नहीं रहा अब "मूछो वाला ", अधरों की मुस्कानों वाला,
https://www.shirazehind.com/2020/05/blog-post_238.html
स्व.राजमणि सिंह जी के लिए दो शब्द....😢😢😢😢
नहीं रहा अब "मूछो वाला ",
अधरों की मुस्कानों वाला,
हसीं ठिठोली करने वाला,
जन जन को अपनाने वाला,
आखिर वह क्यों चले गए...........😢
नही रह अब कोई "अगुवा",
कैसे होगा होली "फगुवा",
टूटे स्वजन मनाने वाला,
जन जन को अपनाने वाला,
आखिर वह क्यों चले गए..............😢
नही रहा मुस्काने वाला ,
सबको गले लगाने वाला,
"दलितों" को अपनाने वाला,
"द्वार- द्वार" पर जाने वाला,
आखिर वह क्यों चले गए...........😢
भाजपा की ज्योति जला कर,
"एडी -चोटी" जोर लगा कर,
स्वच्छ छवि अपनाने वाला,
परचम को लहराने वाला,
नही रहा अब "मूछो वाला",
अधरों की मुस्कानों वाला,
आखिर वह क्यों चले गए...........😢
सूना कर के बाग-बगीचा,
सुनी कर के फुलवारी,
छोड़ गया घर,बार,क्षेत्र को,
राजनीति की कोमल प्यारी,
"सत्य धर्म "अपनाने वाला,
नही रहा अब "मूछो वाला",
अधरों की मुस्कानों वाला,
आखिर वह क्यों चले गए..........😢
मरना-जीना "परम् सत्य" है,
धर्मग्यो की यही मति है,
इस समाज की रिति यही है,
"जगतपति की निति" यही है,
आखिर क्या अपराध था उनका,
जो हँसता परिवार रुलाया,
नही रहा अब "मूछों वाला",
अधरों की मुस्कानों वाला,
आखिर वह क्यों चले गए..........😢
नाम तो केवल "राजमणि" था,
पर समाज की "अमरमणि" था,
कोई उसका जोड़ नही था,
था प्रकाश का पुंज क्षेत्र का,
अंधियारे ने उसे बुझाया,
नही रहा अब "मूछो वाला",
अधरों की मुस्कानों वाला,
आखिर वह क्यों चले गए........😢
अमर नाथ पांडेय(एडवोकेट)😢😢😢😢😢
नहीं रहा अब "मूछो वाला ",
अधरों की मुस्कानों वाला,
हसीं ठिठोली करने वाला,
जन जन को अपनाने वाला,
आखिर वह क्यों चले गए...........😢
नही रह अब कोई "अगुवा",
कैसे होगा होली "फगुवा",
टूटे स्वजन मनाने वाला,
जन जन को अपनाने वाला,
आखिर वह क्यों चले गए..............😢
नही रहा मुस्काने वाला ,
सबको गले लगाने वाला,
"दलितों" को अपनाने वाला,
"द्वार- द्वार" पर जाने वाला,
आखिर वह क्यों चले गए...........😢
भाजपा की ज्योति जला कर,
"एडी -चोटी" जोर लगा कर,
स्वच्छ छवि अपनाने वाला,
परचम को लहराने वाला,
नही रहा अब "मूछो वाला",
अधरों की मुस्कानों वाला,
आखिर वह क्यों चले गए...........😢
सूना कर के बाग-बगीचा,
सुनी कर के फुलवारी,
छोड़ गया घर,बार,क्षेत्र को,
राजनीति की कोमल प्यारी,
"सत्य धर्म "अपनाने वाला,
नही रहा अब "मूछो वाला",
अधरों की मुस्कानों वाला,
आखिर वह क्यों चले गए..........😢
मरना-जीना "परम् सत्य" है,
धर्मग्यो की यही मति है,
इस समाज की रिति यही है,
"जगतपति की निति" यही है,
आखिर क्या अपराध था उनका,
जो हँसता परिवार रुलाया,
नही रहा अब "मूछों वाला",
अधरों की मुस्कानों वाला,
आखिर वह क्यों चले गए..........😢
नाम तो केवल "राजमणि" था,
पर समाज की "अमरमणि" था,
कोई उसका जोड़ नही था,
था प्रकाश का पुंज क्षेत्र का,
अंधियारे ने उसे बुझाया,
नही रहा अब "मूछो वाला",
अधरों की मुस्कानों वाला,
आखिर वह क्यों चले गए........😢
अमर नाथ पांडेय(एडवोकेट)😢😢😢😢😢