एक गिरगिट था.. रंग बदलने में बड़ा माहिर था
कुछ समय पहले की ही बात है एक गिरगिट था। स्वभाव के अनुसार रंग बदलने में बड़ा ही माहिर था। इसके अलावा बहुत महत्वाकांक्षी भी था। पढ़-लिखकर बड़ा असफर बन गया। अफसरी में मन नहीं लगा तो 'आज के गांधी ' जी के पास गया। बोला, मैं आपके साथ समाज की सेवा करना चाहता हूं। उनके साथ आंदोलन का झंडा पकड़कर मंचों पर लहराने लगा। बड़े वसूल व सादगी की बात करता। भाषणों में राजाओं को भला-बुरा कहता। उनके ठाट-बांट पर तंज कसता था। एक दिन उसके मन में भी राजा बनने की सूझी। 'आज के गांधी' जी और उनके संदेशों को किनारे कर दिया। जनता के बीच जाकर अपना अलग-अलग रंग दिखाने लगा। जनता को तमाम सब्जबाग दिखाने में जुट गया। जनता उससे बहुत प्रभावित हुई और उसे राजा बना दिया। राजा बनने के बाद तमाम तामझाम से दूर होकर साधारण ढंग से आफिस जाता। दो कमरे के मकान में रहता। जनता वाह-वाह करने लगी। गिरगिट था बड़ा चालाक। गलत काम खुद न कर मंत्रियों से करवाता। लिहाजा उसके कई मंत्री को जेल जाना पड़ा। 'आज के गांधी ' ने उसे अपनी शिक्षा का वास्ता देकर समझाया मगर वह नहीं माना और उनसे कन्नी काट लिया।
'राज रंग' हाबी हुआ तो दो कमरे के मकान को महल में परिवर्तित कर दिया। एक दिन वह अपने महल की छत पर टहल रहा था। 'सबसे बड़े राजा' के महल को देखा तो उसके मन में 'बड़ा वाला राजा' बनने के लड्डू फूटने लगे। देश के सभी राज्यों के राजाओं से सम्पर्क कर समर्थन जुटाने में जुट गया। उसके बाद 'सबसे बड़े राजा' को भला-बुरा कहने लगा। उन्हें अनपढ़ और गंवार बताने लगा। देश व विदेश वाले 'बड़े राजा' का भले ही आदर, सम्मान करते और कामकाज की तारीफ करते मगर वह उन्हें 'दोस्तबाज' व 'दगाबाज' बताने लगा। अब देखना है कि उसका 'बड़े राजा' बनने का सपना पूरा होता है कि नहीं।