पालघर कांड:पुलिसकर्मियों ने किया उम्र कैद से दंडित अपराध,फिर भी नहीं हुई है एफआईआर, साजिश !

हिमांशु श्रीवास्तव एडवोकेट 
एक तरफ पूरा देश कोरोना वैरियर्स पुलिसकर्मियों पर पुष्प वर्षा कर रहा तो दूसरी तरफ वर्दी हुई दागदार
पुलिस का साधुओं को बचाने का प्रयास न करना तथा आरोपियों को हमला करने से न रोकना है दंडनीय
जौनपुर- कोरोना महामारी में चट्टान की तरह वैरियर के रूप में खड़े होकर और अपने जीवन को दांव पर लगाकर कार्य करने वाले पुलिसकर्मियों पर एक तरफ जहां भारत देश गर्व महसूस कर रहा है और जगह-जगह पुलिस कर्मियों पर पुष्प वर्षा हो रही है वहीं दूसरी तरफ  महाराष्ट्र के पालघर पालघर में हुई तीन-तीन हत्या घटना ने पुलिस की वर्दी को दागदार कर दिया। घटना के संबंध में वायरल हुए वीडियो में साफ दिख रहा है कि निरीह साधु पुलिसकर्मी को पकड़कर बचना चाह कर रहे हैं और भीड़ साधुओं को मार रही है  साधु हाथ जोड़कर अपनी जान की भीख मांग रहे हैं लेकिन पुलिसकर्मियों उन्हें बचाने और आरोपियों को रोकने का कोई प्रयास नहीं करते दिखे।भीड़ अंत में उन्हें जान से मार देती है।न सिर्फ दोनों साधू बल्कि ड्राइवर की भी पुलिस की मौजूदगी में भीड़ हत्या कर देती है।दिल दहला देने वाली इस घटना से पूरा देश स्तब्ध है।मॉब लिंचिंग की यह घटना उस समय होती है जब सात-आठ पुलिसकर्मी वहां मौजूद रहते हैं।क्या किसी नेता या अधिकारी या किसी पुलिसकर्मी को इस प्रकार भीड़ घेर कर मार रही होती तो भी पुलिसकर्मी इसी प्रकार खामोशी से खड़े रहते? वीडियो में साफ दिख रहा है कि पुलिसकर्मियों ने उन्हें बचाने का कोई प्रयास नहीं किया जिससे पूरे मामले में गहरी साजिश की बू की आती है।ऐसा इसलिए भी है क्योंकि मामले में 101 लोगों के खिलाफ पालघर के कासा थाने पर धारा 302,120 बी, 427,147,148,149 आईपीसी के तहत मुकदमा दर्ज हुआ है लेकिन  आरोपियों में कोई भी पुलिसकर्मी नहीं है।
भारतीय दंड संहिता के तहत पुलिस का यह कृत्य आजीवन कारावास से दंडनीय अपराध की श्रेणी में आता है अपराध में कृत्य के साथ साथ अवैध लोप भी अपराध की श्रेणी में आता है। जहां कोई अपराध लोक सेवक की मौजूदगी में हो रहा हो और वह उसे न रोके तो वह कानून के तहत दंडनीय होता है।आईपीसी की धारा 107 में दुष्प्रेरण की परिभाषा दी गई है।दुष्प्रेरण (1)उकसाने के द्वारा,(2)षड्यंत्र के द्वारा,(3)कार्य या अवैध लोप द्वारा शासय सहायता करने के द्वारा किया जाता है और दुष्प्रेरण  कि कुछ धाराओं में दुष्प्रेरण करने वाला उसी दंड से दंडनीय होता है जिस दंड से अपराध करने वाला होता है। अधिवक्ता विनोद श्रीवास्तव, विकास तिवारी व बृजेश सिंह का कहना है कि पालघर कांड में पुलिस कर्मियों का कृत्य अवैध लोप( गैर कानूनी ढंग से अपराध को न रोकना जहां रोकना दायित्व होता है) करके दुष्प्रेरण करने की श्रेणी में आता है।जब आरोपी साधुओं को मारने का कृत्य कर रहे थे तब पुलिसकर्मी अवैध लोप करके  अर्थात अपराध को न रोक कर आरोपियों को साधुओं की हत्या करने दिए।इस प्रकार पुलिसकर्मियों पर हत्या के दुष्प्रेरण का मामला बनता है। अगर पुलिस कर्मियों ने अपने वैधानिक कर्तव्य का पालन किया होता,हवाई फायरिंग किए होते या लाठियां बरसाई होते तो शायद दोनों साधुओं व ड्राइवर की जान बच जाती लेकिन पुलिस ने अपने कर्तव्य का पालन न करके अपनी मौजूदगी में अपराध होने देने का अवैध लोप करके सहायता द्वारा दुष्प्रेरण का अपराध किया जो धारा 109 आईपीसी के तहत उसी अपराध से दंडनीय है जिस अपराध से मुख्य आरोपी। अर्थात वहां मौजूद सात-आठ पुलिसकर्मियों पर हत्या के  दुष्प्रेरण का अपराध बनता है।धारा 302 में आजीवन कारावास या मृत्युदंड का प्रावधान है। जो मुख्य आरोपियों पर लगी है।इसी प्रकार आईपीसी की धारा 221 में आरोपियों को पकड़ने के लिए आबद्ध लोक सेवक यदि उन्हें पकड़ने का साशय लोप करता है तो वह 7 वर्ष के कारावास से दंडित किया जाएगा।पालघर कांड में भी पुलिसकर्मियों ने आरोपियों को पकड़ने या रोकने का प्रयास नहीं किया और अपराध होने दिया और तीन निर्मम हत्या के भागीदार बने लेकिन पुलिसकर्मियों के खिलाफ एफ आई आर दर्ज न होना और पुलिसकर्मियों का इस प्रकार घटनास्थल पर मौजूद होने के बावजूद साधुओं को बचाने या आरोपियों को रोकने का प्रयास न करने का अपराध करना एक बड़ी साजिश की संभावना  की ओर स्वत: इंगित करता है।यदि एक या दो पुलिसकर्मी रहते तो बात कुछ समझ में आती लेकिन जहां सात-आठ पुलिसकर्मी मौजूद हो वहां इस प्रकार तीन-तीन लोगों की हत्या हो जाने की बात गले के नीचे नहीं उतरती। एक और बिंदु सामने आया कि  घटना के 1 दिन पूर्व  ग्रामीणों ने एक सरकारी मेडिकल टीम को चोर समझकर हमला कर दिया था  उस टीम में इंस्पेक्टर डॉक्टर  और तीन पुलिसकर्मी  शामिल थे मुश्किल से उन लोगों ने ग्रामीणों से अपनी जान बचाई  इसके बाद  16 अप्रैल की रात  आदिवासी गांव के लोग  पहरेदारी कर रहे थे तभी  रात में कार गांव में पहुंची जिसमें  जूना अखाड़ा के दोनों साधु सुशील गिरी जी महाराज व  कल्पवृक्ष गिरी जी महाराज अपने ड्राइवर निलेश के साथ मौजूद थे विकार से गुजरात के सूरत अपने साथी के अंतिम संस्कार में जा रहे थे। रास्ते में पालघर में ग्रामीणों ने शोर होने के संदेह पर उनकी पीट-पीटकर पुलिस की मौजूदगी में हत्या कर दिया  बाद में कहा गया कि इलाके में अफवाह थी कि यहां बच्चा चोरी करने वाले घूम रहे हैं। इसी के शक में लोगों ने संतों पर हमला करके उनकी जान ले ली।यह भी समाचारों से प्रकाश में आया कि पुलिस ने उन्हें गांव के रास्ते जाने को कहा था।इससे भी साजिश का पता चलता है कि जब 1 दिन पूर्व  उसी  गांव के ग्रामीणों ने सरकारी मेडिकल टीम को चोर समझकर हमला किया  तो पुलिस ने उस रास्ते से साधुओं को जाने के लिए क्यों कहा?सच सामने आ सके इसीलिए मामले की सीबीआई जांच की भी मांग की जा रही है।साथ ही एक अधिवक्ता ने मुंबई में याचिका दायर कर राष्ट्रीय जांच एजेंसी से मामले की जांच कराने की अपील किया है।

Related

news 3965913232160484295

एक टिप्पणी भेजें

emo-but-icon

AD

जौनपुर का पहला ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल

आज की खबरे

साप्ताहिक

सुझाव

संचालक,राजेश श्रीवास्तव ,रिपोर्टर एनडी टीवी जौनपुर,9415255371

जौनपुर के ऐतिहासिक स्थल

item