विकास से केंद्र में मानव का होना आवश्यक है
जौनपुर। पंडित दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद का उद्देश्य व्यक्ति एवं समाज की आवश्यकता को संतुलित करते हुए, प्रत्येक मानव के लिए गरिमापूर्ण जीवन प्रदान करना है।'-उक्त उद्गार जगतगुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय चित्रकूट के कुलपति प्रो.योगेश चंद्र दुबे ने तिलकधारी स्नातकोत्तर महाविद्यालय में उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के सहयोग से आयोजित द्वि-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी 'एकात्म मानववाद-आध्यात्मिकता का द्वार' के समापन सत्र में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि एकात्म मानववाद प्राकृतिक संसाधनों के साधारण उपयोग का समर्थन करता है, जिससे कि जिन प्राकृतिक संसाधनों का हम उपयोग करते हैं उनकी पूर्ति हो सके।
उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान लखनऊ की प्रधान संपादक डॉक्टर अमिता दुबे ने कहा कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय के विचार राज्य एवं समाज के लिए बहुत उपयोगी हैं। उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति किसी व्यक्ति का शोषण करता है,वह व्यक्ति का ही नहीं बल्कि समाज का शोषण करता है। और समाज में अपनी पाश्विक प्रवृत्तियों का प्रदर्शन करता है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म मानववाद हमें शोषण से मुक्ति दिलाता है।
संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए टीडी कॉलेज के पूर्व प्राचार्य डॉ अरुण कुमार सिंह ने कहा कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय मानव और मानवता के हिमायत थे। उन्होंने मानव और मानव में विद बीच भेद नहीं किया। उनके लिए समस्त मनुष्य एक समान थे। इसी कारण उनका विचार आज उस समय से ज्यादा प्रासंगिक है।
संगोष्ठी में बोलते हुए महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो.आलोक कुमार सिंह ने कहा कि अध्यात्म मन को आत्मा से जोड़ता है और एकात्म मानववाद मनुष्य को मनुष्य से जोड़ता है। पं. दीनदयाल उपाध्याय ने व्यक्ति की संभावनाओं को तलाश कर उसे पूर्णता की ओर अग्रसर किया। उन्होंने कहा कि अंत्योदय अंतिम व्यक्ति का उदय है।
संगोष्ठी के संयोजक प्रोफ़ेसर रामकुमार गुप्त ने कहा कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय का मानना था कि जब तक देश में अंतिम व्यक्ति का उदय नहीं होगा,उसका जीवन सुख में नहीं होगा तब तक देश का नहीं होगा।
संगोष्ठी में विभिन्न राज्यों के लगभग 80 विद्वानों में प्रतिभाग कर अपने शोध पत्रिका वाचन किया।