धुंआधार छापेमारी के बाद भी ड्रग इंस्पेक्टर का हाथ क्यों रहा खाली?
सवाल उठता है कि इस तरह की गुणवत्ताहीन दवाओं के साथ नशीली और सरकारी दवाएं मेडिकल स्टोर तक इतनी बड़ी मात्रा में कैसे पहुंच रही हैं और इन दवाओं की आपूर्ति के स्रोत क्या है? क्या सचमुच चंगुल में आया यह मामला स्वयं मगरमच्छ है या उस तालाब की एक छोटी मछली जहां से यह खेल बदस्तूर जारी है। दूसरी तरफ सवाल यह भी उठता है कि उच्च अधिकारियों तक पहुंच जाने वाली यह महत्वपूर्ण सूचना से प्रतिदिन छापेमारी कर रहे संबंधित ड्रग इंस्पेक्टर कैसे अनजान रह गये? इस मामले का खुलासा उक्त ड्रग इंस्पेक्टर की कार्यशैली और क्षमता दोनों पर सवालिया निशान लगाता है। ज्ञात हो कि ड्रग इंस्पेक्टर ने जनपद में अपनी पहली नियुक्ति लेकर फरवरी माह में कार्यभार संभाला था। इन महीनों के दौरान उन्होंने 500 से भी ज्यादा दवा प्रतिष्ठानों पर औचक निरीक्षण कर जांच पड़ताल किया। इनकी कार्यशैली को लेकर एक मजाक चल निकला है। लोग आपस में कहने लगे हैं कि छापेमारी के लिए वर्ल्ड रिकार्ड बनाकर साहब गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड में नाम दर्ज कराने वाले हैं लेकिन हालात ऐसे बने हैं कि छापेमारी के लिए वर्ल्ड रिकार्ड बने ना बने, इन 500 से भी ज्यादा निरीक्षण के शून्य परिणाम ने उन्हें सुपर डक कहें, शून्य परिणाम देने का वर्ल्ड चैम्पियन बनाकर गिनीज बुक में नाम जरूर दर्ज करा दिया। श्री गुप्ता ने कहा कि यह शोध का विषय अवश्य होगा कि धुआंधार छापेमारी के दौरान साहब के तीर निशाने पर नहीं लगे या उन्होंने लगने ही नहीं दिया गया। मीडिया रिपोर्टों में इसकी चर्चा महीनों पहले से चल रही है और लगे हुए आरोप गम्भीर किस्म के हैं।