कंडुआ रोग से धान फसल को बचाए : डा. रमेश चंद्र यादव
https://www.shirazehind.com/2019/10/blog-post_287.html
जौनपुर : जिले में वर्तमान खरीफ सीजन में कुल लगभग एक लाख साठ हजार
हेक्टेयर क्षेत्रफल में धान की खेती की गई हैं। मौसम ने साथ दिया तो फसल भी
अच्छी है, किन्तु अब फसल पकने के समय धान का कंडुआ रोग ने किसानों के
चेहरे से खुशियां गायब कर दिया है। किसान खेत से रोग ग्रसित बालियां लेकर
कृषि विभाग से बचाव की दवाइयां खोजते फिर रहे हैं। उन्हें अंदेशा है कि यदि
समय पर बचाव न किया गया तो सारे किए कराए पर पानी फिर जाएगा।
कंडुआ रोग के बचाव के बारे मे कृषि विभाग के डिप्टी पीडी (आत्मा) डा. रमेश चंद्र यादव ने किसानों को सुझाव दिया है कि कंडुआ रोग भूमि एवं बीज जनित रोग है, इसके नियंत्रण के लिए बायोपेस्टिसाइड ट्राइकोडर्मा से भूमि शोधन एवं बीज शोधन कर नर्सरी डाली जाय तो रोग नही लगेगा।
डिप्टी पीडी डा. यादव ने बताया कि रोग में बालियों के दानों के स्थान पर काला चूर्ण बन जाता है जो सफेद झिल्ली द्वारा ढका रहता है। बाद में झिल्ली फट जाती है और फफूंदी के असंख्य बीजाणु हवा में फैल जाते हैं जो बलियो में बन रहे दानो को काले चूर्ण में बदल देते हैं। उन्होने बताया कि यदि समय से उपचार न किया गया तो सारी फसल बर्बाद हो जाएगी।
इस रोग के बचाव के लिए टास्पा अथवा प्रोपीकोनाजोल 25 प्रतिशत ई.सी. 500 मिली. प्रति हेक्टेयर लगभग 750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें तो रोग का संक्रमण आगे नही बढेगा तथा फसल की सुरक्षा भी हो जाएगी।
कंडुआ रोग के बचाव के बारे मे कृषि विभाग के डिप्टी पीडी (आत्मा) डा. रमेश चंद्र यादव ने किसानों को सुझाव दिया है कि कंडुआ रोग भूमि एवं बीज जनित रोग है, इसके नियंत्रण के लिए बायोपेस्टिसाइड ट्राइकोडर्मा से भूमि शोधन एवं बीज शोधन कर नर्सरी डाली जाय तो रोग नही लगेगा।
डिप्टी पीडी डा. यादव ने बताया कि रोग में बालियों के दानों के स्थान पर काला चूर्ण बन जाता है जो सफेद झिल्ली द्वारा ढका रहता है। बाद में झिल्ली फट जाती है और फफूंदी के असंख्य बीजाणु हवा में फैल जाते हैं जो बलियो में बन रहे दानो को काले चूर्ण में बदल देते हैं। उन्होने बताया कि यदि समय से उपचार न किया गया तो सारी फसल बर्बाद हो जाएगी।
इस रोग के बचाव के लिए टास्पा अथवा प्रोपीकोनाजोल 25 प्रतिशत ई.सी. 500 मिली. प्रति हेक्टेयर लगभग 750 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें तो रोग का संक्रमण आगे नही बढेगा तथा फसल की सुरक्षा भी हो जाएगी।