पतझड़ का दौर, पेड़ों में गिनती के बचे पुराने पत्ते
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जौनपुर। लगभग समाप्त हो चुकी ठंड और बढ़ते हुए तापमान के बीच मौसम परिवर्तन का असर पेड़ों की जैविक प्रक्रिया पर भी पड़ा है। जनपद के ग्रामीण हो या शहरी इलाकों के बाग -बगीचों में जैसे ही हल्की हवा चलती है पेड़ों से पीले पत्तों की झर - झर कर गिरने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।आम, शीशम, पीपल,नीम, महुआ आदि के पत्तों से जमीन ढकी हुई लगती है।यह विकास खंड मछलीशहर के गांव बामी का दृश्य है जहां पीपल के पेड़ में इस समय गिनती मात्र के पुराने पत्ते बचे हुए हैं।बाग बगीचों में बिखरे हुए ये सूखे पत्ते कुदरत के अटल नियम का एहसास दिलाते हैं कि प्रकृति समय के साथ परिवर्तित होती रहती है। पुराने के हटने के बाद नवीन स्थान ग्रहण कर लेता है। पेड़ों से टूटकर ये पत्ते जमीन में सड़कर फिर इन्हीं पेड़ों का सम्वर्द्धन करते रहते हैं।इस चक्रीय सिलसिले का न आदि है और न अन्त। बगीचों में सूखे पत्तों से खुश विकास खंड मछलीशहर के गांव बामी के अम्बिका गौड़ कहते हैं कि इन सूखे पत्तों को बटोर लिया जाता है इकट्ठा करके इसका प्रयोग ईंधन के रूप में भट्ठी में दाना भूनने के काम में लाया जाता है।नीम के सूखे पत्तों को सुलगा कर मच्छरों को भगाने में मदद ली जाती है।बामी के ही किसान रामकृपाल यादव कहते हैं कि घरों के आस- पास गिरे इन सूखे पत्तों को गड्ढों में डालते रहना चाहिए और ऊपर से गोबर की परत बिछा देनी चाहिए। सूखे पत्तों और गोबर की परत कुछ दिनों बाद सड़कर अच्छी कम्पोस्ट खाद बन जाती है जिसका प्रयोग खेतों की उर्वरा शक्ति बढ़ाने में किया जा सकता है।