कम दाम के चलते भेड़ों के बाल कटाई की मजदूरी नहीं हो पा रही वसूल, सुनिए पालको का दर्द
मछलीशहर तहसील क्षेत्र के बसुही नदी के किनारे तथा उसके अगल -बगल बसे गांव बामी, राजापुर, किसुनदासपुर, महापुर, देवकीपुर,लासा, अमोध,सजईकला, चितांव, भटेवरा, ऊंचडीह,भोड़ी, रामगढ़, करौरा, सोनहरा, नरसिंहपुर आदि गांवों में किसान बड़ी संख्या में खेती के साथ-साथ भेड़ और बकरियों के पालन का भी कार्य करते हैं।इस समय वे अपनी भेड़ों के बाल उतारने का कार्य कर रहे हैं।
यह विकास खंड मछलीशहर के गांव बामी का दृश्य है। जहां भेड़ों का बाल काट रहे मोतीलाल पाल ने कहते हैं कि भेड़ों के बाल कटाई का कार्य वर्ष में तीन बार किया जाता है। अषाढ़, कार्तिक और फाल्गुन में इस समय अषाढ़ की कटाई का कार्य चल रहा है। अगर समय से बालों की उतराई न की जाये तो इससे भेड़ों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। भेड़ों की एक दो दिन पहले धुलाई करनी पड़ती है फिर उनके बालों को काटा जाता है।एक भेड़ के बाल की कटाई में मुश्किल से एक बार में तीन से चार सौ ग्राम बाल निकलता है।ऐसे में जबकि एक पशुपालक दिन भर में आठ से दस भेड़ों के बाल काट पाता है।इस वर्ष 15 से 20 रुपए प्रति किलो ग्राम की दर से भेड़ों के बाल का दाम चल रहा है।इस हिसाब से बालों के दाम से उनकी दिन भर की मजदूरी भी नहीं निकल पा रही है।मजदूरी से बचने के लिए जितने भेड़ पालन करने वाले पशुपालक हैं वे आपस में मिलजुल कर बारी -बारी से एक- एक दिन एक दूसरे के भेड़ों की बाल की कटाई का कार्य कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि बाल कटाई के बाद वे भेड़ों को कीड़ी की दवा पिलाने का कार्य करेंगे क्योंकि बारिश में घास चरने पर भेड़ों के पेट में कीड़ी पड़ने की संभावना ज्यादा रहती है।
क्षेत्र के मोतीलाल पाल,दयाराम पाल, पंधारी पाल, अमरनाथ पाल, वंशराज पाल, राजनाथ पाल, पूर्णमासी पाल,ऊदल पाल, टिहुरी पाल आदि ने कहा कि सरकार को भेड़ों के बाल के गिरते दामों पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि इन्हीं की बदौलत उनकी रोजी रोटी चल रही है।