नवरात्रि के छठवें दिन भी उमड़ी भीड़
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जौनपुर । वासंतिक नवरात्रि के छठवें दिन शीतला चैकिया धाम में भक्तों की भीड़ रही। पूर्वांचल के कोने-कोने से आए भक्तों ने मां के कात्यायनी स्वरूप का दर्शन पूजन किया। नौनिहालों का मुंडन संस्कार भी खूब हुआ। दान दक्षिणा देने का क्रम दिनभर चलता रहा। भीड़ को देखते हुए कंट्रोल रूम से भीड़ को नियंत्रित किया जाता रहा।भोर से ही करीब 400 मीटर लंबी लाइन लगी रही।भक्तों को दर्शन करवाकर मंदिर के पूर्वी व पश्चिमी द्वार से निकाला जाता रहा। साढ़े चार बजे भोर में मां की आरती के बाद दिनभर दर्शन-पूजन चलता रहा। सुजानगंज क्षेत्र में अंबाधाम बसरही, अन्नपूर्णा धाम, प्रेम का पूरा भिखारीपुर, चारों धाम गोल्हनामऊ झाली भवानी मंदिर, तिलहरा महाकाली मंदिर पूराकोदई, सवेली के मंदिरों पर भारी भीड़ इकठ्ठा हो गई थी। लोगों ने श्रद्धा व विश्वास के साथ पूजन-अर्चन किया। चारों तरफ देवी गीतों की आवाज गूंजती रही। ज्ञात हो कि नवरात्रि में छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। इनकी उपासना और आराधना से भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। उसके रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं। जन्मों के समस्त पाप भी नष्ट हो जाते हैं। इस देवी को नवरात्रि में छठे दिन पूजा जाता है। कात्य गोत्र में विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन ने भगवती पराम्बा की उपासना की। कठिन तपस्या की। उनकी इच्छा थी कि उन्हें पुत्री प्राप्त हो। मां भगवती ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया। इसलिए यह देवी कात्यायनी कहलाईं। इनका गुण शोधकार्य है। इसीलिए इस वैज्ञानिक युग में कात्यायनी का महत्व सर्वाधिक हो जाता है। इनकी कृपा से ही सारे कार्य पूरे जो जाते हैं। ये वैद्यनाथ नामक स्थान पर प्रकट होकर पूजी गईं। मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं। भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा की थी। यह पूजा कालिंदी यमुना के तट पर की गई थी। इसीलिए ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं। इनका स्वरूप अत्यंत भव्य और दिव्य है। ये स्वर्ण के समान चमकीली हैं और भास्वर हैं। इनकी चार भुजाएं हैं। दाईं तरफ का ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में है तथा नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में। मां के बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार है व नीचे वाले हाथ में कमल का फूल सुशोभित है। इनका वाहन भी सिंह है। इनकी उपासना और आराधना से भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। उसके रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं। जन्मों के समस्त पाप भी नष्ट हो जाते हैं। इसलिए कहा जाता है कि इस देवी की उपासना करने से परम पद की प्राप्ति होती है।