रास तो जीव का शिव के मिलन की कथा है
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जौनपुर। श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ सप्ताह के छठवें दिन का आरंभ पंडित आनंद मिश्रा के मार्गदर्शन में काशी से आए आचार्य लोकेश पांडेय , आचार्य नवनीत और आचार्य अमित द्वारा मंत्रोच्चारण और प्रभु के नाम के जयकारे से प्रारंभ हुआ। काशी से आए पुरोहितों के मंत्रोच्चारण की ध्वनि से क्षेत्र गुंजायमान हो उठा।
व्यास जी ने भगवान की अनेक लीलाओं में श्रेष्ठतम लीला रास लीला का वर्णन करते हुए बताया कि रास तो जीव का शिव के मिलन की कथा है। यह काम को बढ़ाने की नहीं काम पर विजय प्राप्त करने की कथा है। इस कथा में कामदेव ने भगवान पर खुले मैदान में अपने पूर्व सामर्थ्य के साथ आक्रमण किया है लेकिन वह भगवान को पराजित नही कर पाया उसे ही परास्त होना पड़ा है रास लीला में जीव का शंका करना या काम को देखना ही पाप है गोपी गीत पर बोलते हुए व्यास जी ने कहा जब जब जीव में अभिमान आता है भगवान उनसे दूर हो जाता है लेकिन जब कोई भगवान को न पाकर विरह में होता है तो श्रीकृष्ण उस पर अनुग्रह करते है उसे दर्शन देते है।
बासुरी कृष्ण की बाजेगी, प्रेम में राधा नाचेगी….भजन पर भक्त झूम उठे। उन्होंने महारासलीला, श्री उद्धव चरित्र, श्री कृष्ण मथुरा गमन और श्री रुक्मिणी विवाह महोत्सव प्रसंगों पर विस्तृत विवरण दिया। लीला का मंचन देख भाव विभोर हुए दर्शक। श्री रुक्मिणी विवाह महोत्सव प्रसंग पर व्याख्यान करते हुए उन्होंने कहा कि रुक्मिणी के भाई रुक्मि ने उनका विवाह शिशुपाल के साथ निश्चित किया था, लेकिन रुक्मिणी ने संकल्प लिया था कि वह शिशुपाल को नहीं केवल गोपाल को पति के रूप में वरण करेंगी। उन्होंने कहा कि शिशुपाल असत्य मार्गी है और द्वारकाधीश भगवान श्री कृष्ण सत्यमार्गी इसलिए मै असत्य को नहीं सत्य को अपनाऊंगी। अत: भगवान श्री द्वारकाधीश जी ने रुक्मिणी के सत्य संकल्प को पूर्ण किया और उन्हें पत्नी के रूप में वरण करके प्रधान पटरानी का स्थान दिया। रुक्मिणी विवाह प्रसंग पर आगे कथा वाचक ने कहा कि इस प्रसंग को श्रद्धा के साथ श्रवण करने से कन्याओं को अच्छे घर और वर की प्राप्ति होती है और दांपत्य जीवन सुखद रहता है। इस पावन प्रसंग के दौरान दान की विशेष महिमा है।
भगवान श्रीकृष्ण के विवाह प्रसंग को सुनाते हुए बताया कि भगवान श्रीकृष्ण का प्रथम विवाह विदर्भ देश के राजा की पुत्री रुक्मणि के साथ संपन्न हुआ लेकिन रुक्मणि को श्रीकृष्ण द्वारा हरण कर विवाह किया गया। इस कथा में समझाया गया कि रुक्मणि स्वयं साक्षात लक्ष्मी है और वह नारायण से दूर रह ही नही सकती यदि जीव अपने धन अर्थात लक्ष्मी को भगवान के काम में लगाए तो ठीक नही तो फिर वह धन चोरी द्वारा, बीमारी द्वारा या अन्य मार्ग से हरण हो ही जाता है। धन को परमार्थ में लगाना चाहिए और जब कोई लक्ष्मी नारायण को पूजता है या उनकी सेवा करता है तो उन्हें भगवान की कृपा स्वत: ही प्राप्त हो जाती है।
कथा व्यास डॉ द्विवेदी जी ने कंस वध की कथा सुनाते हुए बताया कंस का अर्थ है अभिमान और अभिमान की दो पत्नियां हैं अस्ति और प्राप्ति। अस्ति अर्थात् ये मेरा है और प्राप्ति अर्थात् यदि ये मेरा नहीं है तो ये मुझे प्राप्त करना है। डॉ द्विवेदी जी ने कहा कि भागवत कथा का श्रवण आत्मा का परमात्मा से मिलन करवाता है।
कथा विश्राम के समाजसेवी श्री विवेक पाठक 'सोनू' जी, मनोज चतुर्वेदी, संजय पाठक जी, संस्था के अध्यक्ष शशांक सिंह "रानू" सहित जनपद के कई गणमान्य लोगों ने आरती किया और पुष्पांजलि समर्पित किया। श्रीमद भागवत कथा के इस पावन अवसर पर मुख्य यजमान के रूप में श्रीमती प्रतिमा गुप्ता पत्नी श्री गणेश साहू जी, श्रीमती पूजा मिश्रा पत्नी श्री संतोष मिश्र जी और श्रीमती माधुरी देवी पत्नी हीरालाल मोदनवाल ने कथा का पूर्ण श्रद्धा के साथ कथा का रसास्वादन किया। श्रोता के रूप मे श्रीकांत माहेश्वरी जी, सम्मी गुप्ता जी, संजय केडिया जी, अखिलेश पांडेय जी, डॉ ब्रह्मेश शुक्ला जी, प्रमोद कुमार जी, संजय पाठक जी, नीरज उपाध्याय जी, मनोज गुप्ता जी, डॉ गंगाधर शुक्ल जी, कपिल जी, अनुज जी, सोमेश गुप्ता जी, गोपाल जी, निशाकांत द्विवेदी जी,आशीष यादव जी आदि लोग कथा का रसपान किया। व्यवस्था प्रमुख पंडित आनंद मिश्रा जी ने बताया कि कथा प्रतिदिन सायं पांच बजे से हरी इच्छा तक चलेगी। संस्था के अध्यक्ष शशांक सिंह "रानू" जी ने सभी भक्तों के प्रति आभार व्यक्त किया।