उपेक्षा से वेंटीलेटर पर चल रहा दरी का उद्योग
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जौनपुर। मुगलकाल से ही जनपद में कालीन के साथ दरी का कारोबार हो रहा था कितु बिचैलिया, महंगाई, जिम्मेदारों की उदासीनता संग जीएसटी की मार से यह खुद का पहचान खोता गया। नतीजतन वेंटीलेटर पर चल रहे इस कारोबार को अब योगी सरकार ने आक्सीजन देने का काम किया है। वन डिस्ट्रिक वन प्रोडक्ट के तहत विकास के पथ पर दौड़ रहे जौनपुर को दरी उद्योग से राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने की कोशिश की जा रही है, जिसकी शुरुआत भी की जा चुकी है। जौनपुर की कालीन व दरी, इटली के मोरानों के खिलौनों, स्वरोस्कों के क्रिस्टल की तरह कालीन ने भदोही को पूरे विश्व में पहचान दिलाई। भदोही के कारोबारियों की इस सफलता में मुगलकाल से ही खासकर मड़ियाहूं क्षेत्र के आस-पास के गांवों के मजदूरों का हाथ है। इनमें विशेष रूप से रामपुर, रामनगर, सीतम सराय, जमालपुर गांव आदि शामिल हैं, जहां के 200 परिवार के करीब एक हजार लोग इस व्यवसाय से जुड़े हैं, जो यहां कालीन के साथ-साथ दरी तैयार करते हैं। ये भदोही से ही कच्चा माल लाते हैं। यहां तैयार कराने के बाद उसे उन्हीं को बेचते हैं। इसके एवज में प्रति मीटर के हिसाब से 50 रुपये तक का फायदा होता है, लेकिन समय के साथ-साथ यह कारोबार दम तोड़ता जा रहा है। वजह बुनकरों को बिजली समस्या, कम मजदूरी, प्रशिक्षण का अभाव और बिचैलियों की समस्याओं से दो-चार होना पड़ रहा था। सरकारी स्तर से भी इन्हें कोई लाभ नहीं मिल रहा था। नतीजतन बुनकर धीरे-धीरे दूसरे कामों में लग गए। अब ये अपनी नई पीढ़ी को इस कारोबार से दूर ही रखने लगे। इसी बीच महंगाई के दौर में जीएसटी लागू किए जाने के बाद इनकी दिक्कतें और बढ़ गईं। हालांकि अब सरकार ने वन डिस्ट्रिक, वन प्रोडक्ट के तहत जौनपुर से दरी उद्योग को बढ़ावा देने का निर्णय लिया है, जिसका शुभारंभ कर दिया गया है। दस साल का आंकलन करें को दरी उद्योग दिनों-दिन बंद खराब स्थिति में पहुंचा। इस वजह से आज बुनकर मुफलिसी में जीवन गुजारने को विवश हैं। इसके कई कारण बताए जाते हैं, जिनमें बाजार की मांग के हिसाब से प्रशिक्षण नहीं मिलना, ऋण की अनुपलब्धता प्रमुख रूप से शामिल है, बिजली की पर्याप्त व्यवस्था न होने के साथ-साथ कारोबारियों व बुनकरों के बीच बिचैलियों की दखलअंदाजी प्रमुख हैं। इसके चलते उनके लाभ में कटौती हो जाती है। इस वजह से जनपद में यह व्यवसाय दम तोड़ रहा है। ऐसे में यदि सरकार की नजर-ए-इनायत हो गई तो बात बन सकती है, लेकिन इसके लिए कालीन उद्योग को व्यापार शुरू करने के लिए जिला उद्योग कार्यालय व अन्य साधनों के माध्यम से आसान दर पर ऋण उपलब्ध कराना होगा। इस प्रयोग से निश्चित तौर पर यहां की स्थिति बदल सकती है लेकिन कालीन को बढ़ावा देने के लिए पर्याप्त बिजली की भी व्यवस्था करनी होगी। सरकार के इस पहल से आस जगी है। दरी बुनकरों की हालत दिनों-दिन खस्ताहाल होती जा रही है। मेहनत के हिसाब से मजदूरी न मिलने की वजह से बहुत से कारीगरों का मोहभंग हो चुका है। वह दूसरे व्यवसाय को अपने जीवकोपार्जन का जरिया बना लिए हैं या बना रहे हैं। बुनकरों का कहना है कि एक तरफ जहां अन्य मजदूरों की दिहाड़ी मजदूरी 1 दिन में 400 से 500 रुपये तक है, वहीं पर इस व्यवसाय में लगे हुए मजदूरों को पूरे दिन में मात्र 200 रुपये की मजदूरी मिलती है। महंगाई के इस दौर में इतनी कम मजदूरी के मिलने से परिवार का खर्चा चलाना मुश्किल होता जा रहा है, जिसकी वजह से मजदूरों का इस व्यवसाय से मोह भंग होता जा रहा है। दरी कारोबारियों ने कहा कि अगर सरकार समय रहते इस पर ध्यान देती तो निश्चित ही दरी उद्योग जिले में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता, लेकिन सरकार की उपेक्षा के चलते यह उद्योग दिन-ब-दिन ठप होता जा रहा है। निर्यात व उत्पाद शुल्क आदि की वृद्धि होने से इसकी लागत में और बाजार की कीमतों में भारी अंतर आने लगी। इसकी वजह से हाथ की बनी हुई दरी की मांग में कमी आ गई, जबकि मशीनों से बनी हुई दरी सस्ती होने की वजह से बिक रही है।