
जौनपुर। इस समय चुनावी शोर चल रहा है लेकिन आधी आबादी के दर्द को यहां के राजनीतिक दल और सत्ताधारी पार्टी ने नहीं समझा। जिले के दोनों संसदीय क्षेत्र सदर और मछलीशहर में नारी संरक्षण केंद्र नहीं है। महिला उत्पीड़न, दुष्कर्म व अन्य मामलों की शिकार महिलाओं का दर्द उस समय और बढ़ जाता है, जब उन्हें ठहरने की जगह नहीं मिलती है। पीड़िताओं को महिला सिपाहियों के साथ खाक छाननी पड़ती है। इससे पीड़ितों की सुरक्षा के साथ ही उनका बयान प्रभावित होने की भी आशंका बनी रहती है। समाज के हर क्षेत्र के आधी आबादी को बराबरी का दर्जा व अधिकार दिलाने वाले माननीयों ने कभी इस गंभीर मुद्दे को अपने चुनावी एजेंडे में तरजीह देना मुनासिब नहीं समझा। आधी आबादी के लिए घोषणाएं तो खूब हुईं, लेकिन उनके दर्द पर मरहम नहीं लग सका है। दर असल महिलाओं की सुरक्षा के लिए कानून तो सख्त हैं, लेकिन उनका कड़ाई से पालन न होने से अपराधों पर अंकुश नहीं लग पा रहा है। आए दिन छात्राओं व महिलाओं के साथ छेड़छाड़ व दुष्कर्म की घटनाएं होती हैं। पुलिस की लचर कार्यशैली से महिलाएं व छात्राएं खुद को असुरक्षित महसूस कर रहीं हैं। स्कूलों व कॉलेजों के सामने शोहदे बेखौफ घूमते रहते हैं। जो वारदात को अंजाम देकर फरार हो जाते हैं। उत्पीड़न की शिकार महिलाओं को डॉक्टरी कराने के बाद न्यायालय में बयान देना होता है। यही नहीं लापता होने के बाद महिलाओं की बरामदगी होने पर बयान के लिए न्यायालय की तय तारीख पर पहुंचना होता है। इससे पहले महिलाओं को पुलिस अभिरक्षा में रात गुजारने की समस्या खड़ी हो जाती है। ऐसे में नारी संरक्षण केंद्र की कमी पीड़िताओं के दर्द को और बढ़ा देती है। पीड़िताओं के रात रुकने के लिए भवन न होने से अक्सर उन्हें महिला पुलिस अभिरक्षा में रखा जाता है। जिससे न्यायालय तक पहुंचने के पहले ही बयान प्रभावित होने की आशंका बनी रहती है। महिलाओं की सुरक्षा के नाम पर जिले में महिला थाना की स्थापना तो है, लेकिन संसाधनों का अभाव है। यहां तैनात महिला पुलिसकर्मियों को भी बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझना पड़ रहा है।