन्य किसी प्रकार का उत्पीड़न किया जाता है तो उनके संबंध में उच्चतम न्यायालय ने प्रदत्त विधि व्यवस्थाओं के द्वारा उनको क्या संरक्षण व अधिकार प्रदान किये गये है, उनसे अवगत कराकर श्रम से संबंधित विधियों से अवगत कराया।
रिटेनर लॉयर देवेन्द्र यादव ने बताया कि कारखाना अधिनियम 1948 के अंतर्गत 14 वर्ष से कम के किसी भी बालक को काम पर नहीं लगाया जा सकता। 14 वर्ष से अधिक आयु के बालक अर्थात 15 से 18 तक के किसी भी किशोर को तब तक काम पर नहीं लगाया जा सकता, जब तक डॉक्टर द्वारा प्रमाणित स्वास्थ्य प्रमाण पत्र नहीं मिल जाता। कुछ खतरनाक व्यवसायों में बालकों और महिलाओं को लगाना मना है। कारखाना अधिनियम में मजदूरी सहित वार्षिक अवकाश की सुविधा का भी वर्णन किया गया है। इस अवसर पर 60 महिला, पीएलवीगण रविन्द्र कुमार, शिवशंकर सिंह, सुनील कुमार, सुबाष यादव सहित अन्य ग्रामीण नागरिक उपस्थित रहे।