पवित्रता का पर्व का छठ पूजा का पर्व

जौनपुर। छठ पूजा की तिथि निकट आ रही है यह पूरी तरह से पवित्रता का त्योहार है। इस पर भूमंडलीकरण का असर नहीं पड़ा है। इस पर्व में परंपरा व पवित्रता को महत्व दिया जाता है। इसमें मिट्टी के चूल्हे, आम की लकड़ी, जांते में पीसे गए गेहूं का आटा, गुड़ और चावल का ही प्रयोग होता है। नगर से गांव तक अब जांता किसी भी घर में नहीं मिलता। इसलिए हर मोहल्ले में आटा चक्की की धुलाई कर छठ प्रसाद के लिए गेहूं की पिसाई मिल मालिक करते हैं।   लोक आस्था का महापर्व छठ हर्षोल्लास के अलावा अन्य कई तरह के रहस्य को भी अपने अंदर समेटे हुए है। आध्यात्म और योग के मेल का उदाहरण भी यह पर्व है। छठ का एक अर्थ हठयोग भी होता है। छठ व्रती चार दिनों तक बिना अन्न-जल ग्रहण किए रहते हैं। पूजा में भी काफी सावधानी बरती जाती है। हठयोग में अपने आप को कष्ट देकर ईश्वर को प्रसन्न करने की बात आती है। कुछ ऐसे ही प्रमाण छठ में भी मिलते हैं। जिनके यहां छठ नहीं होता है, वे भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पुण्य प्राप्ति का प्रयास करते हैं। खेत में उपजे गन्ना, अमरूद व अन्य ऋतु फल छठ व्रत में लोग व्रत करने वाले लोगों के घर पहुंचाते हैं। आर्थिक रूप से सक्षम लोग छठ के लिए सूप, नारियल, गेहूं, गुड़, दूध व अन्य पूजन सामग्री व्रतियों में बांटकर पुण्य प्राप्ति की कामना करते हैं।  छठ पूजा पूरी तरह से आस्था का पर्व है। इसमें शामिल होने के लिए गैर जनपदों में रहने वाले परिवार के सदस्य भी आते है। दीपावली में वह भले ही न आएं लेकिन छठ पर वह जरूर गांव में आते हैं। इसमें छठ घाट तक दउरा पहुंचाने में भी पूरी आस्था के साथ शामिल होते हैं। छठ पूजा   प्रसाद मिट्टी के चूल्हे पर बनाए जाते हैं, प्रसाद बांस की टोकड़ी में ही रखे जाते हैं। पूजा के उपयोग की हर चीज नई होती है, खरना की रात्रि में व्रती खीर-रोटी व केला से पूजन कर प्रसाद ग्रहण करते हैं,पूरे व्रत में शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है, छठ पूजा में पंडितजी की कोई भूमिका नहीं होती। एक बार पूजन शुरू करने के बाद व्रती इसे प्रतिवर्ष करते हैं।

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