कॉमन सिविल कोड धारा—370 और धारा—371
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एक बार राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी से किसी ने पूछा कि मुस्लिम लीग टू नेशन थिअरी की बात करती है, उस पर आपका क्या कहना है? गांधी जी ने कहा कि यह गलत है। देश में टू नेशन थिअरी हो ही नहीं सकती। क्रिस्चियन कहां जाएंगे? जैन का क्या होगा? बौद्धियों का क्या करेंगे? अगर यही आधार है देश बनाने का है तो इन धर्मों ने क्या गुनाह किया है? जब तक सामाजिक एकता नहीं होगी, तब तक इस देश को आजादी नहीं मिलेगी। 1945 में तत्कालीन वायसराय लॉर्ड बेवल से गांधी जी की कोलकाता में मुलाकात हो गई। गांधी जी ने बेबल से कहा कि देखिए हम जिस हाल में हैं, हमें छोड़ दीजिए और छोड़कर चले जाइए। हम अपने फैसले अपनी समस्याएं खुद हल कर लेंगे, क्योंकि जब तक आप रहेंगे आप आग में घी डालने का काम करते रहेंगे। बेवल को गांधी जी इन शब्दों में कह दिया कि आपकी जरूरत नहीं है, क्योंकि आपके रहते हिंदू मुस्लिम एकता हो ही नहीं सकती।व्हाइट हाउस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाषण के दौरान कहा कि लोकतंत्र हमारे खून में है। वहीं मोदी जी भारत आते हैं। हफ्ते के अंदर मोदी जी भोपाल में कहते हैं कि एक परिवार में 2 कानून कैसे हो सकते हैं। बीजेपी अपना तीसरा मुद्दा कॉमन सिविल कोड लागू करने की बात करती हैं। मोदी जी यू.सी.सी का कोई ड्राफ्ट पेस नहीं किये। क्या होगा? कैसे लागू हुआ? इसमें क्या-क्या प्रावधान है? केवल 1 महीने का समय लोगों के विचार जानने के लिए देते हैं। मोदी जी के विचार से अगर हम कॉमन सिविल कोड की बात करेंगे तो राम मंदिर और धारा 370 की तरह पहले मुसलमानों की तरफ से प्रक्रिया होगी लेकिन इसका उल्टा हुआ इसका सबसे पहले विरोध आदिवासियों ने किया। उत्तर पूर्वी राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने भी असमर्थता व्यक्त की मुसलमानों में केवल असदुद्दीन ओवैसी की तरफ से प्रतिक्रिया हुई जो लोगों के विचार से ओवैसी बीजेपी की बी टीम माने जाते हैं।
जदीद मरकज के संपादक हिशाम सिद्दीकी कहते हैं कि यूनिफॉर्म सिविल कोड मुसलमानों के मामलात से कोई टकराव नहीं है। पर्सनल ला बोर्ड के जो लोग राय देने लगे हैं, यह गलत है। कॉमन सिविल कोड है क्या? किस बात का विरोध जो मुसलमान इसका मुखालफन कर रहे हैं, वह बचकाना हरकत कर रहे हैं। वे आगे कहते हैं कि कोई भी सरकार आ जाय, संविधान के मूलभूत ढांचे में कोई छेड़छाड़ नहीं कर सकता। जब तक संविधान का मूलभूत ढांचा रहेगा तब तक मुसलमानों के पर्सनल मामलात में कोई छेड़छाड़ नहीं कर सकता।
इस पर जाने-माने पत्रकार अशोक वानखेडे कहते हैं कि मुसलमान मोदी जी को अच्छी तरह से जानते हैं। उनका कहना है कि मोदी जी कॉमन सिविल कोड की जगह हिंदू कोड बिल तो नहीं ला रहे हैं। इसका सबसे पहले विरोध आदिवासी जनजातियों ने किया है। 2011 के जनगणना के अनुसार भारत में 9 करोड़ आदिवासी थे।
इस समय एक आंकड़े के अनुसार भारत में लगभग 13 करोड़ आदिवासी है। उत्तर पूर्व के 11 राज्यों में लगभग 220 जनजातियां है। इन जनजातियों को संसद के एक एक्ट के मुताबिक उनको विशेषाधिकार प्राप्त है कि भारत सरकार उनके धार्मिक मामले शादी-विवाह उत्तराधिकार में संस्कार और संस्कृत के मामले में इत्यादि में किसी भी मामले में दखलंदाजी नहीं करेगी। इसके अलावा भारत के अन्य राज्यों में जो जनजातियां हैं। उनके भी अलग-अलग कुलदेवता/कुलदेवियां रीत—रिवाज हैं। यह सब जातियां, हिंदू धर्म को नहीं मानतीं। यह श्सरना धर्म को मानते हैं और फैसला किया है। हम अगली जनगणना में हिंदू धर्म को नहीं, बल्कि सरना धर्म ही लिखेंगे। भारतीय जनता पार्टी इसी को लेकर परेशान है। उत्तर पूर्व की सभी सरकारों ने भी कॉमन सिविल कोड लागू करने में असमर्थता जाहिर की है।
जूनियर मोदी यानी सुशील मोदी जो पार्लियामेंट के स्टैंडिंग कमेटी लॉ के चेयरमैन हैं, वे कहते हैं कि नहीं—नहीं। हम एक प्रपोजल देना चाहते हैं कि हर एक्ट एवं कानून में एक्सेप्शन (अपवाद) होते हैं। यह एक अपवाद है, इसलिए हम इन जनजातियों को अलग रखेंगे यहां गांधी जी की एक बात याद आती है कि 13 करोड़ आदिवासियों के लिए यह अपवाद है तो 26 करोड़ (लगभग 20 करोड़ मुसलमान लगभग 2 करोड़ 75.80 लाख सिख और सवा 3 करोड़ ईसाई) ने आपका क्या बिगाड़ा भाई? भारतीय जनता पार्टी आरएसएस एवं हिंदू संगठन के लोग बड़े जोर—शोर से प्रचार किए कि धारा 370 एकमात्र ऐसी धारा है जो भारत को जोड़ने में एक दरार का काम करती है। इसको हटाना जरूरी है। धारा 370 एक ऐसे राज्य से संबंधित थी जहां मुसलमान बाहुल्य स्टेट है। एक देश एक विधान एक झंडा बहुत सारे दलीलें दी गईं। अचानक जहां विधानसभा नहीं थीं, जो विधानसभा से पास होना जरूरी था, चूंकि राजपाल का शासन केंद्र सरकार सीधे संसद से पास करके धारा 370 को जम्मू कश्मीर से बेदखल कर दिया।
मालूम होना चाहिए कि धारा 370 अभी संविधान में है। हालांकि अमेंडमेंट के रूप में है। धारा 370 हटा नहीं है। बीजेपी वाले खूब लड्डू बातें कि हमने कश्मीर से धारा 370 हटा दिया है। अब कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बन गया है। आप लोग जानते होंगे कि एक धारा 371 भी है जो 370 ही काफी है। इसको संविधान में 371 नाम दिया गया है जो भारत के उत्तर पूर्व के 11 राज्यों में लागू है जो इस प्रकार है। 371 ए नागालैंड 371बी आसाम सी, मणिपुर डी, आंध्र प्रदेश ई, सेंट्रल यूनिवर्सिटी इन, आंध्र प्रदेश एफ, सिक्किम जी, मिजोरम एच, अरुणाचल प्रदेश आई, गोवा 371 जे, कर्नाटका एच, 370 का दूसरा रूप है। उत्तर पूर्व के 11 राज्यों में से 8 में संविधान संशोधन हुए हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि केंद्र सरकार 371 के हटाए बिना कॉमन सिविल कोड नहीं लागू कर सकती। भारतीय जनता पार्टी का इसी कारण हाथ—पांव फूल है कि 370 हटाने में 75 साल लग गये।
भारत के गृह मंत्री अमित शाह ने पार्लियामेंट में कहा था कि 371 को भारत के संविधान से हटाने का सवाल ही नहीं उठता। अब जूनियर मोदी यानी सुशील मोदी कहते हैं कि मैं एक प्रपोजल देना चाहता हूं। भारत में जो 12.13 करोड़ जनजातियां हैं, उनमें छेड़छाड़ नहीं करनी है। अरे भाई जब कॉमन सिविल कोड लागू होगा तो पूरे भारत में 140 करोड़ पर लागू होगा। न गांधी जी के शब्दों में देश बनाने का यही एक आधार है तो सिख, जैन, बौद्ध और मुसलमान आपका क्या बिगाड़ा है? इस पर भारतीय जनता पार्टी भाग क्यों रही है, जब कोई कानून एक्ट पास होता है तो महामहिम राष्ट्रपति उस पर हस्ताक्षर करते हैं तो उसके बाद रूल्स रेगुलेशन बनाए जाते हैं। जैसे विवाह के नियम उत्तराधिकार के नियम धार्मिक संस्कार के रूल्स रेगुलेशन आदि तब इसका नोटिफाई किया जाता है। इनमें इतनी पेचिदगियां होती हैं कि इसको नोटिफाई करना मुश्किल हो जाता है।
उदाहरण के तौर पर सी.ए.ए के रूल्स एंड रेगुलेशन अभी तक नहीं बने हैं। एन.आर.सी का क्या हुआ? सिख गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी ने जो सबसे बड़ी कमेटी है और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान सिंह ने भी कह दिया कि हमें कॉमन सिविल कोड मान्य नहीं। हालांकि केजरीवाल ने कुछ हद तक इसे स्वीकार करते हैं। एआईडीएमके ने अपना समर्थन कॉमन सिविल कोड के मुद्दे पर वापस ले लिया है। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी जो एक ईसाई है, ने भी कहा कि हम इस पर विचार करेंगे, क्योंकि कॉमन सिविल कोड लागू होने से सिखों के कानून और ईसाइयों के कानून के रूल्स एंड रेगुलेशन काफी हद तक बदल जाएंगे। हमारा देश एक सभ्यता/संस्कृत वाला देश नहीं है। यहां राज्य नहीं, बल्कि जिले के संस्कृति में भिन्नताएं हैं। इस तरह से देखा जाए तो भारतीय जनता पार्टी अपने ही जाल में फंस गई है। भारत के हर राज्य में रूल्स एंड रेगुलेशन अलग-अलग है।
मेघालय एक ऐसा राज्य है जहां मातृसत्तात्मक है जिनमें कारों, खासी और जयंतिया आदिवासी मुख्य है। इन जातियों का कहना है कि अगर कॉमन सिविल कोड लागू हुआ तो पूरी संस्कृत के खिलाफ चली जाएगी। भाजपा कॉमन सिविल कोड की बात करती है। क्या आई.पी.सी. धारा सभी (हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई) के लिए एक समान नहीं है? अनुच्छेद 44 में लिखा है। अमित शाह जी कहते हैं कि सरकार समान नागरिक संहिता लागू करने का प्रयास करेगी। सरकार प्रयास करेगी। थोपेगी नहीं। समान नागरिक संहिता में अक्सर बात होती है कि मुसलमान 4 शादियां करता है। ज्यादा बच्चे पैदा करता है जबकि हिंदू में ऐसा नहीं कि हिंदू में 8 शादियां कर सकते हैं। उसकी मांगे पूरी करें। तलाक (विवाह विच्छेद) दीजिए। शादी करिए। कौन रोक रहा है। अरे भाई, आप आस-पास देखिए न कितने लोग 4 शादियां किए हैं। इस पर हिशाम सिद्दीकी कहते हैं कि पहले जब जंगे होती थी। आमने-सामने तलवार से लड़ाइयां होती थीं तो काफी लोग मरते थे। महिलाएं विधवा होती थीं। महिलाओं के मसले हल करने के लिए इस्लाम में प्रावधान था। एक मर्द 4 बीवियां रख सकता है।
जाने—माने पत्रकार विनोद कहते हैं कि इस महंगाई के जमाने में हम दो हमारे दो लड़कों को पढ़ाना नौकरी दिलाना इन सबमें कमर टूट जाती है। क्या सरकार के पास कोई स्कीम है। 3 पत्नियों से जो बच्चे पैदा होंगे, उसका खर्च सरकार उठाएगी। संविधान में एक प्रावधान है। श्नागरिक स्वतंत्रता का अधिकार व्यक्ति को स्वतंत्र रूप से जीने का अधिकार है। समाज आपको कुछ जबरन थोप नहीं सकती। बेरोजगारी 45 साल में चरम सीमा पर हर साल 2 करोड़ की नौकरी किसानों का मुद्दा जवानों (अग्निवीर), पहलवानों, (महिला पहलवान) का मुद्दा सबसे बड़ी बात विपक्ष का एकजुट होने से भाजपा को परेशान कर रही है। कॉमन सिविल कोड जिसको बीजेपी राम मंदिर धारा 370 की तरह तुरुप का पत्ता मान रही थी, वही उसके गले की फांस बन गई है।
हरी लाल यादव
सिटी स्टेशन, जौनपुर
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