होली की तैयारी में गुझिया से गुलजार हो रही रसोई
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होली का त्योहार यानी खाने- पीने की मौज और रंग -गुलाल की बहार।होली के अवसर पर अनेक पकवानों और मिठाई को घर पर बनाने या बाजार से खरीदने का प्रचलन पुराना है लेकिन गुझिया इन सबमें सबसे अधिक लोकप्रिय है।होली पर घर आने वाले मेहमानों के आवभगत में सबसे पहले गुझिया जरूर परोसी जाती है। गुझिया को बनाने में मैदा, चीनी,सूजी और रिफाइंड ऑयल सब के सब की आपूर्ति रिजर्व स्टाक से मांग के अनुसार बढ़ाई जा सकती है लेकिन गुझिया में पड़ने वाला खोया सबसे महत्वपूर्ण चीज है। जिसकी आपूर्ति एकाएक नहीं बढ़ाई जा सकती। चूंकि इस समय शादी -विवाह का दौर चल रहा ऊपर से होली का त्योहार ऐसे में डेरी प्रोडक्ट की डिमांड पीक पर है। सामान्य दिनों की तुलना में इनकी मांग इस समय कई गुना बढ़ गई है। डिमांड की तुलना में सप्लाई काफी पीछे छूट चुकी है। मांग और आपूर्ति में भारी अन्तर के चलते डेरी प्रोडक्ट की कीमतें आसमान छू रही हैं।ऐसे में मिलावट खोरों के लिए अच्छा अवसर चल रहा है। शहरी इलाकों में ज्यादातर परिवारों में गुझिया को सीधे बाजार से लोग खरीदते हैं , इसके उलट जनपद के ग्रामीण इलाकों की ज्यादातर गृहिणियां अपने घर पर ही गुझिया और मिठाइयां तैयार करने में लगी हुई हैं। ग्रामीण इलाकों में जिन परिवारों के पास दुधारू पशु नहीं हैं। पड़ोसी उन्हें एक दो दिन का दूध दे देते हैं जिससे हर घर में गुझिया जरूर बन जाये।ग्रामीण गृहिणियां पहले से ही चिप्स पापड़ तैयार कर ली हैं केवल उन्हें तलना शेष है। गुझिया को लेकर विकास खंड मछलीशहर के गांव बामी की गृहणी पुष्पा सिंह कहती हैं कि जब सबको मालूम है कि बाजार इस समय डेरी प्रोडक्ट की भारी मांग के चलते विश्वास के लायक नहीं है तो ऐसे में थोड़ा बहुत मेनहत करके गुझिया और मिठाइयां घर पर ही बना लेने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। आखिर होली भी तो साल में एक ही बार आती है ।हर जरूरत के लिए आज की पीढ़ी का बाजार पर ही आश्रित होना कोई अच्छी बात नहीं है। आरामतलबी के चलते सब कुछ जानते हुए भी हम सक्रियता न दिखायें तो अपने स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही हमारी भी मानी जायेगी।