थाली में पोषक तत्वों का भंडार मोटा आनाज
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जौनपुर । मोटे अनाज को पोषक तत्वों का भंडार माना जाता है, लेकिन धीरे-धीरे लोगों का ध्यान इसकी ओर से हट रहा है। चिकित्सक मोटे अनाज से निर्मित चीजें खाने की सलाह देते हैं तो लोग इसकी तलाश में दौड़ते हैं। बुजुर्गो की माने तो मोटा अनाज थाली से गायब होने पर सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। मोटे अनाज में विशेष रूप से बाजरा, गेहूं, मक्का, ज्वार आदि शामिल हैं। इनमें कैल्शियम, लौह तत्व, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट आदि पोषक तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। यूं तो प्रत्येक व्यक्ति के लिए पौष्टिक आहार में मोटे अनाज का होना जरूरी है लेकिन गर्भवती महिला व उनके शिशुओं के लिए बेहद जरूरी बताया जाता है। जानकारों की माने तो गर्भावस्था और स्तनपान के दौरान महिलाओं में कैल्शियम की कमी होने से बच्चों की हड्डियां कमजोर हो जाती हैं। इसके अलावा गर्भावस्था के दौरान अपर्याप्त कैल्शियम लेने से मां का स्वास्थ्य कमजोर हो जाता है। इस दौरान मां की हड्डियों के कैल्शियम का इस्तेमाल भूण के विकास और स्तन दुग्ध के निर्माण में होने लगता है। कैल्शियम की कमी के कारण मां की संचरण प्रणाली पर बुरा असर पड़ता है और उच्च रक्तचाप की समस्या पैदा होती है। मोटे अनाज के सेवन से मां व शिशुओं की सेहत बेहतर बनी रहती है। हालांकि वर्तमान में आम खाने में मोटे अनाज का इस्तेमाल नहीं होता है, लेकिन आंगनवाड़ी केंद्रों में गेहूं का इस्तेमाल दलिया व पंजीरी के रूप में और गेहूं का प्रयोग लड्डू के रूप में किया जा रहा है। इसके अलावा सरकार ने मिड-डे मील में भी दाल व दलिया आदि बनाने के आदेश जारी किए हुए हैं। बुजुर्गो का कहना है कि अब के खाने में और अब से 30-35 साल पुराने खाने में बहुत अंतर है। जौ में फाइबर की मात्रा अधिक होती है। इसके चलते वह जौ को चना व मटर में मिलाकर खाते थे। इन तीनों अनाज की मिश्रित रोटी के खाने से शरीर को पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व मिलते थे। चना व मटर की रोटी घी के बिना भी खाने से शरीर लौहे के समान शक्तिशाली बन जाता था, लेकिन आज की पीढ़ी केवल गेहूं की रोटी और चावल खाना पसंद करती है।