अंग्रेजी हुकूमत के प्रबल विरोधी थे बाबू शिव सहाय

जौनपुर। सेनानी बाबू विश्वनाथ सहाय ने अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचारों का न केवल मुखर विरोध किया बल्कि स्वतंत्रता मिलने तक गोरों से मुकाबला करते रहे। जिले के सिरकोनी क्षेत्र के ग्राम कबूलपुर में बाबू राजकिशोर की इकलौती संतान रहे विश्वनाथ सहाय के सिर पर जंग-ए-आजादी में सक्रिय भागीदारी का कुछ इस कदर जुनून चढ़ा कि उन्होंने शिक्षक की नौकरी से त्याग पत्र देकर स्वतंत्रता के सारथी बन बैठे। स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़कर भूमिका निभा रहे चाचा डा.दयाशंकर लाल श्रीवास्तव से प्रेरणा लेकर वे एक बार आजादी की लड़ाई में कूदे तो भारत माता को दासता की बेड़ियों से मुक्त होने तक डटे रहे। कई बार ऐसा अवसर आया जब वे अंग्रेजों की पुलिस के अत्याचार के विरोध में अदम्य साहस के साथ न केवल अकेले डटे रहे। उन्हें जेल की हवा भी खानी पड़ी लेकिन उनके कदम नहीं डिगे। देश की आजादी के बाद कुछ वर्षों तक वे पंचायत विभाग में इंस्पेक्टर के पद पर कार्य किए और इंस्पेक्टर साहब के नाम से क्षेत्र में मशहूर हुए। सरकारी सेवा से कार्य मुक्त होने के बाद उन्होंने सामाजिक कार्यों की ओर रुख किया और आजीवन उक्त कार्यों में बढ़-चढ़कर सहभागिता निभाते रहे। सन् 1984 में महा प्रयाण होने के बाद राजकीय सम्मान के साथ उनकी अंत्येष्टि की गई थी।   पूर्ववर्ती भाजपा सरकार में आजादी की लड़ाई में कबूलपुर के तीन सेनानियों डा.दयाशंकर, बाबू विश्वनाथ सहाय व मैनुद्दीन खां के अहम योगदान के कारण इस गांव को शहीद ग्राम का दर्जा दिया गया। उस समय गांव के लोगों को उम्मीद जगी थी कि शायद इन सेनानियों की याद में कुछ ऐसा किया जाएगा जो वर्तमान व भावी पीढ़ी के लिए प्रेरणास्त्रोत होगा। लेकिन यह उम्मीद पूरी नहीं हो सकी।

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