टूटी जौनपुर राज की परम्परा , जानिए अब तक कौन कौन रहे है राजा जौनपुर

जौनपुर। जौनपुर की राज की दो सौ से अधिक वर्षो की परम्परा आज टूट गयी। राजा की तबियत खराब होने के कारण राजा की दरबार हवेली के बजाय उनके आवास में लगायी गयी। यहां पर शस्त्र पूजन हुआ उसके बाद दरबारियों ने राजा को लगान देने की परम्परा निभायी। राजा अवनींद्रदत्त दुबे की तबियत खराब होने के कारण नगर में निकलने वाली शाही सवारी को स्थगित कर दिया गया। प्राचीन परम्परा टूटने से नगर वासियों में मायूसी दिखाई पड़ी।
जौनपुर राज की स्थापना 1797 में हुआ था। स्थापनाकाल से ही राजा हवेली में दशहरा के पावन पर्व पर शस्त्र पूजन करते थे उसके बाद दरबारियों द्वारा उन्हे लगान दिया जाता रहा है। हलांकि लोकतत्र की स्थापना के बाद राज परम्परा समाप्त हो गया था, लेकिन संकेतिक रूप से आज भी यह पुरानी परम्परा कायम है। राजा अवनीन्द्रदत्त दुबे की तबियत खराब होने के कारण इस बार हवेली सूनी रही है। दशहरा  पर्व पर होने वाले कार्यक्रमो की तब्दीली करते हुए शस्त्र पूजन और दरबारियों ने लगान देने की रस्म राजा के आवास पर पूरा किया गया।
जानिए अब तक कौन कौन रहे है राजा जौनपुर 
जौनपुर रियासत की स्थापना 3 नवम्बर 1797 में हुआ था इस राज के पहले राजा थे राजा शिवलाल दत्त उन्होने इस गद्दी पर 39 वर्ष तक राज किया। सन् 1836 में उनके मौत के बाद जौनपुर राज के बागडोर की कमान राजा राम गुलाम ने सम्भाली, 7 वर्षो तक शासन करने के बाद उनकी मौत हो गयी। उसकी मौत के बाद सन् 1843 में राजा बाल दत्त इस गद्दी पर आसिन हुए ,लेकिन मात्र एक साल बाद ही उनकी असमायिक मृत्यु हो गयी। बाल दत्त की मौत के बाद उनके पिता राजा लक्ष्मण गुलाम राजा बने, र्दुभाग्य से वे भी मात्र एक साल तक शासन करने के बाद ही उनकी भी मौत हो गयी। लक्ष्मण गुलाम की मौत के बाद बाल दत्त की पत्नी रानी तिलक कुंवर हाथों में सत्ता सौपी गयी। वे तीन वर्ष तक कुशल शासन किया। सन् 1848 उनकी मौत हो गयी। सन् 1848 से 1858 में राजा शिव गुलाम इस रियासत के बादशाह रहे। सन् 1858 से 1875 तक राजा लक्ष्मी नारायण इस गद्दी पर आसिन रहे। 17 वर्षो तक शासन करने के बाद लक्ष्मी नारायण स्वर्गलोक सिधार गये। सन् 1875 में राज की बागडोर राजा हरिहर दत्त को सौपी गयी। वे 14 वर्ष तक इस स्टेट पर राज किया।  सन् 1889 से 1897 तक राजा शंकर दत्त ने राजपाठ सम्भाला। उसके बाद राजा कृष्ण दत्त जौनपुर रियासत के बादशाह बने, वे पूरे  47 वर्षो तक राज किया। सन् 1944 में कृष्ण दत्त की मौत हो गयी। सन् 1944 में राजा यादवेन्द्र दत्त का राज तिलक हुआ। वे पूरी निष्ठा के साथ कार्य किया। राजपाठ सम्भालने के साथ ही भारतीय राजनीत में सक्रिय भागीदारी करते रहे वे जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी से वे दो बार सांसद चुने गये तीन बार विधायक बने। 1999 में राजा यादवेन्द्र दत्त का देहाअवसान हो गया। वर्तमान राजा है अवनीन्द्र दत्त हलांकि अवनीन्द्र दत्त राजनीत के दलदल से दूर हैं।

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