अलम नौचन्दी व जुलूस-ए-अमारी में उमड़ी भीड़
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जौनपुर। आस्था का प्रतीक अलम नौचन्दी व जुलूस-ए-अमारी का 79 वाॅ दौर अलमदार हुसैन रिजवी की अध्यक्षता में इमामबाड़ा स्वर्गीय मीर बहादुर अली दालान पुरानी बाजार पर सम्पन्न हुआ। सन् 1943 में जब पूरा शहर प्लेग नामक महामारी के चपेट में था, और बड़ी संख्या में लोगो की मृत्यु हो रही थी, इस दैवीय आपदा से जब तमाम उपायों के बाद भी छुटकारा नही हो पा रहा था तब इस जुलूस के संस्थापक जुल्फेकार हुसैन रिजवी ने अपने दो साथियो के साथ अलम उठाने का संकल्प लिया, और अलम उठाया गया, अलम को महामारी के प्रकोप वाले रास्ते से घुमाया गया, और ईश्वरीय चमत्कार यह हुआ कि प्लेग की बीमारी से लोगो को नजात मिली और तभी से यह अलम उठता चला आ रहा है। इस अलम के प्रति लोगो की बड़ी आस्था है। इस जुलूस का प्रदेश की क्षितिज पर विशिष्ठ एवं महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। हजरत मुहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन व उनके लश्कर के अलमदार सेनापतिद्ध हजरत अब्बास द्वारा सन् 61 हिजरी में कर्बला के मैदान में मानवीय मूल्यों की रक्षा एवं आतंकवाद के खिलाफ दी गयी कुर्बानी व उनके 72 भूखे-प्यासे जाॅनिसारों पर यजीद जैसे कू्रर आतंकवादी शासक ने जिस तरह जुल्म किया, परन्तु हजरत हुसैन और उनके जाॅनिसारो ने यातनाऐं झेलते हुए इस्लाम की रक्षा की, यह जुलूस इसी याद को ताजा करने के लिए आयोजित किया जाता है। जुलूस निकलने के पूर्व अलम को इमामबाड़े में सजाया जाता है और लोग मन्नतें मंागते हैं और उनकी मुरादें पूरी होती है। जुलूस का आगाज सोजख्वानी से हुआ तत्पश्चात ख्याति प्राप्त शिया धर्म गुरू मौलाना सैयद आबिद रिजवी फतेहपुर ने मजलिस को सम्बोधित किया मौलाना ने कहा कि हजरत अब्बास को हजरत इमाम हुसैन ने जंग की इजाजत नही दी उनको नहरे फोरात से पानी लाने के लिए कहा हजरत अब्बास के नहरे फोरात पर पहॅुचते ही फौज मे अफरा तफरी मच गयी हजरत अब्बास ने मश्क मे पानी भरा लेकिन प्यासे होने के बावजूद भी खुद पानी नही पिया। मजलिस के पश्चात अलम जुलजनाह निकाला गया जिसमे विभिन्न जाति एवं समप्रदाय के कई हजारो की संख्या मे श्रद्धालुओं ने भाग लिया। , जुलूस के साथ अनजुमने नौहा मातम करती हुई चल रही थी, जुलूस जब इमामबाड़ा मीर घर पहुॅचा तो एक तकरीर हुई जिसे डा0 कमर अब्बास साहब ने सम्बोधित किया तथा एक ताबूत जनाबे सकीना निकाला गया जिसे अलम मुबारक से मिलाया गया। जुलूस के मुख्य संस्थापक स्व0 सैयद जुलफेकार हुसैन रिजवी को श्रद्धांजलि दी गयी, और मोमनीन द्वारा सुरहे फातेहा पढ़ा गया। जुलूस के सदर इमामबाड़े पहुंचने पर एक तकरीर हुई, जिसे मौलाना रजी बिस्वानी ने सम्बोधित किया और अमारियाॅ रौजे में बारी बारी दाखिल हुई, तत्पश्चात जुलूस सम्पन्न हुआ। संचालन सैयद खादिम अब्बास रिजवी ने किया।