आध्यात्मिक यात्रा
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आत्मशांति का एक, छोटा सा विश्व,अपने चारों ओर, बनाना है।
ध्यान से बनता, आभा मंडल,
विश्वशांति का, जो पैमाना है।।
आज में हम रहेंगे, कल की नींव पर,
भविष्य की चिंता, ना होगी फिकर।
सिर्फ आज होगा, हर ही दिन आज,
ध्यान ही रचेगा, भविष्य हस्ताक्षर।।
मंदिर जाएँ, दर्शन करने,
प्रदर्शन की, मंदिर जगह नहीं।
प्रदर्शन में, होता है अहंकार,
उसमें कुछ भी, वहाँ मिलता नहीं।।
आत्मा भाव में जब, दर्शन करेंगे,
मूरत बन जाएगी, एक दर्पण।
आत्मिक शांति मिले और होगा,
आत्मीयता में, दोषों का निवारण।।
समस्याओं को भी, धन्यवाद करें,
जिस कारण पहुँचे, ईश्वर दर।
अब रुक चरणों में, सानिध्य लेना,
चित्त अटका न रहे, समस्या पर।।
यहाँ सारा खेल, सिर्फ विचारों का,
उससे ही, बनती हैं इच्छाएं।
फिर कर्म उससे, प्रेरित घटते,
जीवन में, खड़ी होती बाधाएं।।
सब कुछ छूटे, छूट जाए मगर,
कभीं ध्यान न छूटे, रखना नजर।
ध्यान है संग तो,अच्छा साथ चले,
बुरा छूट जाएगा, बिन हुए खबर।।
——आत्मिक श्रीधर