प्रत्येक ब्लाक में खुलेगें चार पशु आश्रय केंद्र
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जौनपुर । किसानों को जल्द ही बेसहारा पशुओं से निजात मिल जाएगी। फसलों को बर्बादी से बचाने, सड़क पर होने वाले हादसों में जान-माल की क्षति रुके और हिसक बेसहारा पशुओं के हमले में लोग चुटहिल न हों इसे लेकर सरकार गंभीर है। जिलाधिकारी ने सख्त निर्देश दिया है कि बेसहारा पशु खेतों और सड़कों पर नहीं दिखने चाहिए। जल्द से जल्द सबको गो-आश्रयों में पहुंचा दिया जाए। इसके लिए प्रत्येक ब्लाक में चार-चार और अस्थाई पशु आश्रय केंद्र खोलने का आदेश दिया है। डीएम के कड़े रुख से मातहतों की सक्रियता बढ़ गई है। अभियान चलाकर स्थल खोजे जा रहे हैं। मुख्यमंत्री ने निर्देश दिया था कि 10 जनवरी तक बेसहारा पशु खेतों और सड़कों पर नहीं दिखने चाहिए। सबको अस्थायी या स्थायी गोआश्रयों में पहुंचा दिया जाए। सरकार ने इसके लिए विस्तृत गाइड लाइन जारी की है। गाइड लाइन के मुताबिक गोआश्रयों में खाने-पीने, स्वास्थ्य और सुरक्षा का मुकम्मल इंतजाम रहेगा। पशुपालन विभाग द्वारा 23 पन्नों का शासनादेश जारी किया गया और इसे सभी वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों के साथ प्रदेश के सभी जिलाधिकारियों और पुलिस अधीक्षकों को भेजा गया है। शासनादेश में कहा गया कि बेसहारा पशु सड़कों और खेतों में घूमते न पाए जाएं। बेसहारा पशुओं खासकर गोवंश को आश्रय स्थल में ले जाकर रखा जाए। गोवंश आश्रय स्थल के निर्माण के लिए जमीन चिह्नित की जाए। वहां पर पानी, खाने से लेकर बिजली और चारे की व्यवस्था की जाए ताकि कोई पशु खेतों और सड़कों पर न घूम सके। जिले के प्रत्येक ब्लाक में एक-एक पशु आश्रय केंद्र खोला गया है। इन आश्रय केंद्रों में सिर्फ 2034 पशुओं को रखकर जिला प्रशासन ने खानापूर्ति कर ली है। अधिकांश केंद्रों पर दहाई की संख्या में पशु रखे गए हैं। करंजाकला में तो सिर्फ 14 बेसहारा पशु हैं। जबकि नगर समेत ग्रामीण अंचलों में अभी लगभग दस हजार से ज्यादा बेसहारा पशु किसानों के बर्बादी का कारण बने हैं। चार जनपदों की सीमा पर स्थित डोभी विकास खंड के कई गांवों में बेसहारा पशुओं का झुंड फसलों को बर्बाद कर दे रहा है। इस इलाके में वाराणसी से वाहनों से लादकर बेसहारा पशुओं को छोड़ दिया जा रहा है। खरीफ के सीजन में दिन-रात रखवाली के बाद भी अधिकांश किसानों का धान, बजरी, उर्दू आदि फसलें कटकर खलिहान तक नहीं पहुंची। पतरहीं, रेहारी, बरहपुर, बहिरी, कोपा, दुधौंड़ा, चांदेपुर, भगतौली आदि गांवों के अधिकांश किसानों ने कहा कि यदि जिला प्रशासन द्वारा व्यवस्था नहीं की गई तो वह खेती नहीं करेंगे।