भक्ति जितनी आसान है उतनी ही मुश्किल भी

जौनपुर। संत निरंकारी मण्डल के स्थानीय मीडिया सहायक उदय नारायण जायसवाल  ने दिल्ली में हुए भक्ति पर्व समागम में सद्गुरू माता सुदीक्षा जी महाराज के  संदेशों को बताते हुए कहा कि निरंकार प्रभु परमात्मा पर अगर हम आधारित रहेंगे तो निरंकार के गुण हमारे अंदर भी आयेंगे। भक्ति वह जीवन है जो इस निरंकार के साथ नाता जोड़कर व्यतीत होता है। भक्त बनने का मापदण्ड है सहजता का गुण और हर परिस्थिति में चाहे वह प्रतिकूल हो या अनुकूल, निरंकार पर स्थिरता कायम रखना। भक्ति की परिभाषित करते हुुए कहा कि भक्ति जितनी आसान है उतनी ही मुश्किल भी। परन्तु फिर भी युगों-युगों से इतिहास में भक्ति के मार्ग पर चलने के ही दिशानिर्देश दिये गये हैं। अगर भक्ति के गुण हर व्यक्ति में आ जाते तो हर व्यक्ति भक्त होता। सद्गुरू माता जी ने फरमाया कि भक्ति तब शुरू होती है जब यह ब्रह्म ज्ञान का वासा हमारे अंदर होता है। भक्ति केवल मन से ही की जाती है। यह दिखाने का विषय नहीं है। सद्गुरू माता जी ने भक्ति के तीन अहम् साधन - सत्संग, सेवा, सिमरन के महत्व को भी समझाया कि यह केवल तीन शब्द ही न बनकर रह जायें। इसे हम जीवन में जितना धारण करेंगे उतनी ही भक्ति हमारे जीवन में दृढ़ होती चली जाएगी। भक्त बनने के गुण प्रीति, नम्रता, विशालता, तंगदिली को छोड़ना, सहजता, करुणा, मन में जो भी सकारात्मक गुण हैं इनको जब तक अपनाते रहें और जीवन में लागू करते रहें, तभी यह भक्ति हमारी कायम रह सकती है। 

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