विश्वविद्यालय विदेशी अनुकरण के बजाय अपने विचारों को बढ़ावा दे : शिव प्रकाश
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जौनपुर।
वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय एवं टीईक्यूआईपी के संयुक्त
तत्वावधान में बुधवार 14 अगस्त को विश्वविद्यालय के महंत अवैधनाथ संगोष्ठी
भवन में विश्वविद्यालयीय शिक्षा की स्वायत्तता विषयक एक दिवसीय राष्ट्रीय
संगोष्ठी का आयोजन किया गया. वक्ताओं ने विषय विविध आयामों पर विस्तार से
अपनी बात रखी।
उद्घाटन सत्र में संगोष्ठी के
मुख्य अतिथि भारतीय जनता पार्टी के अखिल भारतीय सह संगठन महासचिव शिव
प्रकाश ने कहा कि भारत में शिक्षा के केंद्र पश्चिम की संस्कृति को अपना
लिए है जिसे भारतीय संस्कृति के रंग में ढालना होगा। विश्वविद्यालय
विदेशी अनुकरण के बजाय अपने विचारों को बढ़ावा दे कर नई व्यवस्थाएं बनांयें।
उन्होंने कहा कि भारतीय शिक्षा का तेजी से विकास हो रहा है। स्कूल जाने
वाले बच्चों के बस्ते का वजन बढ़ रहा है लेकिन शिक्षा का स्तर सीमित रह
गया है। किताबी शिक्षा के साथ- साथ बच्चों में मानवीय गुणों के विकास पर
जोर देने की आवश्यकता है।
बतौर विशिष्ट अतिथि
डॉ शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय लखनऊ के कुलपति प्रो
राणा कृष्णपाल सिंह ने कहा कि प्राचीन काल में गुरुकल शिक्षण संस्थान
शिक्षा की स्वायत्तता का पूर्ण स्वरुप था। जहाँ शिक्षा का रूप सामानांतर
था और कोई भेदभाव नहीं था। उन्होंने कहा कि प्राइवेट शिक्षण संस्थानों में
बढ़ते शिक्षण शुल्क पर सरकार का अंकुश होना चाहिये जिससे गरीब तबके के
छात्रों को आसानी से शिक्षा मिल सके।
इसी क्रम में संगोष्ठी में विशिष्ट अतिथिमहात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय चित्रकूट के कुलपति प्रो नरेश चन्द्र गौतम ने कहा कि शिक्षा के साथ दृष्टिकोण होना अतिआवश्यक है क्यों कि एक शिक्षा तभी रूप ले सकती है जब वह सही दृष्टिकोण से रूपांतरित की गई हो।उन्होंने कहा कि देश की नींव की गुणवत्ता को विश्वविद्यालयीय शिक्षा से जोड़कर सुधारा जा सकता है। जिन विद्वानों के पास ज्ञान, योग्यता और कर्मठता है और विश्वविद्यालय तक नहीं पहुंच पाते उसके लिए विश्वविद्यालय को स्वायत्तता दी जानी चाहिए।
इसी क्रम में संगोष्ठी में विशिष्ट अतिथिमहात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय चित्रकूट के कुलपति प्रो नरेश चन्द्र गौतम ने कहा कि शिक्षा के साथ दृष्टिकोण होना अतिआवश्यक है क्यों कि एक शिक्षा तभी रूप ले सकती है जब वह सही दृष्टिकोण से रूपांतरित की गई हो।उन्होंने कहा कि देश की नींव की गुणवत्ता को विश्वविद्यालयीय शिक्षा से जोड़कर सुधारा जा सकता है। जिन विद्वानों के पास ज्ञान, योग्यता और कर्मठता है और विश्वविद्यालय तक नहीं पहुंच पाते उसके लिए विश्वविद्यालय को स्वायत्तता दी जानी चाहिए।
अध्यक्षीय
संबोधन में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो डॉ राजाराम यादव ने कहाकि
शिक्षा की स्वायत्तता के बिना शिक्षा एवं संस्कृति का उद्देश्य पूरा होने
में बाधाएं है।उन्होंने कहा कि गुरुकुल का भार राजा या समाज वाहन करता था
यह पूर्ण रूप से शिक्षा देने के लिए स्वतंत्र था तभी उसके विद्यार्थी पूरे
देश में उसका नाम रोशन करते थे। उन्होंने विश्वविद्यालय के मूल्यांकन करने
वाली संस्थाओं पर सवाल उठाते हुए कहा की जेएनयू जहां देशद्रोह का नारा लगता
हो वह नैक मूल्यांकन में द्वितीय स्थान पर हो यह भ्रम की स्थिति पैदा करता
है। उन्होंने कहा दुनिया भर में लोकप्रिय नालंदा और तक्षशिला
विश्वविद्यालय का मूल्यांकन वहां के छात्र करते थे। उन्होंने कहा कि
कस्तूरीरंगन आयोग ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा और
संस्कृति मंत्रालय रखने की सिफारिश की है जोकि सही है। उन्होंने निर्माणों
के पावन युग में हम चरित्र निर्माण न भूलें इस गीत के माध्यम से अपनी पूरी
बात रखीं।
स्वागत डॉ राजकुमार एवं धन्यवाद ज्ञापन आयोजन सचिव डॉ
गिरिधर मिश्र ने किया। कार्यक्रम का संचालन जनसंचार विभाग के अध्यक्ष डॉ
मनोज मिश्र ने किया। कार्यक्रम की शुरुआत में अतिथियों को कुलपति ने
अंगवस्त्रम एवं स्मृति चिन्ह प्रदान किया।संगोष्ठी के पूर्व मुख्य अतिथि
एवं अन्य अतिथियों ने राजेंद्र सिंह रज्जू भईया भौतिक विज्ञान अध्ययन एवं
शोध संस्थान में रज्जू भईया जीवन यात्रा पट्ट का अनावरण किया गया.
इस
अवसर पर विधायक डॉ हरेंद्र प्रताप सिंह, पूर्व विधायक सुरेंद्र प्रताप
सिंह, कुलसचिव सुजीत कुमार जायसवाल, वित्त अधिकारी एमके सिंह,परीक्षा
नियंत्रक वी एन सिंह , कार्यक्रम अध्यक्ष प्रोफेसर बीबी तिवारी,डॉ राजीव
प्रकाश सिंह, डॉ समर बहादुर सिंह, डॉ विजय सिंह, प्रो अजय द्विवेदी, प्रो
अजय प्रताप सिंह, प्रो बीडी शर्मा, प्रोफेसर मानस पांडे, प्रो वंदना राय,
प्रो राम नारायण, डॉ प्रमोद यादव, डॉ दिग्विजय सिंह राठौर,डॉ अलोक सिंह,
राकेश यादव,डॉ सुनील कुमार, डॉ विजय तिवारी, रमेश यादव, डॉ अनुराग मिश्र
समेत तमाम लोग मौजूद रहे।