थ्रेसरिंग से बढ़ते जा रहे अस्थमा की मरीज

जौनपुर। जिले में गेहूं की निकासी शुरू होने के साथ ही अस्थमा के मरीजों की संख्या भी बढ़ गई। वो इसलिए, थ्रेशरिग के दौरान उड़ने वाली धूल खेत से लेकर हाईवे तक पहुंचती है। ऐसे में गेहूं निकालने वाले लोग ही नहीं, बल्कि वहां से गुजरने वाले राहगीर भी उससे प्रभावित होते हैं। सबसे बड़ी दिक्कत उन लोगों को होती है, जो पहले से ही अस्थमा से ग्रसित हैं। हाल ही में जिला अस्पताल में ऐसे मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ी है। जिले में  गेहूं का रकबा विषाल है। किसान मड़ाई जुटे हुए हैं। मौसम का मिजाज कब बदल जाए और बारिश होने पर सालभर ही मेहनत बेकार जाए, इस आशंका के चलते लगातार थ्रेशरिग की जा रही है। ताकि समय रहते गेहूं घर तक पहुंच सके। थ्रेशरिग के दौरान निकलने वाले भूसे और धूल के कारण लोगों में यह बीमारी घर कर रही है। अस्पताल में भी रोजाना 60 से 70 मरीज ऐसे आ रहे हैं।  खेतिहर इलाकों में थ्रेशिग के दौरान मशीन का रुख उसी ओर रखा जाता है, जो हवा का रुख हो। अक्सर हाईवे या किसी लिक रोड की तरफ रुख होने के कारण थ्रेशिग की धूल सड़क तक जाती है और वहां से गुजरने वाले लोगों को भी सांस लेने के साथ ही धूल चपेट में लेती है और लोगों की सांस उखड़ने लगती है।  जिला अस्पताल के फिजिशियन बताते है कि सांस की बीमारी से बचने के लिए जरूरी है कि ऐसी जगह पर न जाएं, जहां थ्रेशिग चल रही हो। अगर जाना जरूरी भी हो तो फेस मास्क या नाक पर कपड़ा लपेटकर जाएं। थ्रेशिग करने वालों को भी चाहिए कि संबंधित स्थान पर पहले पानी का छिड़काव कर लें, ताकि धूल ज्यादा न उड़े।

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