अब मोटा आनाज फिर प्रचलन में

जौनपुर । अब मोटा आनाज फिर प्रचलन में आने लगा है जबकि आम लोग इसका सेवन करना अपनी तौहीन समझते हैं , यदि तीन दशक पहले की खेती पर गौर करेंगे तो सबकुछ बदला नजर आएगा, ज्वार हो या बाजरा। ये खेतों में मेड़ के किनारे जरूर मिल जाते थे। सांवा, कोदो, काकून और मक्का का क्या है, उत्पादन कम जरूर होता था, लेकिन अनाज ऐसा था जिससे बने भोजन कभी नुकसान नहीं करते थे। खेतों में दिन-रात काम करने वाले श्रमिकों के लिए मोटे अनाज सबसे ज्यादा फायदेमंद थे। उत्पादन कम और मोटे अनाज से भोजन तैयार करने में समय ज्यादा लगता था। वक्त बदला तो गेहूं के साथ ही धान का उत्पादन बढ़ाने की होड़ लग गई। जिससे धीरे-धीरे मोटे अनाज गुम होते चले गए और बीमारियां फैलने लगी। सेहत खराब होने पर अब फिर मोटे अनाज की याद आने लगी है। जिले के मछली शहर गाव के कादनपुर गांव निवासी गौरी शंकर का कहना है कि बचपन से लेकर जवानी तक ज्वार, बाजरा की रोटी खाई है। मटर,चना,मसूर की दाल तो जायका ही बदल देती थीे। लेकिन अब ये अनाज देखने को नही मिलता। उनका   कहना है कि बचपन में ज्वार, बाजरा ही नहीं सांवा कोदो के पकवान खाते थे, पेट बिल्कुल साफ रहता था। कौरहां गाव निवासी सोहन लाल का कहना है कि हमने सावां, कोदो, काकुन की रोटी व चावल खाया है। ठंडक कम लगती थी और काया भी निरोग रहती थी।   पहले गरीब आदमी जौ, मसूर, मक्का, अक्सा, मसरंगी जैसा अनाज खाते थे और अमीर लोग गेहू, धान का उपयोग करते थे। अब अमीर लोग मोटा अनाज ढूंढ़ते हैं और गरीब की पहुंच से वह अनाज दूर हो गया है।

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