ग्रामीण चौपालों से गायब हुई चुनावी चर्चा

जौनपुर। चुनावी डुगडुगी बज चुकी है। चुनावी चौसर पर एक-दूसरे को मात देने के लिए राजनीतिक दलों के पियादे सक्रिय भी हो गए हैं। बदलते दौर में चुनाव की प्रक्रिया में बहुत कुछ बदलाव देखने को मिल रहा है। हाईटेक होती चुनावी प्रक्रिया में अब चुनावी चर्चा का गांव की चौपाल से निकल कर चट्टी-चैराहों पर आ गई है। बुजुर्ग बताते हैं कि पहले चुनाव के 6 माह पहले से ही गांव में सार्वजनिक स्थानों पर चुनावी चर्चा शुरु हो जाती थी। सुबह-शाम लोग बैठकर आपस में विचार विमर्श करना प्रारम्भ कर देते थे। जो वर्तमान में विलुप्त सा हो गया है। चुनावी परिचर्चा सीमित लोगों तक सीमित होकर रह गई है। अब तो चुनावी चकल्लस में सिर्फ नेता व उसके झंडा बरदार ही शामिल होते हैं। पहले चुनाव के दौरान पार्टी कार्यकर्ता निःस्वार्थ भाव से पार्टी और उम्मीदवार का प्रचार-प्रसार करते थे लेकिन अब प्रचार-प्रसार भी रोजी रोटी का जरिया बन गया है। न तो समर्पित कार्यकर्ता नजर आते हैं और न ही पार्टी के प्रति उसका भाव। जाति, धर्म, सम्प्रदाय और तुष्टिकरण के बढ़ते दखल ने राजनीति से आम लोगों का रिश्ता कमजोर कर दिया। गांव देहात के लोगों का मानना है कि आजकल के नेता बरसाती मेंढक की तरह है जो चुनाव आते ही काका भैया राम-राम तो करते हैं लेकिन चुनाव बीतने के बाद पांच साल परिचय देने में ही बीत जाता है।

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