सच्चे प्रेम की भी परीक्षा है यह लॉक-डाउन..!
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कुछ लोगों का मानना हो सकता है की दूर रहने से आपसी प्रेम बढ़ता है जबकि कुछ लोगों का मानना हो सकता है की पास रहकर आपसी प्रेम बढ़ता है | आज की परिस्थिति, और वातावरण ने लोगों को न केवल चिंतित किया है, बल्कि असुरक्षा की भावना को भी अप्रत्याशित रूप से बढ़ा दिया है जहा आपसी लगाव प्रेम मे व्यापक वृद्धि देखि जा सकती है | वही कही कही इसका व्यापक अभाव भी दिख सकता है | जब सब कुछ पाने या सब कुछ खोने की बात आती है तो प्रेम स्वतः बढ़ने लगता है क्योंकि दोनों परिस्थिति का कोई मोल नहीं है |
कई लोग आपसी प्रेम को फोन और सोशल मीडिया के माध्यम से बढ़ा रहें है वही कई लोग परिवार के साथ समय को व्यतीत कर प्रेम बढ़ा रहे है तो ऐसे मे ज्यादे खुश कौन है ? जो दूर है ? या पास या फिर वो जो प्रेम की लक्ष्मण रेखा से अभी दूर है | हालहिं मे कई समाचार पत्रों ने यह खबर प्रमुखता से प्रकाशित किया है की देश मे घरेलू हिंसा के केस बढ़ रहें है और इस बात की सत्यता पर कुछ हद तक बल भी मिल रहा है | लोग अपने क्रियाकलापों मे व्यस्त रहते थे तो किसी को अपने नजदीकी, प्रेम की अच्छाई या बुराई जानने का व्यक्त नहीं मिलता था पर अब पास होने की वजह से कई अच्छाई और कई बुराई भी सामने निकालकर आ रही है जिसका परिणाम आपसी विवाद मे वृद्धि के साथ-साथ इस तरह की घटनाए है |
वास्तव मे हमारे समाज ने अपने प्रेम को अपनी जरूरत के अनुशार ढाल लिया है | त्याग, सहयोग, दूसरों की खुशी, चेहरे पर मुस्कुराहट प्रेम की प्राथमिक आवश्यकता है जबकि लोगों के लिए अपने जरूरतों की पूर्ति ही प्राथमिकता है | शायद बहोत कम लोग होंगे जो प्रेम और अपनी इच्छापूर्ति की चाह मे अंतर कर पा रहे है | जहां पर अंतर स्पष्ट है वह प्रेम वास्तविक है जहां सिर्फ अपनी खुशी की बात है वह प्रेम का आधुनिक रूप है | यह दोनों तरफ से हो सकता है |
लॉक-डाउन ने जितना समय सभी को दिया है उतना न किसी को अभी तक मिला था और शायद भविष्य मे दोबारा भी न मिले | तो क्यों न ऐसा किया जाए की प्रेम की परिभाषा को समझा जाये, प्रेम के वास्तविक स्वरूप से कुछ सीखा जाये, मीरा के प्रेम, राधा के प्रेम को समझा जाये | हजारों की संख्या मे गोपियों के प्रेम को समझा जाये | स्वयं के लालच, द्वेष, खुशी, और अपने भावनाओ की पूर्ति से ऊपर उठ कर सच्चे प्रेम की तलाश अपने और अपनों मे किया जाए |
कुछ लोगों के लिए यह कहने की बातें भी हो सकती है पर सच्चाई से कोई ना नहीं कर सकता | आज हम सब आधुनिक प्रेम के चक्रव्यूह मे बधे हुए है और इस चक्रव्यूह से बाहर आने के लिए हमे ज्ञान की जरूरत पड़ेगी हा वही ज्ञान जो कृष्ण ने दिया था | हा वही ज्ञान जिसका उदाहरण श्री राम चंद्र ने दिया था | हा वही ज्ञान जिसे प्राप्त कर हनुमान जी ने सीना चीर कर प्रेम को पूर्ण होना दर्शाया था | आखिर कब तक हम आधुनिक प्रेम को ही सर्वोपरि मानते रहेगे | कब तक हम अज्ञानी बन कर ज्ञान से दूरी बना पायेगे | आइए इस लॉक-डाउन की अवधि मे अपने और अपनों के प्रति कर्तव्यों और दायित्वों की पूर्ति प्रेम की वास्तविकता के ज्ञान को प्राप्त कर के पूरा करे | क्योंकि प्रेम ही सर्वोपरि है, प्रेम ही सर्वश्रेष्ठ है, प्रेम ही सबसे अलग है |
डॉ. अजय कुमार मिश्रा (लखनऊ)