पौध रोपण के पश्चात पौध संरक्षण में जुटे हैं ग्रामीण
वैसे तो पौधरोपण की असली परीक्षा अप्रैल और मई की भीषण गर्मी में होती है जब पौधे सिंचाई के अभाव में बेतहाशा सूखने लगते हैं किन्तु इस बार मानसून की बेरुखी ने ' सिर मुंडाते ही ओले पड़े ' की कहावत चरितार्थ कर दी ।5 जुलाई को पौधरोपण के बाद सीधे 17 जुलाई को बरसात हुई और रोपित पौधों में से काफी पौधे सूख गये। विकास खंड मछलीशहर की ग्राम पंचायत बामी में भी 5 जुलाई को पौधरोपण का कार्य किया गया।
किन्तु सामुदायिक भवन परिसर में लगाये गये पौधों को बाल्टी से पानी डाल कर काफी सीमा तक बचा लिया गया। किन्तु भेड़ बकरियों ने इन खुले पौधों को अपनी खुराक बनाना शुरू कर दिया। जिसके लिये ग्राम प्रधान ने मछलीशहर रेंज के वन क्षेत्राधिकारी गौरव दयाल से ट्री गार्ड का अनुरोध किया किन्तु ट्री गार्ड देने में उन्होंने असमर्थता जताई लेकिन उन्होंने मदद के तौर पर तिलौरा पौधशाला में पड़ी बांस की पुरानी खप्चियां दिलवा दी।इसी को रिपेयर कर ट्री गार्ड के तौर पर पौधों को जानवरों से बचाने का प्रयास जारी हैं।
जानवरों द्वारा काटे गए पौधों के स्थान पर नये पौधे लगाकर घेराबंदी की जा रही है।पौधों को सींचकर बचाने वाले ग्रामीण संजय सरोज इस नेक कार्य में मदद के लिए वन क्षेत्राधिकारी को धन्यवाद देते हुए कहते हैं कि पौधरोपण का कार्य जितना सरल है, पौध संरक्षण का कार्य उतना ही ज्यादा कठिन है वह सभी से पौध संरक्षण में अपने ही जैसे सहयोग की अपेक्षा करते हैं जिससे पौधरोपण अपने अंतिम लक्ष्य को फलीभूत कर सके।