जौनपुर के बेटे ने इजाद किया ऑक्सीजन की बर्बादी रोकने वाली डिवाइस
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जौनपुर। अंग्रेजी में एक कहावत है, वन पेनी सेव मीन्स वन पेनी अर्न। अर्थात यदि आपने एक पैसा बचाया तो इसका मतलब एक पैसा कमाया। बचत के महत्व को बडी बारीकी से समझाती हुई यह कहावत आज इस कोविड-19 कोरोना काल के ऑक्सीजन संकट के हल के लिए लैंप पोस्ट बनी।
देश में कोरोना वायरस की दूसरी लहर के दौरान पैदा हुए ऑक्सीजन संकट के हल लिए तात्कालिक तौर पर विदेशों से उसका आयात किया गया और देश में आत्मनिर्भरता लाने के लिए जगह जगह नए संयंत्र को लगाने की मुहिम शुरू की गई। कुछ लोगों ने छोटे और प्रभावशाली ऑक्सीनेटर आयात करने और बनाने भी शुरू कर दिए ।
लेकिन इन सबके बीच कहावत के संदेश को चरितार्थ करते हुए ऑक्सीजन के प्रयोग में ही बचत लाने का एक अभिनव प्रयास हुआ। और यह प्रयास किया नगर के शहाबुद्दीन मोहल्ले के निवासी संप्रति हीरो डीएमसी हार्ट सेंटर के वरिष्ठ क्रिटिकल केयर स्पेशलिस्ट एसोसिएट प्रोफेसर डॉ विवेक गुप्ता ने।
शायद यह अपनी तरह का देश ही नहीं पूरी दुनिया में पहला प्रयास था। टेलीफोन पर हुई बातचीत में उन्होंने बताया कि घोर ऑक्सीजन संकट के समय उन्हें इस बात का ख्याल आया। डॉक्टर गुप्ता ने बताया "मैंने सोचा हम ऑक्सीजन तो पैदा नहीं कर सकते, लेकिन कोई तरीका अपनाकर हम इसी बचा तो सकते हैं"। जिससे यह दूसरे जरूरतमंदों के काम आए।
गहन अध्ययन के बाद यह निष्कर्ष निकला कि ऑक्सीजन की आवश्यकता सांस खींचते समय ही पड़ती है। जब सांस बाहर निकलती है उस समय ऑक्सीजन की कोई जरूरत नहीं होती । लेकिन ऑक्सीजन पर रखे गए मरीज को सिलेंडर से ऑक्सीजन का प्रवाह निरंतर जारी रहता है। अध्ययन से ज्ञात हुआ सांस निकलने के दौरान जा रही ऑक्सीजन अनायास बर्बाद हो रही है।
अब प्रश्न यह था इस बर्बादी को आखिर कैसे रोका जाय? इसके लिए तकनीकी विशेषज्ञों और सलाहकारों द्वय प्रीत पाल सिंह और हरमीत सिंह की मदद ली गई और आनन-फानन में एक ऐसी डिवाइस तैयार की गई जो आवश्यकता के अनुरूप ऑक्सीजन सप्लाई को निर्बाध जारी रखें। इसके बाद तैयार डिवाइस के सावधानीपूर्वक ट्रायल किए गए। ट्रायल में मिली आश्चर्यजनक सफलता ने इस प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने का हौसला दिया। इसके पश्चात हार्ट सेंटर में प्रारंभिक मॉडल का प्रयोग शुरु हो गया ।जिनसे अनुमानतः 20 से 30 फीसदी तक ऑक्सीजन की बचत होने लगी।
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कैसे काम करता है आक्सीसेवर
जी हां अभी इस डिवाइस का नामकरण नहीं हुआ है लेकिन वास्तव में यह आक्सीसेवर ही तो है।
वस्तुतः पेशेंट को ऑक्सीजन दिए जाने वाले सिस्टम में मामूली सा बदलाव किया जाता है। इस बदलाव के तहत मरीज को लगाए गए ऑक्सीजन मास्क में एक सेंसर लगाया जाता है । यह सेंसर मरीज द्वारा सांस खींचते समय आक्सीजन सिलेंडर पर लगे वाल्व को ऑक्सीजन सप्लाई चालू रखने और सांस छोड़ते समय इस सप्लाई को आंशिक रूप से बंद करने के आदेश अनवरत देता रहता है ।यह क्रम चलता रहता है और मरीज को बिना कोई नुकसान पहुंचाए ऑक्सीजन की बचत होती रहती है।
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कड़े है इसके सुरक्षा मानक
ऑक्सीजन जीवन की मूलभूत जरूरत है। प्राकृतिक ऑक्सीजन के प्रयोग में आने वाली बाधाओं से निपटने के लिए कृतिम ऑक्सीजन प्रयोग की जाती है । संकट के इन महत्वपूर्ण क्षणों में आक्सीजन की बचत की बात सामान्यतः गले नहीं उतरती। लेकिन हमें इसका दुरुपयोग तो रोकना ही होगा। यह कहना है ऑक्सीसेवर के परिकल्पनाकार डॉ विवेक गुप्ता का। उनका दावा है कि इसके प्रयोग से मरीज की चिकित्सा, स्वास्थ्य और जीवन पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता। इस विधि को प्रयोग में लाने के पहले सैद्धांतिक और प्रायोगिक दोनों तरीके से जाचा
परखा गया है। तैयार हुए प्रारंभिक मॉडलों को कड़ी निगरानी में प्रयोग किया जा रहा है और इससे संबंधित सभी खतरों पर निगाहें बनी हुई है। अभी तक निराश करने वाली कोई सूचना नहीं है। हम और हमारी टीम लगातार इस पर काम कर रही हैं। तैयार हुआ यह मॉडल अभी प्रारंभिक दौर में ही है ।सच कहा जाए तो अभी इस पर काफी काम बाकी है। सुरक्षा मानकों पर विशेष ध्यान रखते हुए इस डिवाइस में ऐसी व्यवस्था भी की गई है कि यदि किसी वजह से सेंसर अपना काम करना बंद कर दें तो ऑक्सीजन सप्लाई परंपरागत तरीके से नियमित जारी रहेगी।
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व्यवसायिक लाभ लेने से इनकार
चिकित्सक धरती के भगवान यूं ही नहीं कहे जाते हैं। ऑक्सीसेवर के परिकल्पनाकार और योजना को मूर्त रूप देने में दिन रात एक किए हुए
डॉ विवेक गुप्ता और उनकी टीम ने इस डिवाइस के व्यवसायिक लाभ लेने इनकार कर दिया । उन्होंने कहा डिवाइस की इंजीनियरिंग और प्रयोग में आई दूसरे कलपुर्जे सब कुछ सार्वजनिक है ।जो भी चिकित्सक या हॉस्पिटल जानकारी चाहेगा उसे उपलब्ध कराई जाएगी। प्रारंभिक रूप से डिवाइस काफी सस्ती है । व्यवसायीकरण ना होने से इस डिवाइस का इस्तेमाल हर चिकित्सालय में आसानी से हो सकता है। योजना को सार्वजनिक करने के पीछे उन्होंने एक उद्देश्य और बताया । उनका कहना है कि परिकल्पना और मॉडल सामने आने के बाद देश में और लोग भी इस डिवाइस की बेहतरी के लिए प्रयास करें। जिससे अच्छी डिवाइस जनसेवा के लिए उपलब्ध हो सके।
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कौन है डॉक्टर विवेक गुप्ता
जनपद वासी डॉ विवेक गुप्ता केराकत तहसील मुख्यालय के मूल निवासी है ।लेकिन निवास और शिक्षा जौनपुर नगर में हुई है ।
इनकी प्रारंभिक शिक्षा नगर के भारतीय विद्या मंदिर और नगर पालिका इंटर कॉलेज से हुई है। विज्ञान स्नातक इलाहाबाद विश्वविद्यालय एवं चिकित्सा स्नातक शिक्षा बीआरडी मेडिकल कॉलेज गोरखपुर से ग्रहण किया है ।संप्रति हीरो डीएमसी हार्ट सेंटर लुधियाना में एसोसिएट प्रोफेसर एवं वरिष्ठ क्रिटिकल केयर विशेषज्ञ के तौर पर सेवारत है इसके पूर्व भी डॉ विवेक गुप्ता चिकित्सा क्षेत्र में कई नए प्रयोग और अविष्कार कर चुके हैं। इनमें प्रमुख रूप से इलाज के दौरान चिकित्सकों और दूसरे मेडिकल स्टाफ की सुरक्षा के लिए लाइफ बाक्स का इजाद हैं ।जिसके प्रयोग से चिकित्सक दल को इलाज के दौरान कोरोना और दूसरे संक्रमण वाले रोगियों के संक्रमण के प्रभाव से बचाया जा सकता है।
इतना ही नहीं सल्फास जैसे जहर से
प्राण रक्षा के लिए इन्होंने एकमो मशीन के द्वारा अभिनव प्रयोग किया। और इसकी मदद से चिकित्सा जगत में पहली बार एक ऐसी चिकित्सा विधि प्रयोग की जो सल्फास के
जहर से निजात दिला रही है और लोगों की प्राण रक्षा कर रही है