
जौनपुर । कुओं का अस्तित्व अब हर जगह खतरे में है। ग्रामीण अंचल में ज्यादातर कुएं लगातार खत्म हो रहे हैं। अभी भी यदि इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो कृषि एवं संस्कार कार्यक्रमों में भी अपनी उपयोगिता रखने वाले वाले कुएं कथा-कहानियों तक ही सिमट कर रह जाएंगे। इतिहास पर नजर डालें तो कुओं का अस्तित्व मानव सभ्यता के उदय के साथ से ही जुड़ा हुआ दिखाई देता है। यद्यपि कुएं की पहली प्राथमिकता व उपयोगिता लोगों की प्यास बुझाने के लिए थी। कृषि एवं संस्कार कार्यक्रमों में भी इसकी उपयोगिता कम नहीं थी। किसी के घर में जब भी शादी-समारोह पड़ता था तो लोग बारात विदा करते समय कुएं की फेरी लगाते थे। आज उन्हीं कुओं का अस्तित्व समाप्त होता जा रहा है। कुओं के अस्तित्व पर चिता व्यक्त करते हुए बुव्जिीवी कहते हैं कि आज लोग पानी उबाल कर पीने की सलाह देते हैं, एक समय वह भी था कि कुएं का पानी उबाल कर पीने की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती थी। सूर्य की किरणों से इसका पानी खुद ब खुद पक जाता था। जो पीने में मीठा एवं स्वास्थ्यवर्धक होता था। कुओं के अस्तित्व रक्षा की ओर जनप्रतिनिधियों को भी गंभीर होना चाहिए।