44 अंग्रेजों को ढेर करने वाले रणबांकुरों की शहादत का किया जा रहा अपमान
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केराकत/मुफ्तीगंज, जौनपुर। शहीद स्तम्भ को स्थानीय जनता व गैरजिम्मेदार अधिकारी, जनप्रतिनिधि कैसे तिरस्कृत करते हैं, उसका जीता-जागता उदाहरण केराकत तहसील क्षेत्र के मुफ्तीगंज के मध्य बाजार में स्थित महात्मा गांधी चौतरा से लगभग कुछ ही दूरी पर बने शहीद स्तम्भ को देखकर इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। बता दें कि महात्मा गांधी के चौतरे का पिलर जर्जर अवस्था में है जो किसी भी समय गिर सकता है। अगल-बगल कूड़ों का अम्बार लगा हुआ है परंतु न किसी स्थानीय ने इसकी जिम्मेदारी लेना उचित समझा और न ही प्रशासन द्वारा ही जर्जर अवस्था पड़े पिलर को मरम्मत करवाना ही उचित समझ रहे हैं। हम भारतवासी महात्मा गांधी को बड़े ही सम्मान के साथ राष्ट्रपिता कहते है परंतु मुफ्तीगंज के मध्य बाजार में स्थिति गांधी प्रतिमा देखकर हकीकत कुछ और ही बयां करती है। इसे इस देश का दुर्भाग्य कहे या कुछ और आखिर कब तक आजाद भारत में महापुरूषों व शहीदों का अपमान होता रहेगा?
शहीद स्तम्भ के अगल-बगल लगा कूड़ों का अम्बार, जिम्मेदार बेखबर
बता दें कि क्रांतिकारी जंग बहादुर पाठक पुत्र हरिभजन निवासी पाठखौली, शिवनाथ पुत्र मथुरा निवासी तारा व क्षत्रधारी पुत्र उमाचरन निवासी विजयीपुर ने कभी भी अंग्रेजों की अधीनता को स्वीकार नहीं की। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जंग-ए-आजादी में कूद पड़े और 44 अंग्रेजों को तीनों क्रांतिकारियों ने जौनपुर शाही पुल के पास मार गिराया था जिसके बाद अंग्रेजी शासकों ने खलबली मच गई। अंग्रेजी हुकूमत अपनी कूटनीति की बदौलत धोखे से तीनों क्रांतिकारियों को पसेवा गांव के समीप पकड़कर एक महीने के कारावास में रखकर उनके साथ बर्बता की सारी हदें पार कर दी जिससे कारण उनका निधन हो गया। उनकी वीरता व शौर्य की याद में मुफ्तीगंज बाजार के मध्य में शहीद स्तम्भ का निर्माण कराया गया है परंतु आज भी शहीद स्तम्भ के अगल-बगल कूड़ों का ढेर लगा हुआ है जिसे देखकर दुःख होता है। सबसे खास बात जिला मुख्यालय व केराकत तहसील के मुख्य मार्ग पर स्थित होने से अधिकारियो व जनप्रतिनिधि का आना-जाना लगातार लगा रहता है। विगत महीने में इसी रास्ते से होकर पूर्वांचल विश्वविद्यालय की कुलपति निर्मला एस. मौर्य व खेलमंत्री गिरीश चन्द्र यादव का काफिला शहीद स्मारक सेनापुर जाकर शहीदों के प्रति कसीदा पढ़ा परन्तु वापस लौटते समय मुफ्तीगंज के मध्य बाजार में शहीद स्तम्भ पर श्रद्धा सुमन अर्पित करना तो दूर की बात रही। शहीद स्तम्भ के अगल-बगल लगे कूड़े के अम्बार पर ध्यान आकृष्ट नहीं हुआ जो विचारकरणीय योग्य बात है।
बता दें कि क्रांतिकारी जंग बहादुर पाठक पुत्र हरिभजन निवासी पाठखौली, शिवनाथ पुत्र मथुरा निवासी तारा व क्षत्रधारी पुत्र उमाचरन निवासी विजयीपुर ने कभी भी अंग्रेजों की अधीनता को स्वीकार नहीं की। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जंग-ए-आजादी में कूद पड़े और 44 अंग्रेजों को तीनों क्रांतिकारियों ने जौनपुर शाही पुल के पास मार गिराया था जिसके बाद अंग्रेजी शासकों ने खलबली मच गई। अंग्रेजी हुकूमत अपनी कूटनीति की बदौलत धोखे से तीनों क्रांतिकारियों को पसेवा गांव के समीप पकड़कर एक महीने के कारावास में रखकर उनके साथ बर्बता की सारी हदें पार कर दी जिससे कारण उनका निधन हो गया। उनकी वीरता व शौर्य की याद में मुफ्तीगंज बाजार के मध्य में शहीद स्तम्भ का निर्माण कराया गया है परंतु आज भी शहीद स्तम्भ के अगल-बगल कूड़ों का ढेर लगा हुआ है जिसे देखकर दुःख होता है। सबसे खास बात जिला मुख्यालय व केराकत तहसील के मुख्य मार्ग पर स्थित होने से अधिकारियो व जनप्रतिनिधि का आना-जाना लगातार लगा रहता है। विगत महीने में इसी रास्ते से होकर पूर्वांचल विश्वविद्यालय की कुलपति निर्मला एस. मौर्य व खेलमंत्री गिरीश चन्द्र यादव का काफिला शहीद स्मारक सेनापुर जाकर शहीदों के प्रति कसीदा पढ़ा परन्तु वापस लौटते समय मुफ्तीगंज के मध्य बाजार में शहीद स्तम्भ पर श्रद्धा सुमन अर्पित करना तो दूर की बात रही। शहीद स्तम्भ के अगल-बगल लगे कूड़े के अम्बार पर ध्यान आकृष्ट नहीं हुआ जो विचारकरणीय योग्य बात है।