घरवन में गौरैया चहचहानी हो राम पिया नहीं आते

जौनपुर। धर्म व संस्कृति भारत की पहचान है तो लोक व शास्त्र में पगे फाग समेत गीत इसकी शान है।  लोक संस्कृति में घुली मिली अवधि व भोजपुरी मिश्रित यह  गायन विद्या जौनपुर को पीढ़ी दर पीढ़ी  विरासत में मिली  है।  समय की मार से बेजार होती इस कला का अस्तित्व बचाने के लिए सडेरी गांव के धौंकलगंज बाजार में इन्द्रजीत यादव के मेडिकल स्टोर पर फाग का आयोजन हुआ पहले लोग एक दूसरे को अबीर व  गुलाल लगाकर गले मिलकर एक दूसरे को होली की शुभकामनायें दी। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे इन्द्रजीत यादव ने बताया कि पारम्परिक होली गीतों में मधुरता, लावण्य, रस, अलंकार, उपमा, प्रकृति , के साथ सहज तारतम्यता का बोध होता है। इन गीतों में हमारे प्राकृतिक  समाज तथा पशु पक्षी आदि का चित्रण है। जिन्हें सुनकर हम इन विलुप्त हो रहे जीवो  के प्रति ध्यान आकृष्ट करते हैं। फागुनी गीतों को बनाने में कोयल कागा बोलल छतन पे बोलई मोरवा, तथा घरवन में गौरैया चहचहानी हो राम पिया नहीं आते आदि गीतों को गाया गया।कार्यक्रम में   विनोद पाण्डेय ने बताया कि आज समाज में फूहड़ गानों का प्रभाव बढ़ता जा रहा है समाज में या परिवार में ऐसे गानों को सुना नहीं जा सकता इसलिए परंपरागत गीतों को सुनने एवं सहेजने की आवश्यकता है। इस अवसर पर महादेव यादव,मुन्नु पाण्डेय, नन्दलाल यादव,राम आशीष पाण्डेय, राजकिशोर यादव, श्रीराम हरिजन, लालता प्रसाद यादव, रोहित यादव, रामसूरत, आदि लोग उपस्थित रहे।

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